गंगा दशहराः सालों बाद जब निर्मल हुईं गंगा तो दुलर्भ हो गए दर्शन
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कोरोना वायरस ने सबसे ज्यादा परेशान भारत के आस्था प्रेमी भक्तों को किया है। 24 मार्च से देश भर के पूजा स्थल बंद हैं।
कोरोना वायरस ने सबसे ज्यादा परेशान भारत के आस्था प्रेमी भक्तों को किया है। 24 मार्च से देश भर के पूजा स्थल बंद हैं। स्नान ध्यान के लिए नदी के घाटों पर भी भीड़ नहीं उमड़ रही है। सालों बाद गंगा दशहरा के पर्व पर ऐसा मौका आया जब गंगा मैया लाॅकडाउन के दौरान उद्योगों के बंद रहने के कारण खुद ही अपने पुरातन निर्मल स्वरूप में आ गईं।
गंगा तो छोडिये वर्ष भर कल कारखानों, नालों के प्रवाह के कारण कलुषित रहने वाली मां यमुना भी दिल्ली से आगरा के बीच स्वच्छ नजर आईं लेकिन विधि की विडम्बना देखिए जब मां गंगा अपने स्वच्छंद होकर धरा पर विचरण कर रही थीं तो भक्तों को उनके दर्शन तक दुर्लभ हो गए। वाराणसी, प्रयागराज, हरिद्वार आदि बारहमासी तीर्थस्थलों पर भी कम ही श्रद्धालु स्नान और आचमन के लिए पहुंचे।
बता दें कि गंगा दशहरा का पर्व पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाए जाने वाले उत्सव में श्रद्धालु पूरी श्रद्धा से भाग लेते हैं। यह दिन मां गंगा के अवतरण का दिन माना जाता है। वराह पुराण में लिखा है कि ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थीं, जो दस पापों को नष्ट करती हैं। इसीलिए इस दिन को गंगा दशहरा कहते हैं। स्कन्दपुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है, इसमें स्नान और दान तो विशेष करके करें। किसी भी नदी पर जाकर अर्घ्य (पूजादिक) एवं तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) करें तथा उस नदी की स्वच्छता का भी ध्यान रखें। तभी आपका व्रत और मां गंगा की आराधना पूरी हो पाएगी।
इस मान्यता के चलते पूर्व के वर्षाें में गंगा के घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं मिलती थी। उत्तर प्रदेश के नरौरा, सोरों, फर्रूखाबाद, वाराणसी, प्रयागराज आदि शहरों को जाने के लिए बस और रेलगाड़ी में भी जगह नहीं मिलती थी लेकिन इस बाद गंगा के सब घाट सूने हैं। प्रकृति एकांतमय होकर मां गंगा के वेग से खुद को आल्हादित कर रही है।