#DharampalGulati: बंटवारे के बाद भारत आए, तांगा चलाया और फिर बन गए दुनिया में मसाला किंग

टीम भारत दीप |
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पिता की चाहत पूरी नहीं हुई और 5वीं के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था।
पिता की चाहत पूरी नहीं हुई और 5वीं के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था।

1947 में देश के बंटवारे ने कई परिवारों को गहरा जख्म दिया है। इस बंटवारे के दर्द का धर्मपाल गुलाटी के परिवार ने भी झेला। इनका परिवार पाकिस्तान से अमृतसर पंजाब लौटा। फिर रोजगार की तलाश में दिल्ली आकर गुलाटी ने तांगा चलाना शुरू किया। इस काम में मन नहीं लगा तो तांगा भाई को देकर मसाले बेचना शुरू किया।

नई दिल्ली। धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। बंटवारे के बाद परिवार के साथ पाकिस्तान से भारत पहुंचे। शुरूआत के दिनों में अमृतसर में कुछ दिनों तक रहे।

इसके बाद रोजगार की तलाश में दिल्ली पहुंचे। यहां तांगा चलाकर जीविका चलाने लगे। लेकिन इस काम में मन नहीं लगा तो मसाला के व्यवसाय में कदम रखा।

उनके द्वारा बनाए गए मसालों का स्वाद लोगों की खुब पंसद आने लगा पहले दिल्ली फिर देश भर में अब विश्व के कई देशों में उनके मसाले रसोई की लज्जत बढा रहे है। आइए जानते है कैसे उन्होंने मसाला​​ किंग का खिताब हासिल किया। 

1947 में देश के बंटवारे ने कई परिवारों को गहरा जख्म दिया है। इस बंटवारे के दर्द का धर्मपाल गुलाटी के परिवार ने भी झेला। इनका परिवार पाकिस्तान से अमृतसर पंजाब लौटा।  

फिर रोजगार की तलाश में दिल्ली आकर गुलाटी ने तांगा चलाना शुरू किया। इस काम में मन नहीं लगा तो तांगा भाई को देकर मसाले बेचना शुरू किया। पहला स्टोर दिल्ली में खोला। एक के बाद दो फिर धीरे-धीरे अपने मसाले के व्यवसाय को स्थापित कर दिया। आज उनका व्यवसाय विदेशों में चल रहा है।

दिल्ली आकर तांगा चलाना शुरू किया 

धर्मपाल गुलाटी के सामने दिल्ली आकर पैसा कमाना सबसे बड़ी चुनौती थी। उन दिनों धर्मपाल की जेब में 1500 रुपए ही बाकी बचे थे. पिता से मिले इन 1500 रुपए में से 650 रुपए का धर्मपाल ने घोड़ा और तांगा खरीद लिया और रेलवे स्टेशन पर तांगा चलाने लगे। कुछ दिनों बाद उन्होंने तांगा भाई को दे दिया और करोलबाग की अजमल खां रोड पर ही एक छोटा सा खोखा लगाकर मसाले बेचना शुरू किया। 

मसाले का कारोबार चल निकला 

धर्मपाल ने मिर्च मसालों का जो साम्राज्य खड़ा किया उसकी नींव इसी छोटे से खोखे पर रखी गई थी। जैसे-जैसे लोगों को पता चला कि सियालकोट की देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में हैं धर्मपाल का कारोबार तेजी से फैलता चला गया। 60 का दशक आते-आते महाशियां दी हट्टी करोलबाग में मसालों की एक मशहूर दुकान बन चुकी थी।

1959 शुरू की फैक्ट्री 

गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई थी। सियालकोट की महाशियां दी हट्टी अब दुनिया भर में एमडीएच के रुप में मसालों का ब्रैंड बन चुकी है। 


2000 करोड़ रुपये का बिजनेस  

धर्मपाल गुलाटी जी का बिजनेस एंपायर अब 2000 करोड़ रुपये का हो चुका है. उनकी कंपनी सालाना अरबों रुपयों का कारोबार करती है, लेकिन एक तांगे वाले से अरबपति बनने की उनकी ये अदभुत कामयाबी 60 सालों की कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है।

 21 करोड़ रुपये की सैलरी 

महज पांचवीं पास धर्मपाल गुलाटी एमडीएच के सीईओ के तौर पर सालाना 21 करोड़ रुपए सैलरी पाते है। उनका सैलरी पैकेज अन्य एफएमजीसी कंपनियों के सीईओ से ज्यादा है। कंपनी के मताबिक वे अपनी सैलरी का 90 फीसद हिस्सा सामाजिक कार्यों के लिए दान करते है। 

60 तरह के मसाले बनाती है एमडीएच 

पूरी दुनिया में मशहूर एमडीएच मसाले की कंपनी में 60 तरह के मसाले तैयार कर विदेशों में निर्यात किए जाते है। इस समय देशभर में एमडीएच की 15 फैक्ट्रियां हैं।

दिल्ली-एनसीआर में आधा दर्जन से अधिक फैक्ट्रियां हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि हर घर में पहचाने जाने वाले और कामयाबी के मुकाम पर पहुंचने वाले धर्मपाल केवल 5वीं पास हैं।

धर्मपाल का पढाई- लिखाई में बिल्कुल भी मन नही लगता था, जबकि उनके पिता चुन्नीलाल चाहते थे कि वह खूब पढ़ें। हालांकि, पिता की चाहत पूरी नहीं हुई और 5वीं के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था फिर पिता के साथ दुकान पर बैठने लगे थे। 
 


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