सरकारी Vs प्राइवेट: यहां भारी कीमत पर हर सुविधा, इस अंतर को कैसे दूर करेगी सरकार

टीम भारत दीप |
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न्यूनतम बैलेंस महीने के लास्ट में बैंक खाते में होना चाहिए।
न्यूनतम बैलेंस महीने के लास्ट में बैंक खाते में होना चाहिए।

प्राइवेट क्षेत्र के एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक की बात करें तो यहां ग्रामीण क्षेत्र के लिए कम से कम 2500 रूपये, सेमी अर्बन के लिए 5000 और शहरों में 10000 रूपये बैलेंस रखना अनिवार्य है।

बैंकिंग डेस्क। केंद्र सरकार के बजट में 2 सरकारी बैंकों को प्राइवेट करने की घोषणा ने कई बहस बैंकिंग सेक्टर और ग्राहकों के बीच छेड़ दी हैं। भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रहमण्यम का प्राइवेट बैंकों को गुड परफार्मर बताने वाला बयान भी आग में घी का काम कर रहा है। 

ट्विटर पर बैंककर्मियों और बैंक यूनियनों ने मीम और सवालों के जरिए अपना विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया हैै। उनका कहना है कि सरकारी बैंकों के मुकाबले प्राइवेट बैंकों में हर सुविधा की भारी कीमत वसूल की जाती है। ऐसे में सरकार बैंकों को तो प्राइवेट कर रही है लेकिन इन सुविधाओं को कैसे जारी रख पाएगी। 

बैंककर्मियों के इन सवालों की पड़ताल करने के लिए हमने प्राइवेट सेक्टर के दो सबसे बड़े बैंक और पब्लिक सेक्टर के सबसे बड़े बैंकों द्वारा दी जा रही सुविधाओं की पड़ताल की। इसमें हमने पाया कि सरकारी बैंक प्राइवेट से कहीं गुना बेहतर हैं। 

बचत खाता
हम सरकारी क्षेत्र के एसबीआई और बैंक आॅफ बड़ौदा की बात करें तो इसमें एसबीआई में बचत खाते में कोई मासिक न्यूनतम रूपये रखने की आवश्यकता फिलहाल नहीं है। वहीं बैंक आॅफ बड़ौदा में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 500 रूपये, सेमी अर्बन में 1000 और मेट्रो शहरों में 2000 न्यूनतम बैलेंस महीने के लास्ट में बैंक खाते में होना चाहिए। 

इसके उलट यदि हम प्राइवेट क्षेत्र के एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक की बात करें तो यहां ग्रामीण क्षेत्र के लिए कम से कम 2500 रूपये, सेमी अर्बन के लिए 5000 और शहरों में 10000 रूपये बैलेंस रखना अनिवार्य है। नहीं तो आपके खाते से पेनाल्टी के रूप में रूपये काटे जाएंगे। 

छिपे चार्जेज 
बैंक यूनियन और बैंककर्मियों का आरोप है कि प्राइवेट बैंकें अपने ग्राहकों से हर सुविधा के नाम पर कई ऐसे शुल्क काट लेते हैं जिनकी ग्राहकों को जानकारी तक नहीं होती, जबकि सरकारी बैंकों में ग्राहकों की अनुमति के बिना कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। 

इस तरह मीम बनाए जा रहे हैं।

 

इसकी पड़ताल पर हमने पाया कि ग्राहक अक्सर फार्म भरते समय बैंकों के लंबे चैड़े फार्म पर नियमों को पड़ने की जरूरत नहीं समझते। इस कारण ऐसी स्थिति आती है। 

सूचना का अधिकार 
पब्लिक सेक्टर बैंक एक लोक संपत्ति होने के कारण सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत ग्राहक द्वारा मांगी गई हर सूचना देने के लिए बाध्य हैं। प्राइवेट बैंकों में ग्राहकों के इस अधिकार का भी हनन होता है क्योंकि सूचना का अधिकार अधिनियम केवल सरकारी संस्थानों पर ही लागू है। 

इस प्रकार प्राइवेट बैंक लोकहित के प्रति उत्तरदायी न होकर स्वहित की ओर अग्रसर अधिक दिखाई देते हैं। 


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