4 जून को 400 पार के बाद सरकारी-बैंक कर्मचारियों हो जाना चाहिए कई कड़े फैसलों के लिए तैयार
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल को लेकर सबसे ज्यादा आशंकित सरकारी महकमा है। वह चाहे राज्य सरकार के कर्मचारी हों, केंद्रीय कर्मी, पीएसयू या बैंककर्मी सभी को नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से परहेज भले न हो लेकिन सरकारी नीतियों का डर हमेशा लगा रहा है।
संपादक। ढाई महीने तक चला चुनाव प्रचार गुरूवार 30 मई को थम गया। अब आखिरी चरण की खामोशी है। सभी दल अपने अपने दावों को लेकर आश्वस्त हैं। सत्ताधारी पार्टी जहां 4 जून को 400 पार जाने का दावा कर रही है, वहीं विपक्षी इंडी गठबंधन भाजपा की विदाई की बात जनता से कह रहा है। जनता शांत है और ईवीएम के जरिए अपनी भावनाएं लगातार व्यक्त करती जा रही है।
ऐसे में भारत दीप ने पहले मोदी 3.0 के बाद की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट तैयार की है। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल को लेकर सबसे ज्यादा आशंकित सरकारी महकमा है। वह चाहे राज्य सरकार के कर्मचारी हों, केंद्रीय कर्मी, पीएसयू या बैंककर्मी सभी को नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से परहेज भले न हो लेकिन सरकारी नीतियों का डर हमेशा लगा रहा है।
दरअसल, मोदी सरकार के बीते दो कार्यकालों में ऐसा देखने में आया है कि सरकार का रूझान सरकारी क्षेत्र के बजाय निजी क्षेत्रों के प्रोत्साहन पर रहा है। बाजार आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मोदी सरकार ने कई नीतियां लागू कीं। सरकार जब युवाओं को रोजगार की बात करती है उसमें भी उसका तात्पर्य सरकारी नौकरी से न होकर निजी क्षेत्रों में रोजगार, स्टार्टअप और एमएसएमई ईकाईयों अदि के जरिए रोजगार पैदा करने पर रहा है।
यही कारण है इस बार के चुनाव में ज्यादातर युवाओं में नौकरियों को लेकर सरकारी से नाराजगी रही है। हम उस समाज में रहते हैं, जहां नौकरी का मतलब प्रत्यक्ष रोजगार की गारंटी से है लेकिन मोदी सरकार शुरू से ही व्यावसायिक रोजगार की गारंटी देने में विश्वास करती रही है।
इन नीतियों से आशंका
अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल वाली एनडीए सरकार ने जब से पुरानी पेंशन योजना को खत्म करके नई पेंशन योजना लागू की। तब से ही एनडीए सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का ठप्पा लगा है।
वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने भी पुरानी पेंशन के मुद्दे को पूर्णतया नकार कर इसे और पुख्ता कर दिखाया। इसके अलावा सरकारी कर्मियों के कार्यस्थल माहौल को बदलने के सरकार के तरीकों को लक्ष्य आधारित कार्यक्रमों से सरकारी कर्मियों में सरकार के रवैये से नाराजगी है।
बैंककर्मियों के समान वेतन और पेंशन, 5डे बैकिंग का मुद्दा हो या शिक्षकों के अवकाश, मेडिकल और अन्य लाभकारी नीतियों पर सरकार की बेरूखी कई तरह की शंकाएं पैदा कर रही है। वर्तमान चुनावी माहौल ने सरकार ने वायदे तो कर दिए हैं लेकिन दावों पर कितना खरा उतरती है। उसका भरोसा सरकारी कर्मिंयों को कम ही है।
अब आगे
सरकारी और बैंककर्मियों का मानना है कि बीते विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी पुरानी पेंशन के मुद्दे को लगभग खत्म कर चुकी है। अब बैंकों के 5 दिन कार्यदिवस का जो माहौल सरकार ने आईबीए के माध्यम से बनाया है। उस पर तीसरी सरकार बनने पर अमल आसान नहीं दिखता।
इधर शिक्षकों के अर्जित अवकाश, मेडिकल आदि मुद्दे भी नेपथ्य मेें जाते दिखाई दे सकते हैं। इसके स्थान पर फेस आधारित उपस्थिति, टाइम एंड मोशन और कार्य के घंटों को बढ़ता हुआ सरकारी कर्मी देख रहे हैं।
मोदी जी बार-बार अपने फैसलों में जो कड़े फैसले लेने की बात दोहराते हैं। उससे सबसे ज्यादा आशंकित सरकारी महकमा ही है।