बैंक और लोनः सरकार बोले ‘मैं हूं ना‘

संपादक |

82 हजार करोड़ बांटा भी जा चुका है।
82 हजार करोड़ बांटा भी जा चुका है।

भाइयो और बहनों व्यवहार्यता का मतलब है कि लोन लेने वाला उसे समय पर चुका पाएगा या नहीं। कहीं वो भी तो छोटे मोदी और बीयर वाले बाबू की तरह रफूचक्कर नहीं हो जाएगा।

बैंक वाले भी संशय में हैं लोन दें या न दें, वजह सरकार है। कभी तो एनपीए का हंटर चलाकर बैंक को प्राइवेट करने का डर दिखाती है। कभी सट्ट से लोन देने की बात करती है। ऐसी ही बात मामला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ भी सामने आया। 

वित्त मंत्री ने कहा है कि जब हम यानी सरकार गारंटी ले रही है तो बैंक लोन लेने वाले की व्यवहार्यता न देखे। अब आप पूछोगे ये व्यवहार्यता क्या है, कैसा पत्थर सा शब्द लिख दिया जे। तो भाइयो और बहनों व्यवहार्यता का मतलब है कि लोन लेने वाला उसे समय पर चुका पाएगा या नहीं। कहीं वो भी तो छोटे मोदी और बीयर वाले बाबू की तरह रफूचक्कर नहीं हो जाएगा। 

असल में बात ये है कि मंत्री साहिबा सरकार की इमरजेंसी के्रडिट लाइन स्कीम के टारगेट की समीक्षा कर रही थीं। ये वो स्कीम है जिसके तहत एमएसएमई यानी छोटे-मोटे व्यापार करने वाले लोगों को लोन दिया जाता है। वर्तमान में कुल बकाया का 20 प्रतिशत लोन देने का प्रावधान है। 

लाॅकडाउन के दौरान सरकार ने दिल खोल दिया और जुलाई 2020 तक करीब 1 लाख 30 हजार करोड़ का लोन 100 इमरजेंसी के्रडिट के तहत देने का निश्चय किया है। इसमें से 82 हजार करोड़ बांटा भी जा चुका है। 

इसी के लिए वित्त मंत्री ने कहा कि जब हम बैंकों से कह चुके हैं कि हम गारंटी ले रहे हैं तो आपको ये देखने का मतलब ही नहीं कि किसे लोन देना है किसे नहीं। आप तो बस सटासट बांटे जाइये। 

इसी बात पर कल चाय के खोखे पर कुछ बैंक वाले बाबू मिले, वो कहने लगे जब बैंक को कुछ देखना ही नहीं तो फिर क्यों ने आधार से सीधे उनके खाते में रूपये फेंक दिए जाएं। बैंक को बीच में ला ही क्यों रहे हैं। सरकार का क्या है? बड़े सरकार तो ये भी कह चुके हैं मेरा क्या है, मैं तो झोला उठा के निकल लूंगा।


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