वैज्ञानिकों का दावा एक साल में अमृत से विष बन जाता है गंगाजल, जाने क्यों
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अभी तक धर्मशास्त्रों के अलावा वैज्ञानिकों ने भी गंगाजल को पवित्र और जीवाणुनाशक माना है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने अध्ययन करके बताया कि पवित्र गंगा जल को प्लास्टिक के कंटेनरों में रखने की वजह से जहरीला हो जाता है।
उत्तराखंड। अभी तक धर्मशास्त्रों के अलावा वैज्ञानिकों ने भी गंगाजल को पवित्र और जीवाणुनाशक माना है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने अध्ययन करके बताया कि पवित्र गंगा जल को प्लास्टिक के कंटेनरों में रखने की वजह से जहरीला हो जाता है।
हिन्दू धर्म में धार्मिक अनुष्ठानों सहित अन्य तमाम कार्यों में गंगाजल को पवित्र एवं अमृत तुल्य माना जाता है। श्रद्धालु आस्था पूर्वक गंगोत्री धाम, हरिद्वार आदि कई जगहों से भरकर घर ले आते हैं और लंबे समय तक इसका उपयोग करते रहते हैं।
इस जल को अधिकांश लोग प्लास्टिक के कंटेनरों में रखते है, जो खतरनाक सिद्ध हो रहा है इसका खुलासा जीबी पंत कृषि एव प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के रसायन वैज्ञानिकों की जांच में हुआ है। विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी ने बताया कि प्लास्टिक स्वत: एक अल्प आयु पदार्थ है।
इसमें वातावरण में विभिन्न अभिक्रियाओं के माध्यम से संरचनात्मक परिवर्तन होता रहता है। जल प्रबंधन में उपयोगी प्लास्टिक कंटेनरों के बायो डिग्रेडेबल (जैव विघटित) न होने के कारण वर्तमान में श्वेत प्रदूषण बढ़ाने के साथ इनसे निकलने वाले रसायनों से मृदा, मनुष्य एवं जानवरों का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन प्रभावित होता रहता है।
इस सहेजे गए जल के विशेष मौके पर आचमन से मनुष्य का पाचन तंत्र कमजोर होने के साथ त्वचा संबंधी विभिन्न बीमारियां, चिड़चिड़ापन एवं याद्दाश्त कमजोर होने जैसी बीमारियां पनपने लगती हैं। कई मामलों में व्यक्ति गंगाजल के उपयोग के बाद अपनी सुधबुध भी खो बैठता है।
ऐसे में प्लास्टिक कंटेनरों में गंगा जल लाने के बजाय तांबा, चीनी-मिट्टी, कांच या स्टील के बर्तनों में इसको संरक्षित किया जाना चाहिए।ऐसे जहरीला हो जाता है गंगा जल जल प्रबंधन के लिए उपयोग में आने वाले प्लास्टिक का निर्माण पॉली प्रोप्लीन, पॉली कार्बोनेट, मिट्टी, टेल्क, कार्बनिक रंगों व पीवीसी आदि अजैव विघटीय बहुलकों द्वारा किया जाता है।
यह बहुलक पेट्रोकेमिकल आधारित होते हैं, जो वातावरण में श्वेत प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।करीब एक साल बाद इस प्लास्टिक से थैलेट्स, फिलर, कार्बनिक रंग, फोटो स्टेब्लाइजर, वीऑक्सीकारक रसायनों आदि का क्षरण शुरू हो जाता है, जो गंगा जल को जहरीला बना देते है।
गंगा जल प्रबंधन के लिए प्रयोग किया गया प्लास्टिक कंटेनर लगभग एक वर्ष बाद रंग बदलते हुए पीला पड़ने लगता है। यह प्लास्टिक से रसायनों के क्षरण का ही प्रतिफल है।सरकार भी पोस्ट आफिस के माध्यम से गंगा जल प्लास्टिक के पात्रों में गंगाजल पहुंचा रही है। जो काफी दिनों तक पहले पोस्ट आफिस फिर घरों में रखा रहता है। इसलिए यह जल और जहरीला हो जाता है।