ब्याज पर ब्याज मामले में सरकार कल देगी हलफनामा, 5 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

टीम भारत दीप |

धमकी भरे फोन कर रहे हैं।
धमकी भरे फोन कर रहे हैं।

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मामला है और बैंक ऐसे काम कर रहे हैं मानो यह एक बहुत ही सामान्य मुद्दा हो। इस पर गंभीरता दिखाने की जरूरत है।

बैंकिंग डेस्क। लोन मोरेटोरियम पर सुप्रीम कोर्ट में हो रही अंतिम सुनवाई अब 5 अक्टूबर तक के लिए टाल दी गई है। केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान कोर्ट से समय मांगा।

केंद्र ने बीते सोमवार को उच्चतम न्यायालय को बताया था कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ऋण की किस्त टालने की अवधि के दौरान बैंकों द्वारा ब्याज वसूलने पर 2-3 दिन में फैसला होने की संभावना है।

शीर्ष अदालत ने केंद्र को रिकॉर्ड पर फैसला लाने और स्थगित किस्तों पर ब्याज को चुनौती देने वाली दलीलों को एक बैच में पार्टियों को हलफनामा देने के लिए कहा था। केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि इस मामले पर बहुत गंभीर विचार किया गया है और निर्णय लेने की प्रक्रिया काफी एडवांस्ड है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह 5 अक्टूबर को विभिन्न उद्योगों, व्यापार संघों और व्यक्तियों द्वारा दायर की गई दलीलों की सुनवाई करेगी। जनहित याचिका कोविड ​​-19 महामारी को देखते हुए ऋण की राशि पर पुनर्विचार किया जाएगा।

सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए 1 अक्टूबर तक हलफनामा दायर करने कहा था। मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों वाली बेंच कर रही है जिसमें जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एम.आर.शाह हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा बैंक इसे हल्के में ले रहे
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को कहा था कि सरकार कई आर्थिक मुद्दों पर विचार कर रही है। पीठ ने मेहता से पूछा कि क्या वह संबंधित पक्षों के समक्ष अपना हलफनामा प्रसारित कर पाएंगे, जिसके लिए वह सहमत थे?

मामले के मुख्य याचिकाकर्ता गजेन्द्र शर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव दत्ता ने कहा कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मामला है और बैंक ऐसे काम कर रहे हैं मानो यह एक बहुत ही सामान्य मुद्दा हो। इस पर गंभीरता दिखाने की जरूरत है।

मेहता ने उनसे 2-3 दिन इंतजार करने का अनुरोध किया ताकि सरकार अपना अंतिम फैसला सुना सके इसके साथ ही मेहता ने कहा, ‘मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि यह बिल्कुल भी विचाराधीन है और यह बहुत ही एडवांस्ड स्टेज पर है।‘

इस मामले में याचिकाकर्ता एडवोकेट विशाल तिवारी ने कहा कि व्यक्तिगत उधारकर्ताओं को परेशानी हो रही है और उधार देने वाली संस्थाओं से उन्हें काफी दिक्कत हो रही है क्योंकि वे अब उन्हें धमकी भरे फोन कर रहे हैं।

10 सितंबर को, शीर्ष अदालत ने अपने अंतरिम आदेश को बढ़ा दिया था ताकि किसी भी खाते को गैर-निष्पादित, एनपीए घोषित नहीं किया जा सके। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि केंद्र, आरबीआई और विभिन्न बैंकों द्वारा लिए गए निर्णयों को विचार के लिए रिकॉर्ड पर रखा जाएगा।


केंद्र ने सरकार के प्रासंगिक निर्णयों और निर्देशों के साथ-साथ भारतीय रिजर्व बैंक को एक उपयुक्त हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा था। इसमें कहा गया था कि सभी चीजों पर समग्र रूप से विचार करना होगा और सरकार सभी क्षेत्रों पर विचार कर रही है, जिसके लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया गया है। वहीं शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा था कि ठोस निर्णय स्पष्टता के साथ लिए जाएंगे।

3 सितंबर को, तनावग्रस्त उधारकर्ताओं को राहत देने के लिए जो महामारी के प्रभाव के कारण कठिनाई का सामना कर रहे हैं, उनके लिए शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस साल 31 अगस्त तक जिन खातों को गैर-निष्पादित संपत्ति घोषित नहीं किया गया है, उन्हें आगे के लिए एनपीए घोषित नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट की दलीलों ने आरबीआई के 27 मार्च के परिपत्र की वैधता से संबंधित मुद्दों को उठाया है जिसने उधार देने वाले संस्थानों को इस साल 1 मार्च, 2020 और 31 मई के बीच महामारी के कारण गिरने वाले टर्म लोन की किस्तों के भुगतान पर रोक लगाने की अनुमति दी थी। बाद में, इसकी अवधि बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी गई थी।

यह माफी मूल नियमों के खिलाफ

केंद्र ने हाल ही में अदालत को बताया था कि स्थगन अवधि के दौरान अस्थगित ईएमआई पर ब्याज की माफी फाइनेंस के मूल नियमों के खिलाफ होगी और जो भी अनुसूची के अनुसार समय पर ऋण चुकाते हैं ये उनके साथ गलत होगा।

आरबीआई हालांकि एक ऐसी योजना लेकर आया है जो कुछ तनावग्रस्त उधारकर्ताओं को दो साल के स्थगन के लिए एक अच्छा ऑप्शन साबित होगी, इस बारे में केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था।

मामले में सरकार ने पूर्व नियंत्रक व महालेखापरीक्षक राजीव महर्षि के निर्देशन में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है जो कि अधिस्थगन अवधि के दौरान ऋणों पर ब्याज की छूट के बहुचर्चित मुद्दे पर खास गौर करेगी।
 


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