कमिशन का खेल: बाजार में ब्रांडेड दवाओं का विकल्प जेनेरिक दवाएं, फिर भी नहीं लिख रहे डॉक्टर
पहले कोरोना में उपयोग हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन और दवाओं को गायब करके मुनाफा कमाया अब ब्लैक फंगस के दस्तक देने के बाद इसमें उपयोग होने वाले इंजेक्शन बाजार से गायब हो गए है। इतना ही नहीं बाजार में भरपूर्ण मिलने वाले विटामिन-सी और डी जैसी मामूली दवाएं भी बड़ी मेहनत से मिल रही है। आक्सीमीटर और थर्मामीटर खोजना बहुत दूर बात हो गई।
लखनऊ। इस समय कोरोना वायरस अपने चरम पर है। संक्रमितों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हालांकि सरकारी आंकड़ों में संक्रमण दर कम हो, लेकिन हकीकत कुछ और है। ऐसे में अधिकांश लोग झोलाछाप और प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज कराने जा रहे है।
ऐसे में प्राइवेट डॉक्टरों द्वारा कमिशन के फेर में ब्रांडेड दवाएं लिखी जाती है तो आसानी से नहीं मिल पा रही है। क्योंकि इन दवाओं पर जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों की नजर पड़ी हुई है। ऐसे में लोग सस्ती दवाएं उपलब्ध होने के बाद भी ब्रांडेड दवाएं खरीदने को मजबूर है।
पहले कोरोना में उपयोग हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन और दवाओं को गायब करके मुनाफा कमाया अब ब्लैक फंगस के दस्तक देने के बाद इसमें उपयोग होने वाले इंजेक्शन बाजार से गायब हो गए है। इतना ही नहीं बाजार में भरपूर्ण मिलने वाले विटामिन-सी और डी जैसी मामूली दवाएं भी बड़ी मेहनत से मिल रही है। आक्सीमीटर और थर्मामीटर खोजना बहुत दूर बात हो गई।
कमिशन का खेल
जहां एक तरफ लोग बीमारी से मर रहे हैं, ऐसे में भी कुछ डॉक्टर और अस्पताल मोटा कमिशन मिलने के फेर में ऐसी दवाएं लिखते है जो कुछ गिनी-चुनी दुकानों पर मिलती है और उनका दाम भी बाजार में उपलब्ध उसी गुणवत्ता की दवा के मुकाबले ज्यादा होता है।अगर कोई परिजन उससे मिलती -जुलती दवा खरीद भी लेता है तो डॉक्टर उसको इतना सुनाते है कि दोबारा वह सस्ती दवा के चक्कर में नहीं पड़ता।
ब्रांडेड का विकल्प है जेनेरिक दवाएं
हमारे देश में ब्रांडेड दवाओं के विकल्प के रूप में जेनरिक दवाएं विकसित की गई है। जो ब्रांडेड दवाओं की तरह ही कारगर है। इसके लिए सरकार ने जगह-जगह जेनरिक दवा केंद्र खोल रखा है,लेकिन डॉक्टर जेनेरिक दवाएं न लिखकर ब्रांडेड दवाओं को तरजीह दे रहे है।
इस वजह से मरीजों के परिजनों को इलाज में काफी पैसे खर्च करने होते है। अगर डॉक्टर जेनरिक दवाएं ही इलाज के लिए लिखे तो परिजनों को काफी राहत होगी,क्योंकि ब्रांडेड के मुकाबले काफी सस्ती होती है।
भ्रम की स्थिति
डॉक्टरों द्वारा ब्रांडेड दवाएं लिखने के कारण जब परिजन मेडिकल पर दवा खरीदने जाता है तो अगर मेडिकल स्टोर संचालक महंगी दवा न होने पर सस्ती जेनरिक दवाओं का विकल्प देता है तो लोग महंगी सस्ती के चक्कर में उलझ कर रह जाते है।
लोगों में यह भ्रम हो जाता है कि महंगी दवाएं ही कारगर होंगी, इसीलिए डॉक्टर ने पर्चे पर लिखा है, जबकि यह दवाएं भी उतनी ही लाभप्रद होती है। इस भ्रम के कारण ही लोग ब्रांडेड दवाओं के चक्कर में अपनी जेबें हल्की कर रहे हैं।
जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं में अंतर
दवाओं के जानकार बताते हैं कि ब्रांडेड दवाइयां निजी कंपनियां बनाती हैं। एक विशेष नाम रखकर मूल्य निर्धारित करती हैं, जबकि जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण में सरकार का हस्तक्षेप रहता है। इसलिए इनकी कीमत कम होती है। हालांकि दोनों प्रकार की दवाओं में रासायनिकगुण एक जैसे ही होते हैं। जेनेरिक दवाएं सॉल्ट के नाम से जानी जाती हैं। मगर, ब्रांडेड दवाएं कंपनी की ओर से तय नाम से।
गुणवत्तायुक्त हैं जेनेरिक दवाएं
जन औषधि केंद्र पर बिक रही जेनेरिक दवाएं भी गुणवत्तायुक्त होती हैं। यह कहना है जिला अस्पताल के डॉ. एसके सिंह का। उन्होंने बताया कि दवाओं की कीमत से उसकी गुणवत्ता पर कोई असर नहीं होता। जेनेरिक दवाओं का मूल्य सरकार निर्धारित करती है।
इसलिए इसका मूल्य कम रहता है। मरीजों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने के लिए ही जन औषधि केंद्र खोले गए हैं। कोरोना संक्रमित हों या फिर अन्य बीमारी से पीड़ित मरीज जेनेरिक दवाओं को लेकर दिमाग में भ्रम बिल्कुल न पाले कि दवाएं सस्ती हैं इसलिए लाभ नहीं होगा।
जन औषधि संचालक डॉ. अनिल गुप्ता बताते हैं कि जेनेरिक दवाएं किसी भी मायने में ब्रांडेड से कम नहीं होती। गुणवत्ता के मामले में ये ब्रांडेड दवाओं की तरह कारगर हैं। जेनेरिक दवाओं सॉल्ट के नाम से होती हैं न कि ब्रांड नाम से। ब्रांड के चक्कर में मरीज जेनेरिक दवाओं लेने से बचते हैं, जबकि ब्रांडेड दवाओं की तरह की जेनेरिक दवाएं भी बीमारी दूर करने में लाभकारी हैं।
जेनेरिक दवाएं नहीं बिक रहीं
जेनेरिक दवाएं न बिकने का कारण डॉक्टर भी हैं, क्योंकि ब्रांडेड कंपनियां डॉक्टर को अपना ब्रांड लिखने के लिए प्रेरित करते हैं इसके लिए हर तरह से लाभ पहुंचाते हैं। मगर, जेनेरिक दवाओं में इनका कुछ फायदा होता नहीं हैं।
इसलिए जेनेरिक दवाएं लिखने में डॉक्टर परहेज करते हैं। कुछ चिकित्सक ऐसे भी हैं जो मरीज को दवा लाकर दिखाने के लिए कहते हैं। यदि मरीज लिखी गई दवा की जगह उसी सॉल्ट की अन्य कोई दवा ले भी ले तो उसे वापस यह कहकर वापस करा देते हैं कि जो लिखी है वही लेकर आओ। इससे परेशान मरीज जेनेरिक दवाएं न लेकर ब्रांडेड दवाएं खरीदकर अपनी जेब ढीली करा रहे हैं।