कानपुर: नई गाड़ियों को सस्ते में बेचने वाले गैंग का पर्दाफाश,यूं करते थे जालसाजी,चढें पुलिस के हत्थे
दरअसल कानपुर क्राइम ब्रांच ने शोरूम से निकलते ही 10 से 20 हजार रुपए कम कीमत में दो पहिया वाहन बेचने वाले गिरोह का खुलासा किया है। बताया गया कि यह गैंग दूसरे के दस्तावेजों पर दो पहिया वाहन फाइनेंस कराकर शोरूम से निकलते ही कम कीमत पर बेच देता था। बताया गया कि 20 फाइनेंस कराई हुई नई बाइक और स्कूटी भी बरामद की है।
कानपुर। आपके लिए एक जरूरी खबर है। कहीं आप भी तो शोरूम से निकलते ही 10 से 20 हजार कम कीमत में मिलने वाली बाइक खरीदने के चक्कर में तो नहीं हैं। यदि मिल रही है तो सतर्क हो जाएं। दरअसल कानपुर क्राइम ब्रांच ने शोरूम से निकलते ही 10 से 20 हजार रुपए कम कीमत में दो पहिया वाहन बेचने वाले गिरोह का खुलासा किया है।
बताया गया कि यह गैंग दूसरे के दस्तावेजों पर दो पहिया वाहन फाइनेंस कराकर शोरूम से निकलते ही कम कीमत पर बेच देता था। बताया गया कि 20 फाइनेंस कराई हुई नई बाइक और स्कूटी भी बरामद की है। पुलिस के मुताबिक लोगों के खातों से किश्त कटना शुरू होती तब उन्हें पता चला कि ठगों ने उनके नाम पर बाइक फाइनेंस कराई है।
मामले को लेकर डीसीपी क्राइम सलमान ताज पाटिल के मुताबिक दूसरे के कागजात पर दो पहिया वाहन फाइनेंस कराकर बेचने वाले गिरोह के सरगना ग्वालटोली निवासी संदीप राठौर को गिरफ्तार किया है। बताया गया कि उसके पास से 20 स्कूटी और बाइकें भी बरामद हुई हैं। वहीं संदीप ने पूछताछ में बताया कि बैंक कर्मियों से साठगांठ करके पूरा खेल संचालित होता था।
बताया गया कि पर्सनल लोन के नाम पर आर्थिक रूप से कमजोर लोग बैंकों के चक्कर काटते हैं। इस तरह के लोगों को शिकार बनाया जाता था। बताया गया कि उनसे लोन कराने के नाम पर आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासबुक समेत अन्य दस्तावेज झांसा देकर हासिल कर लिया जाता था।
जिसके बाद व्यक्ति को जानकारी दिए बगैर उसके कागजातों का गलत इस्तेमाल करके उनके नाम पर दो पहिया बाइक बैंक से फाइनेंस करा लेते हैं। बताया गया कि शोरूम से निकलते ही 10 से 20 हजार रुपए कम में कोई भी इसे आसानी से खरीद लेता था। खरीदने वाले को भी झांसा दिया जाता था कि किश्त भरने में सक्षम नहीं है।
इस कारण अपनी गाड़ी बेच रहा है। बताया गया कि यदि कोई विरोध करता है तो उसे 15 से 20 हजार देकर मुंह बंद कराने का प्रयास करते हैं। बताया गया कि आगे भी धीरे-धीरे रकम लौटने का वादा करते थे, मगर ऐसा करते नहीं थे। कई दिन बीत जाने के बाद फिर पीड़ित व्यक्ति की कहीं सुनवाई भी नहीं होती थी।
इधर क्राइमब्रांच की छानबीन में सामने आया है कि बैंक कर्मचारियों की साठगांठ से पूरा खेल संचालित हो रहा था। क्योंकि यदि आम व्यक्ति गाड़ी फाइनेंस कराने जाता है तो उसका वेरीफिकेशन से लेकर तमाम पड़ताल होती है, मगर ठग कागजात के दम पर खड़े-खड़े बैंक लोन करा लेते थे। बताया गया कि गैंग को प्रति वाहन 30 से 40 हजार बचते थे।
वहीं बैंक और दस्तावेज लाने वाले दलालों को भी हिस्सा जाता था। पुलिस के मुताबिक जांच जारी है। गिरोह की मदद करने वाले बैंक कर्मियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा।