सीबीएसईः रिवाइज्ड सिलेबस पर सवाल उठाने वाले पहले निदेशक का ये लेटर पढ़ें
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दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया ने कहा कि सीबीएसई ने अभी तक ये नहीं बताया कि उसने किस प्रकार ये सिलेबस कम किया है।
नई दिल्ली। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद ने मंगलवार को कोरोना संकट के कारण छात्रों की पढ़ाई का बोझ कम करने का फैसला लिया। इसमें बोर्ड ने अनुमान के मुताबिक लगभग 30 प्रतिशत तक कोर्स कम कर दिया है। रिवाइज्ड सिलेबस की सूची आते ही इस पर राजनीति शुरू हो गई है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री बयान जारी कर रिवाइज्ड सिलेबस पर सवाल उठाए तो उनकी पार्टी दूसरी ओर से इसे भुनाने में लग गई है।
सीबीएसई का रिवाइज्ड सिलेबस जारी होने के बाद दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया ने कहा कि सीबीएसई ने अभी तक ये नहीं बताया कि उसने किस प्रकार ये सिलेबस कम किया है। उन्होंने सबसे ज्यादा चिंता सामाजिक विज्ञान से लोकतंत्र, संघवाद, नेशनलिज्म और नागरिकता आदि से संबंधित चैप्टर हटाने पर जताई है।
इसके बाद आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट कर कहा कि भाषणवीर भाजपाईयों को “न राष्ट्रवाद से मतलब है न लोकतंत्र से न संघीय ढाँचे से मतलब है न नागरिकता से” इनकी नीति है “बाँटों और राज करो”।
इसके बाद सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने इसे लेकर अपनी-अपनी राय दी। भारत दीप ने पूरे मसले को समझने के लिए सीबीएसई के निदेशक डाॅ. जोसेफ इमेनुएल का वो पत्र फिर से पढ़ा जो उन्होंने सभी स्कूलों के प्रमुखों को लिखा है।
पत्र में निदेशक ने लिखा है कि कोर्स को कम करने का फेसला कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हुए हालातों के बाद लिया गया। इस दौरान छात्र स्कूल में कक्षाएं अटेंड नहीं कर पा रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि कोर्स कम करने का ये निर्णय इसी सत्र के लिए है न कि हमेशा के लिए।
निदेशक ने अपने पत्र में स्कूल प्रमुखों को यह भी निर्देश दिया है कि छोड़े गए टाॅपिक भी छात्रों को पढ़ाए जाएं हालांकि इनसे इंटरनल या एनुअल परीक्षा में प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे। कोर्स घटाने का निर्णय केवल कक्षा 9 से 12 का न होकर कक्षा 1 से आठ का भी है। कक्षा 1-8 के लिए बोर्ड ने एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित सिलेबस को ही मान्य किया है।
कोर्स कम करने का निर्णय सभी निर्धारित समितियों से निर्णय के बाद ही लिया गया है। कोर्स का कम होना किसी एक विषय तक सीमित नहीं है, ये समान रूप से सभी विषयों के लिए है। हिंदी विषय को ही लें तो कबीर, बिहारी, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, हजारी प्रसाद द्विवेदी, मैथिली शरण गुप्त जैसे कवि और आलोचकों के पाठ कम किए गए हैं।
ऐसे में स्पष्ट है कि बोर्ड की मंशा किसी एक विषय को लेकर नहीं है। सभी विषयों में आवश्यक कटौती की गई है। हालांकि सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने ये भी लिखा जिनकी मानसिकता खराब है वे हर निर्णय में बुराई ही खोजेंगे।