घर-घर श्रीमद भागवत गीता और महाभारत पहुंचाने वाले राधेश्याम के बारे में जानिए
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गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 है। इनमें से 780 प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं। रामचरित मानस का प्रकाशन नेपाली भाषा में भी किया जाता है।
वाराणसी। गीता प्रेस गोरखपुर के अध्यक्ष और सनातन धर्म की प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण के संपादक राधेश्याम खेमका का शुक्रवार को दोपहर साढ़े 12 बजे निधन हो गया। उन्होंने केदारघाट स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। वे 87 वर्ष के थे।
गीता प्रेस के जरिए सनातन धर्म से विश्व को परचित कराने वाले राधेश्याम खेमका को कौन नहीं जानता। मालूम हो कि 1920 के दशक में दो मारवाड़ी व्यापारियों जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस और ‘कल्याण’ पत्रिका की स्थापना की थी।
गीता प्रेस ने भगवद्गीता और तुलसीदास की करोड़ों प्रतियां छाप कर बेची। इन्होंने न केवल धार्मिक पुस्तकों को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया बल्कि घर-घर श्रीमद्भागवत गीता और रामायण को पहुंचाने में योगदान था।
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि सनातन हिंदुत्व की मान्यताओं को गीता प्रेस ने घर-घर तक पहुंचाया और हिंदुत्व पुनरुत्थानवादियों के मिशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।आज की राजनीति में जब हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान की बात होती है या घर वापसी पर बहस छिड़ती है, या गोमांस पर प्रतिबंध की मांग गर्म होती है।
इसे सीधे गीता प्रेस, कल्याण से, उनकी स्थापना के दिनों से जोड़कर देखा जा सकता है। मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ की आज भी दो लाख से ज़्यादा प्रतियां बिकती हैं. अंग्रेज़ी मासिक संस्करण ‘कल्याण कल्पतरु’ की एक लाख से ज़्यादा प्रतियां घरों तक पहुंचती हैं।
हिन्दी के अलावा कई भाषाओं में प्रकाशन
गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 है। इनमें से 780 प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं। रामचरित मानस का प्रकाशन नेपाली भाषा में भी किया जाता है।
विदेशों में भी हिन्दुओं को धर्म से जोड़ा
आपकों बता दें कि गीता प्रेस ने देश में तो धर्म प्रचार का काम किया है। इसके अलावा विदेशों में भी विदेशी भाषा जैसे फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी आदि भाषा में हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रकाशित कर वहां तक पहुंचाया।
इससे विदेशम में रह रहे भारतीयों के अलावा अन्य भी सनातन धर्म की तरफ आकर्षित हुए है। यह भी बता दें कि गीता प्रेस ने कभी भी किसी तरह का अनुदान नहीं लिया। हमेशा अपनी मेहनत की कमाई से ही लाखों कर्मचारियों को समय से वेतन देकर सफलता पूर्वक प्रकाशन किया।
87 वर्ष की उम्र में दुनिया को किया अलविदा
गीता प्रेस गोरखपुर के अध्यक्ष और सनातन धर्म की प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण के संपादक राधेश्याम खेमका का शनिवार को निधन हो गया। उन्होंने केदारघाट स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। वे 87 वर्ष के थे। वे अपने पीछे पुत्र राजाराम खेमका पुत्री राज राजेश्वरी देवी चोखानी, भतीजे गोपाल राय खेमका, कृष्ण कुमार खेमका, गणेश खेमका समेत नाती-पोतों से भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं।
गीता प्रेस को आगे बढाने में अहम भूमिका
राधेश्याम खेमका ने 40 वर्षों से गीता प्रेस में अपनी भूमिका का निर्वाहन करते हुए अनेक धार्मिक पत्रिकाओं का संपादन किया। उनमें कल्याण प्रमुख है। मृदुल वाणी के लिए प्रसिद्ध राधेश्याम खेमका के पिता सीताराम खेमका मूलतः बिहार के मुंगेर जिले से यहां आए थे।
दो पीढ़ियों से खेमका काशी निवासी रहे और धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती, पुरी के शंकराचार्य स्वामी निरंजन देव तीर्थ और वर्तमान पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद, कथा व्यास रामचन्द्र जी डोंगरे जैसे संतों से विशेष संपर्क और सानिध्य रहा।