निजीकरण के खिलाफ एक महीने से बिगुल फूंक रहे बैंककर्मियों के ये हैं तर्क

टीम भारत दीप |

बैंक सिर्फ फायदे का ही व्यापार नहीं कर रहे बल्कि समाजसेवा भी कर रहे हैं।
बैंक सिर्फ फायदे का ही व्यापार नहीं कर रहे बल्कि समाजसेवा भी कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर अपने अभियान के समर्थन में बैंकर्स का कहना है कि जब प्राइवेट सेक्टर की हालत मंदी के कारण खराब होने लगती है तो सरकारी बैंक ही उन्हें बचाने को आगे आती हैं।

बैंकिंग डेस्क। यहां लोन डिफाॅल्टर दोषी नहीं बल्कि लोन पास करने वाला दोषी है। कोई यह नहीं बता सकता कि पीएसयू एक फायदा देने वाली संस्था है या जनकल्याण वाली। ये सवाल उन बैंककर्मियों के हैं जो केंद्र सरकार के निजीकरण के आइडिया के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। 

सोमवार से बैंककर्मी दो दिन की हड़ताल पर हैं। यह उनके एक महीने से चल रहे प्रदर्शन की परिणति जो देशव्यापी आंदोलन के रूप में दिखाई दे सकती है। बैंककर्मियों की लगभग सभी यूनियन इस हड़ताल का समर्थन कर रही हैं। इसके समर्थन में कहा जा रहा है कि- 

1- पब्लिक सेक्टर बैंक में कर्मियों की दूर-दूर पोस्टिंग उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। 

2- यहां मशीनें आदमी से धीमे काम करती हैं। 

3- बैंकों को निर्देश देने वाले कई लोग हैं लेकिन बैंक किसी को निर्देश नहीं दे सकता है। 

इसके अलावा और भी कई बातें हैं जिनके जरिए बैंककर्मी अपनी परेशानी को सामने रख रहे हैं। पब्लिक सेक्टर बैंकों के समर्थन में उनका तर्क है कि- 

1- पब्लिक सेक्टर बैंक ऐसी जगह है जहां लोग बेफिक्र होकर अपना रूपया रख देते हैं। 

2- बैंक सिर्फ फायदे का ही व्यापार नहीं कर रहे बल्कि समाजसेवा भी कर रहे हैं। 

3- 2014 के बाद प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत सबसे ज्यादा खाते खोलने का रिकार्ड भी सरकारी बैंकों के नाम है। 

सोशल मीडिया पर अपने अभियान के समर्थन में बैंकर्स का कहना है कि जब प्राइवेट सेक्टर की हालत मंदी के कारण खराब होने लगती है तो सरकारी बैंक ही उन्हें बचाने को आगे आती हैं। अगर सरकारी बैंक ही नहीं रहेंगी तो मंदी के समय हालात बिगड़ना तय है।  


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