बैंकिंग के इतिहास में बड़ा कदम, कोर्ट के रास्ते वी बैंकर्स को मिल गई ‘जीत‘

टीम भारत दीप |

द्विपक्षीय समझौतों के बाद माध्यम से वेतन बढ़ोत्तरी का वी बैंकर्स हमेशा से विरोध करता आया है।
द्विपक्षीय समझौतों के बाद माध्यम से वेतन बढ़ोत्तरी का वी बैंकर्स हमेशा से विरोध करता आया है।

जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार के एडिशन साॅलिसिटर जनरल ने बताया कि सरकार ने अपने 3 नवंबर के आदेश में औद्योगिक विवाद अधिनियम के सेक्शन 10 के तहत मामले का संज्ञान लिया है।

बैंकिंग डेस्क। भारत में बैंकिंग के इतिहास में बड़ा कदम देखने को मिला है। वेतन और पेंशन के मुद्दे को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर वी बैंकर्स एसोसिएशन की याचिका के बाद सरकार ने मामले का संज्ञान लिया है और इसे इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल को भेजने का निर्णय लिया है। 

बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में वी बैंकर्स की याचिका पर फैसला सुनाया गया। जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार के एडिशन साॅलिसिटर जनरल ने बताया कि सरकार ने अपने 3 नवंबर के आदेश में औद्योगिक विवाद अधिनियम के सेक्शन 10 के तहत मामले का संज्ञान लिया है। 

यानी वी बैंकर्स और इंडियन बैंकर्स एसोसिएशन के बीच वार्ता विफल होने के बाद अब मामले को नेशनल ट्रिब्यूनल को सौंपा जाएगा। यह कानून प्रावधान करता है कि दो औद्योगिक इकाइयों के बीच आपसी बातचीत के विफल होने की स्थिति में सरकार समाधान के लिए न्यायाधिकरण का गठन करे। 

वी बैंकर्स की बैंककर्मियों के वेतन और पेंशन को वेतन आयोग के दायरे में लाने की मांग है। बार-बार द्विपक्षीय समझौतों के बाद माध्यम से वेतन बढ़ोत्तरी का वी बैंकर्स हमेशा से विरोध करता आया है। 

ऐसे में सरकार के इस निर्णय के बाद कोर्ट ने माना कि सरकार ने जब इस मामले में पहल कर दी है तो याचिका को लंबित रखने का कोई कारण नहीं है। हालांकि कोर्ट ने याची को एक और राहत देते हुए ये फैसला दिया है कि याची यदि सरकार द्वारा मामले के संज्ञान की शर्तों से संतुष्ट नहीं है तो वे पुनः कोर्ट के समक्ष अपील कर सकते हैं।  


अंतिम समय में ‘खेल गई‘ सरकार 
वी बैंकर्स एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक कमलेश चतुर्वेदी ने बताया कि वे मामले में सरकार के रिफरेंस की शर्ताें से संतुष्ट नहीं हैं। सरकार ने मामले को नेशनल ट्रिब्यूनल को भेजने की जो शर्तें तय की हैं, उसमें आईबीए से वार्ता विफल होने को कारण बनाया है। 

जबकि सेक्शन 10 के तहत वे ही मामले मुंबई स्थित अधिकरण जो नियोक्ता-नियोक्ता या कर्मचारी-कर्मचारी से संबंधित हों। उनका कहना है कि आईबीए बैंककर्मियों का कोई नियोक्ता नहीं है। आईबीए स्वयं मद्रास हाईकोर्ट में कह चुका है कि वह सिर्फ सुविधा प्रदाता है। 

ऐसे में वी बैंकर्स ने रिफरेंस की शर्ताें को लेकर मामले में दोबारा अपील करने की बात कही है। कोर्ट में याचिका दायर होने के बाद सरकार के अपने आप मामले में फैसला लेने को भी वी बैंकर्स की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। 

सोशल मीडिया पर कई बैंककर्मियों का कहना है कि सरकार दबाव में तो आई लेकिन अंतिम समय में खेल कर गई। 


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