प्रयागराज के अस्पतालों की व्यवस्थाओं की पोल खोलती कोरोना को हराने वाली डॉक्टर की जुबानी
प्रयागराज के वरिष्ठ चिकित्सक जेके मिश्रा ने एक सरकारी अस्पताल में तकरीबन पांच दशक तक पढ़ाया और लोगों का उपचार किया। उनके पढ़ाए हुए कई छात्र आज बड़े डॉक्टरों में शामिल है,लेकिन जब वह कोविड से संक्रमित हुए तो अफसोस है कि उन्हें देखने कोई सामने नहीं आया सही उपचार मिलने से वह इस दुनिया से चल बसें।
प्रयागराज। प्रदेश में कोरोना वायरस ने किस तरह तबाही मची हुई है, इसे तो वही समझ सकता है जो इसके चपेट में आया है। इससे ज्यादा बुरे हाल सरकारी अस्पतालों के है। यहां मरीजों के साथ इंसानों जैसा व्यवाहार नहीं किया जा रहा है।
व्यवस्थाएं ठी नहीं होने से मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे है। ठीक इसी तरह का दर्द सहा है प्रयागराज के एक चिकित्सक दंपती ने। पत्नी तो कोरोना को हराने में सफल हो गई, लेकिन पति ने इस दुनिया को अलविदा कहा दिया। मृतक की पत्नी ने अस्पताल की व्यवस्थाओ पर सवाल उठाते हुए जो बयान दिया है उसे पढकर आप भी सहम जाएंगे।
मालूम हो कि प्रयागराज के वरिष्ठ चिकित्सक जेके मिश्रा ने एक सरकारी अस्पताल में तकरीबन पांच दशक तक पढ़ाया और लोगों का उपचार किया। उनके पढ़ाए हुए कई छात्र आज बड़े डॉक्टरों में शामिल है,लेकिन जब वह कोविड से संक्रमित हुए तो अफसोस है कि उन्हें देखने कोई सामने नहीं आया सही उपचार मिलने से वह इस दुनिया से चल बसें। उन्होंने अपनी डॉक्टर पत्नी के सामने ही दम तोड़ दिया।
प्रयागराज के वरिष्ठ गॉयनोकोलॉजिस्ट व मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर रहीं डॉक्टर रमा मिश्रा(80) और उनके पति डॉ. जेके मिश्रा (सर्जन) दोनों कोरोना पॉजिटिव हुए। दोनों ही सरकारी चिकित्सालय में भर्ती रहे।
डॉ. रमा तो संक्रमण की जद से बाहर आ गईं, लेकिन उनके पति डॉ. जेके मिश्रा कोरोना से जंग हार गए। पति की मौत के बाद डॉ. रमा मिश्रा ने अस्पताल की सेवाओं को लेकर कई खुलासे किए जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।
पहली रात नहीं मिला बेड, फर्श पर पड़ीं रहीं
डॉ. रमा मिश्रा के मुताबिक कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पहले पति -पत्नी होम क्वारंटीन में ही रहे, लेकिन उनका ऑक्सीजन लेवल कम था। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने ही सलाह दी कि सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दीजिए। हालांकि उस अस्पताल में बेड की बहुत क़िल्लत थी। 13 अप्रैल को अस्पताल के कोविड वॉर्ड में सिर्फ एक ही बेड मिल सका।
डॉक्टर रमा मिश्रा ने बताया कि उस रात वह फर्श पर ही पड़ी रहीं। डॉ. रमा का कहना है कि उस रात डॉक्टर साहब को कोई इंजेक्शन लगाया गया, लेकिन उन्हें नहीं बताया कि कौन सा इंजेक्शन है। दूसरे दिन सुबह फिर इंजेक्शन लगा दिया।
वहां रात में हमने जो देखा, वो बेहद डरावना था। रात भर मरीज चिल्लाते रहते थे। कोई उन्हें देखने वाला नहीं था। बीच-बीच में जब नर्स आती थी या डॉक्टर आते थे, तो डांटकर चुप करा देते थे या कोई इंजेक्शन दे देते थे। उनमें से कई लोग सुबह सफेद कपड़े में लपेटकर बाहर कर दिए जाते थे।
वेंटिलेटर होता तो बच जाती जान
डॉक्टर मिश्रा ने बताया कि रात में वार्ड ब्वाय तक नहीं रहता था। केवल एक जूनियर डॉक्टर आते थे। वो भी केवल ऑक्सीजन का लेवल देखकर चले जाते थे। तीन दिनों तक यही क्रम चलता रहा। 16 अप्रैल को डॉक्टर जेके मिश्रा की तबीयत ज्यादा ख़राब हो गई, ऑक्सीजन लेवल लगातार कम हो रहा था।
एक इंस्ट्रूमेंट और लगाया गया तो उससे उनकी सांस रुकने लगी। हमने वहां मौजूद एक व्यक्ति से इस बारे में कहा तो उसने लापरवाही से जवाब दिया कि ये सब तो इस बीमारी में होना ही है। अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं था। एक महिला डॉक्टर दूसरी मंजिल से वेंटिलेटर लाने की व्यवस्था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उनके पति की मौत हो चुकी थी।
उधर अस्पताल में मरीजों के उपचार में लगे डॉक्टरों का कहना है कि डॉ. जेके मिश्रा की मौत कार्डियक अरेस्ट से हुई है। उनके इलाज में कोई कमी नहीं की गई। डॉक्टर रमा मिश्रा की दूसरी कोविड रिपोर्ट 17 अप्रैल को निगेटिव आई और रात में वो अपने घर आ गईं।