आरबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा समझें कि भोजन हर बैंककर्मी का है मौलिक अधिकार
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बीओबी के बड़ौदा स्थित आपरेशन एंड सर्विसेज डिपार्टमेंट ने सोमवार को एक सर्कुलर जारी किया। इसमें बैंक को ग्राहक सुविधा के लिए तत्पर बताते हुए कुछ गाइडलाइंस को देशभर की सभी ब्रांच के लिए दोहराया है।
बैंकिंग डेस्क। पब्लिक सेक्टर बैंक में काम का लोड तो है ही, ग्राहकों के भरोसे के कारण यह दबाव बढ़ भी जाता है। इधर निजी बैंकों से टक्कर भी लेनी है और सरकारी आदमी पर कामचोर होने का दाग भी हटाना है।
ऐसे में न्यू इंडिया के पब्लिक सेक्टर बैंक भी ग्राहकों की सुविधा के आधार पर अपनी सेवाओं का विस्तार कर रहे हैं। ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि ग्राहक आखिर भगवान है। लेकिन, कभी कभार अति सतर्कता में कई ऐसे निर्णय भी हो जाते हैं जो अच्छा करने की भावना के बावजूद बुरे दिखाई देने लगते हैं।
ऐसा ही बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ भी हो रहा है। बीओबी के बड़ौदा स्थित आपरेशन एंड सर्विसेज डिपार्टमेंट ने सोमवार को एक सर्कुलर जारी किया। इसमें बैंक को ग्राहक सुविधा के लिए तत्पर बताते हुए कुछ गाइडलाइंस को देशभर की सभी ब्रांच के लिए दोहराया है।
इस पूरे लेटर का लब्बोलुबाव ये है कि भारतीय रिजर्व बैंक के आदेशानुसार बैंक को ग्राहक सेवाओं के लिए बैंक टाइमिंग के दौरान पूरी तरह से तत्पर रहना है। पत्र में लिखा है कि कई बार देखा जाता है कि ड्यूटी टाइमिंग के दौरान बैंक का मेन गेट बंद कर दिया जाता है।
जिससे लगता है कि ग्राहकों के लिए आज बैंक बंद है। ऐसी स्थिति को किसी भी हाल में अवोइड करने निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही बैंक की पब्लिक डीलिंग का टाइम जो कि आमतौर पर सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक या कहीं सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे तक होता है, उसका जिक्र है।
इसके अलावा बैंककर्मिंयों को ये याद दिलाया गया है कि आप बैंक टाइमिंग से 15 मिनट पहले पहुंचें, जिससे कि जनता का काम जैसे कि कैश लेनदेन आदि समय से शुरू हो सके। बिजनेस हावर के दौरान कोई काउंटर खाली न होने, बैंक के वर्किंग हावर को सही से डिस्प्ले करने, लास्ट मिनट से पहले बैंक में घुसे सभी ग्राहकों को अटेंड करने की बात भी कही गई है।
यहां तक तो शायद किसी को भी आपत्ति नहीं होगी लेकिन बिंदु 6 और 7 में बैंककर्मियों के लंच को लेकर जो भी तय किया गया है, उस पर बैंक प्रबंधन को फिर से विचार करने की आवश्यकता है। सर्कुलर में लिखा है कि बैंककर्मी अपने लंच की टाइमिंग इस तरह एडजस्ट करें कि ग्राहकों का कोई काम न रूके।
बिंदु 7 में तो ये तक कह दिया गया है कि लंच बैंक का आंतरिक मामला है, इससे ग्राहक सुविधा पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। सोशल मीडिया पर यह सर्कुलर वायरल होने के बाद इसी को लेकर सबसे ज्यादा आपत्ति दिखाई दे रही हैं।
बैंककर्मियों की यूनियन वी बैंकर्स का कहना है कि मैनेजमेंट को चाहिए कि पहले बैंक में पर्याप्त स्टाफ दें फिर इस तरह के सर्कुलर जारी करें। कई यूजर्स ने तो ये भी लिखा कि अधिकतर ब्रांच में एक ही कैशियर कार्यरत है, ऐसे में कैश लेनदेन जैसे सबसे प्रमुख काम को कैसे लोगों में बांटा जा सकता है।
ट्विटर और फेसबुक पर बैंककर्मी इस सर्कुलर पर फिर से विचार करने की सलाह प्रबंधन को दे रहे हैं। नियम निर्माताओं को यह भी सोचना चाहिए कि लंच बैंक का आंतरिक मामला भले हो लेकिन यह हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। भारतीय संविधान जीवन के अधिकार को मौलिक अधिकार बताता जो कि आपातकाल में भी निलंबित नहीं किया जा सकता।
बिना भोजन तो जीवन असंभव है और सही टाइमिंग व सुकून से भोजन करने की सलाह डाक्टर भी देते हैं। ऐसे में आरबीआई हो या बैंक ऑफ बड़ौदा प्रबंधन सभी को चाहिए कि ग्राहकों की सुविधा के नाम पर ऐसे अव्यावहारिक आदेश पारित करने से बचें क्योंकि ग्राहकों की सेवा जहां बैंक का दायित्व है वहीं अपने कर्मियों के लिए प्रति भी बैंक की जिम्मेदारी है।
यदि भोजन का एक निश्चित अंतराल भी ले लिया जाए तो शायद किसी ग्राहक को भी इससे आपत्ति नहीं होगी। साथ ही लगातार काम के बीच एक गैप मिलने से बैंककर्मी पुनः नए जोश के साथ कार्य करने के लिए तैयार हो सकेंगे।