उर्दू जगत के चर्चित साहित्यकार पद्मश्री शम्सुर्रहमान का निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर
उर्दू जगत के चर्चित साहित्यकार, कवि और आलोचक शम्सुर्रहमान फारुकी का निधन हो गया है। शम्सुर्रहमान ने 85 वर्ष की उम्र में अपने घर मे आखिरी सांस ली।
प्रयागराज। उर्दू जगत के चर्चित साहित्यकार, कवि और आलोचक शम्सुर्रहमान फारुकी का निधन हो गया है। शम्सुर्रहमान ने 85 वर्ष की उम्र में अपने घर मे आखिरी सांस ली।
शम्सुर्रहमान साहब के इंतकाल हो जाने से न सिर्फ प्रयागराज बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष के साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। अपने जीवन में उर्दू के मशहूर आलोचक और लेखक शम्सुर्रहमान फारुकी ने कई साहित्यों की रचना की है।
बता दें कि साहित्यकार शम्सुर्रहमान का जन्म 30 सितंबर 1935 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उन्होंने 1955 में इलाहाबाद विश्वविद्याल से अंग्रेजी में (एमए) की डिग्री ली थी। जानकारी के मुताबिक, शम्सुर्रहमान के पिता देवबंदी मुसलमान थे जबकि मां का घर काफी उदार था। उनकी परवरिश उदार वातावरण में हुई, वह मुहर्रम और शबे बारात के साथ होली भी मनाते थे।
बता दें कि शम्सुर्रहमान फारुकी कवि, उर्दू आलोचक और विचारक के रूप में प्रख्यात हैं। उनको उर्दू आलोचना के टीएस इलिएट के रूप में माना जाता है और सिर्फ यही नहीं उन्होंने साहित्यिक समीक्षा के नए प्रारूप भी विकसित किए हैं। वहीं उनको पद्म श्री से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा फारुकी को सरस्वती सम्मान भी प्राप्त है।
वहीं समालोचना तनकीदी अफकार के लिए उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से भी सम्मानित किया जा चुका है। बताते चले कि फारुकी का 'कई चांद थे सरे आसमां' नामक उपन्यास काफी चर्चित रहा है। इसके अलावा उन्होंने 'शेर, गैर शेर और नस्त्र', 'गंजे सोख्ता', 'सवार और दूसरे अफसाने', 'जदीदियत कल और आज' की रचना भी की है।
बता दें कि फारुकी भारतीय कवि और उर्दू समीक्षक और सिद्धांतकार के तौर पर अपनी पहचान रखते है। इसके अलावा उन्होंने साहित्य को नए आयाम भी दिए। इसके अलावा उन्होंने साहित्यिक आलोचना के वेस्टर्न सिद्धांतों को अपनाया और फिर उन्हें उर्दू साहित्य में अमलीजामा पहनाया।