काशी में टूटी 218 वर्ष पुरानी परंपरा, पहली बार भ्रमण पर नहीं निकले भगवान जगन्नाथ

टीम भारत दीप |
अपडेट हुआ है:

भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा
भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा

इसी के साथ ही वाराणसी में 218 साल पुरानी परंपरा टूट गई है। पूरे भारत में सिर्फ वाराणसी में तीन दिन तक मनाए जाने वाला रथयात्रा महोत्सव की नहीं मनाया गया।

वाराणसी। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही जगन्नाथपुरी में रथयात्रा निकालने के लिए इजाजत दे दी, लेकिन वाराणसी जिला प्रशासन ने धर्मनगरी काशी में रथयात्रा की अनुमति नहीं दी है। इसी के साथ ही वाराणसी में 218 साल पुरानी परंपरा टूट गई है। पूरे भारत में सिर्फ वाराणसी में तीन दिन तक मनाए जाने वाला रथयात्रा महोत्सव की नहीं मनाया गया।

काशी के लक्खा मेले में शुमार भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा नहीं निकली। पखवारे भर अस्वस्थ रहने के बाद स्वस्थ होकर भी भगवान मंदिर परिसर में ही विराजमान हैं। ट्रस्ट श्री जगन्नाथ जी के अध्यक्ष दीपक शापुरी ने बताया कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए भगवान का नगर भ्रमण और रथयात्रा मेले को स्थगित किया गया है। आम जनता के स्वास्थ्य की रक्षा को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट ने यह निर्णय लिया है। पांच जून को होने वाले भगवान के स्नान में भी आम श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित था। 22 से 25 जून तक लगने वाला रथयात्रा मेला पूरी तरह से स्थगित कर दिया गया है।

जगन्नाथपुरी व काशी समेत जहां भी रथयात्रा उत्सव मनाया जाता है। रथ सड़क के मध्य सजता है, जो गर्भगृह हो जाता है। पूरे भारत में काशी ही ऐसी नगरी है, जहां तीन दिनी रथयात्रा महोत्सव मनाया जाता है। सभा, रस्म व पूजन विधान भी पुरी की तरह निभाए जाते हैं। पुरी में रथयात्रा का आरंभ गुडीचा मंदिर स्थित उनके मौसी के राजमहल के सिंहद्वार से होता है तो काशी में भगवान तीन दिनों के लिए पं. बेनीराम बाग के सिंहद्वार पर आते हैं। यहां देव विग्रहों को 14 पहिए वाले 20 फीट चौड़े व 18 फीट लंबे मंदिर नुमा अष्टकोणीय तंत्राकार रथ पर विराजमान कराकर रथ सड़क के मध्य में खड़ा किया जाता है।

सवा दो साल पहले काशी में हुई थी स्थापना 
अध्यक्ष दीपक शापुरी ने बताया कि 1780 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी व प्रबंधक पं. नित्यानंद काशी चले आए। आराध्य देव जगन्नाथ जी की प्रेरणा से पवित्र असि क्षेत्र में पुरी की ही छवि वाला काष्ठ विग्रह स्थापित किया। परंपरा का ख्याल आया तो उनके आग्रह पर पंडित परिवार ने पुरी की ही परंपरा के अनुसार भव्य देवोपम रथ का निर्माण करा कर काशी में तीन दिवसीय रथयात्रा मेले का रंग जमाया। सन 1802  से काशी में रथयात्रा मेले का आयोजन निरंतर किया जा रहा है। यह नियमित परंपरा 218 सालों से चली आ रही थी।


संबंधित खबरें