लखनऊ: माता बड़ी भुइयन देवी मंदिर में साधू—संतों का जमावड़ा, हर्षोल्लास से मनाई गई शीतला अष्टमी
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खनऊ के आईआईएम रोड,सरौरा में स्थित माता बड़ी भुइयन देवी मंदिर में सोमवार को शीतला अष्टमी के अवसर पर काफी संख्या में साधु—संत एकत्र हुए। सभी की उपस्थित में यहां पूरे हर्षोल्लास के साथ शीतला अष्टमी का धार्मिक पर्व मनाया गया।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आईआईएम रोड, सरौरा में स्थित माता बड़ी भुइयन देवी मंदिर में सोमवार को शीतला अष्टमी के अवसर पर काफी संख्या में साधु—संत एकत्र हुए। यहां पूरे हर्षोल्लास के साथ शीतला अष्ठमी का धार्मिक पर्व मनाया गया।
इस अवसर पर आचार्य अनिल पाण्डेय ने पूरे विधि—विधान के साथ पूजन—हवन सम्पन्न कराया। माता सेवक तपस्वी नागा साधू आनन्द गिरि महाराज ने बताया कि हर साल होली के त्योहार के आठवें दिन शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
इसी क्रम में आज यहां काफी संख्या में एकजुट हुए साधु—संतों के बीच यह धार्मिक पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर पूरे विधि—विधान के साथ पूजन—हवन सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर गुरू योग थाना पति महन्त मुन्ना गिरि महाराज, मायादेवी मंदिर, हरिद्वार (13 मणि सन्यासी), श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, काशी के अलावा काफी संख्या में साधू—संतों के साथ श्रद्धालु मौजूद रहे।
बीमारियों के प्रकोप से बचाती हैं माता
बताया गया कि उत्तर भारत के अधिकांश घरों में शीतला अष्टमी के दिन व्रत और शीतला माता की आराधना की जाती है। शीतला अष्टमी को बसोड़ा भी कहा जाता है। कहा जाता है कि यह शीतला माता का पर्व है इसलिए इस दिन शीतला माता की सच्चे मन से आराधना करने से चेचक, खसरा हैजा जैसे संक्रामक रोग नहीं होते हैं।
ये देवी इन बीमारियों के प्रकोप से बचाती है। इस दिन माता को बासी पकवान चढ़ाने की प्रथा है। वहीं पौराणिक मान्यता के अनुसार शीतला अष्टमी से ही ग्रीष्मकाल आरंभ हो जाता है। बताया जाता है कि शीतला अष्टमी के दिन से ही मौसम तेजी से गर्म होने लगता है। शीतला माता के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला बताया गया है।
इस व्रत का अर्थ यह है कि उस दिन के बाद बासी भोजन त्याज्य होता है। इसके साथ ही गर्मियों में साफ सफाई को विशेष महत्व दिया जाता है ताकि ग्रीष्म रोगों जैसे चेचक, खसरा आदि के प्रकोप से सुरक्षित रहा जा सके।
ऐसा है शीतला माता का स्वरूप
पौराणिक मान्याताओं के अनुसार शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना गया है। यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं। गर्दभ की सवारी किए हुए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।
बताया जाता है कि शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास प्रकार के मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है। ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं। इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है। इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है।