ब्रज में आज गिरिराज पूजन की धूम,लगेगा अन्नकूट का भोग, देशभर से जुटेंगे श्रद्धालु
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गिरिराज को देवों का देव कहा जाता है कि क्योकि भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज देव के पूजन की परंपरा शुरू की थी। पर्वतराज गोवर्धन यानी गिरिराजजी की विशालता श्रद्धालुओं के मन में बसी है। सात कोस में विराजमान इस देवता की दिव्यता भी अकल्पनीय है।
मुथरा। गिरिराज को देवों का देव कहा जाता है कि क्योकि भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज देव के पूजन की परंपरा शुरू की थी।
पर्वतराज गोवर्धन यानी गिरिराजजी की विशालता श्रद्धालुओं के मन में बसी है। सात कोस में विराजमान इस देवता की दिव्यता भी अकल्पनीय है। ब्रजभूमि में दीपावली से ज्यादा धूम उसके अगले दिन यानि गोवर्धन पर्वत के पूजन में देखने को मिलती है।
आज मौसमी सब्जियों, मिष्ठान और पकवानों के मिश्रण से तैयार अन्नकूट का भोग लगाया जाएगा।अन्नकूट के दिन सर्वप्रथम गिरिराज प्रभु का दुग्धाभिषेक होगा। इसके उपरांत अन्नकूट का भोग समर्पित होगा।
इसमें कई तरह की सब्जियां, मिष्ठान, कड़ी, चावल, बाजरा, रोटी, पूआ, पूरी, पकौड़ी, खीर, माखन मिश्री आदि होते हैं। गोवर्धन गिरिराज जी के साथ अग्नि, वृक्ष, जलदेवता, गोमाता सभी देवों की आराधना की जाती है।
ब्रज के घर- घर में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट यहां की पहचान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार करीब पांच हजार वर्ष पूर्व कान्हा ने देवताओं के राजा इंद्र की पूजा छुड़वाकर गिरिराज महाराज की पूजा कराई।
ग्वालों की टोली के संग कान्हा ने दीपावली पर सप्तकोसीय परिक्रमा लगाकर दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की। इससे इंद्रराज कुपित हो गए और भीषण बारिश कराने का मन बना लिया। भयंकर बारिश से ब्रज के लोग परेशान हो गए।
सभी लोग एकत्रित होकर नंद बाबा के दरवाजे पहुंचे। इसके बाद कन्हैया ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए सात दिन सात रात तक सात कोस के गिरिराज को अपने बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली पर धारण कर इंद्र का मान मर्दन किया और ब्रज वासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया।
इसके बाद गिरिराज पूजा में इतना दूध चढ़ाया गया कि ब्रज की नालिया दूध से भर गई। पूजन के पश्चात अन्नकूट का प्रसाद लगाया गया। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है।
गिरिराज पर्वत की प्रत्येक छोटी-बड़ी शिलाओं को श्रीकृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है। तलहटी के प्रमुख मंदिरों में गिरिराज प्रभु का वैभव यशोगान करता नजर आ रहा है।
हजारों विदेशी भक्त भारतीय परिधान पहन कर प्रभु नाम संकीर्तन के साथ गोवर्धन पूजा करने जाते हैं। सिर पर प्रसाद की टोकरी लिए ये भक्त दुग्धाभिषेक के उपरांत अन्नकूट प्रसाद गिरिराज प्रभु को समर्पित करते हैं। ये भक्त राधाकुंड मार्ग स्थित गौड़ीय मठ पर एकत्रित होकर पूजा स्थल पर पहुंचते हैं।