अर्थशास्त्रियों की चिंता:आम लोगों को बैंक जमा पर हो रहा घाटा, ब्याज पर टैक्स खत्म करने की मांग
SBI के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष के नेतृत्व में तैयार एक नोट में अर्थशास्त्रियों ने कहा है, ऐसे हालात में ब्याज से होने वाली आय पर लगने वाले टैक्स की समीक्षा की जानी चाहिए। ‘यदि सभी जमाकर्ताओं पर टैक्स समीक्षा संभव न हो तो कम से कम वरिष्ठ नागरिकों को राहत दी जानी चाहिए।
नई दिल्ली। वर्तमान में बचत के पैसे बैंकों में रखने वाले आम निवेशकों को निगेटिव रिटर्न मिल रहा है। जिसका मतलब है कि ये रिटेल डिपॉजिटर्स बैंक डिपॉजिट से मुनाफा नहीं कमा रहे, बल्कि घाटा उठा रहे हैं। ऐसे में SBI के अर्थशास्त्रियों की चिंताएं बढ़ गई हैं। उन्होंने आम लोगों को बैंक जमा पर हो रहे नुकसान पर चिंता जताते हुए कहा कि यह बैंक के लिए भी अच्छे संकेत नहीं हैं।
उन्होंने ब्याज पर टैक्स खत्म करने की मांग भी उठाई है। SBI के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष के नेतृत्व में तैयार एक नोट में अर्थशास्त्रियों ने कहा है, ऐसे हालात में ब्याज से होने वाली आय पर लगने वाले टैक्स की समीक्षा की जानी चाहिए। ‘यदि सभी जमाकर्ताओं पर टैक्स समीक्षा संभव न हो तो कम से कम वरिष्ठ नागरिकों को राहत दी जानी चाहिए।
निगेटिव रिटर्न में बदल रही ब्याज से आय
एक सप्ताह से लेकर 10 साल तक की एफडी पर ब्याज 2.50 प्रतिशत से लेकर 5.75 प्रतिशत तक है। वरिष्ठ नागरिकों को भी 2.50 प्रतिशत से लेकर 6.50 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है। बताया गया कि FD पर औसत ब्याज 5% है। जानकार बताते हैं कि FD पर ब्याज के मुकाबले पिछले महीने खुदरा कीमतों के हिसाब से महंगाई दर 5.3 प्रतिशत रही, जो बीते चार महीनों का निचला स्तर है।
अगस्त, 2020 में तो महंगाई दर 6.69 प्रतिशत थी। जिसका मतलब है कि आम लोगों को बैंक एफडी के ब्याज से जितनी औसत आय हो रही है, उससे ज्यादा महंगाई बढ़ रही है। अर्थात ब्याज से प्रभावी आय निगेटिव हो जा रही है।
10 वर्षो में 9.25 फीसदी से घटकर 5 फीसदी पर आई ब्याज दर
साल ब्याज दर (%)
2011 9.25
2012 9.00
2013 8.75
2014 8.50
2015 8.00
2016 7.25
2017 6.50
2018 6.40
2019 6.25
2020 5.50
2021 5.00
मौजूदा व्यवस्था में यूं कट रहा टीडीएस
वर्तमान व्यवस्था के अन्तर्गत अगर ब्याज से आय 40,000 रुपए से ऊपर निकल जाती है, तो यह रकम खाते में क्रेडिट करते समय बैंक 10 प्रतिशत टीडीएस (स्रोत पर टैक्स कटौती) काट लेते हैं। वरिष्ठ नागरिकों के मामले में यह सीमा 50,000 रुपए तय है।समस्या यह है कि सरकारी नीति कुछ वर्षों से आर्थिक तरक्की पर केंद्रित हो गई है।
जिसके चलते लोन की दरें निचले स्तर पर आ गई हैं और डिपॉजिट रेट इतने कम हो गए हैं कि जमाकर्ताओं की आय काफी घट गई। जबकि उम्रदराज लोग रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए मोटे तौर पर बैंकों में जमा रकम से आय पर निर्भर रहते हैं।