इस वज़ह से अब अप्रैल में हो सकते हैं ‘यूपी पंचायत चुनाव’

टीम भारत दीप |

आरक्षण नीति को भी अंतिम रूप दे दिया गया है ।
आरक्षण नीति को भी अंतिम रूप दे दिया गया है ।

19 मार्च को योगी सरकार के कार्यकाल को चार साल पूरे हो रहे हैं जिससे सरकार चाह रही है कि वह अपनी उपलब्धियों को जनता के बीच लेकर जा सके। इससे बीजेपी सरकार और पार्टी दोनों को फायदा हो सकता है। वहीं दूसरा कारण किसान आंदोलन को माना जा रहा है क्योंकि पश्चिमी यूपी के कुछ गांव किसान आंदोलन में शामिल थे जिसका नाकारात्मक असर योगी सरकार की छवि पर पड़ रहा था।

लखनऊ। देश  के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश  में इन दिनों पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मियां काफी तेज हैं। इस बीच खबर है कि पंचायत चुनाव की तारीख कुछ फिर आगे खिसक सकती हैं। खबर है कि सरकार पहले फरवरी के तीसरे हफ्ते से चुनाव प्रक्रिया शुरू कराना चाहती थी ताकि मार्च से मतदान शुरू होकर अप्रैल में चुनाव प्रक्रिया को समाप्त किया जा सके।

वहीं अब राजनीतिक सूत्रों के हवाले से जो बात सामने आ रही है। उसके मुताबिक चुनाव अप्रैल में शुरू हो सकते हैं। वहीं इस बार ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायत चुनाव एक साथ कराए जाने की भी बाते सामने आई हैं। जानकारी के मुताबिक आरक्षण नीति को भी अंतिम रूप दे दिया गया है । बताया गया कि 20 फरवरी के बाद आरक्षण का नया फॉर्मूला सार्वजनिक किया हो सकता है।

वहीं यूपी सरकार ने पंचायत चुनाव अप्रैल और मई के महीनों में कराने पर विचार किया और तय किया गया है कि होली से पहले यानि 26 मार्च तक पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी की जाएगी और चुनाव की त्रि-स्तरीय प्रक्रिया को अप्रैल और मई के महीनों में पूरा किया जाएगा। वहीं उत्तर प्रदेश निर्वाचन आयोग के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पूरे राज्य में चार चरणों में चुनाव होगा।

बताया गया कि एक जिले के सभी विकास खंडों को चार हिस्सों में विभाजित करके नामांकन दाखिल और मतदान की तारिखें तय की जाएंगी। वहीं एक हिस्से के मतदान से दूसरे हिस्से के मतदान में तीन दिन का अंतर रखने की भी बात सामने आई है।

बताया गया कि पंचायत चुनाव में देरी के पीछे दो कारणों पर चर्चा हो रही है जिसमें से एक है कि 19 मार्च को योगी सरकार के कार्यकाल को चार साल पूरे हो रहे हैं जिससे सरकार चाह रही है कि वह अपनी उपलब्धियों को जनता के बीच लेकर जा सके।  इससे बीजेपी सरकार और पार्टी दोनों को फायदा हो सकता है।

वहीं दूसरा कारण किसान आंदोलन को माना जा रहा है क्योंकि पश्चिमी यूपी के कुछ गांव किसान आंदोलन में शामिल थे जिसका नाकारात्मक असर योगी सरकार की छवि पर पड़ रहा था। 
 


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