लखनऊ: व्याख्यानमाला में वक्ताओं ने बताया जैन धर्म का इतिहास
व्याख्यानमाला के तीसरे दिन आज धवलग्रन्थ एवं अन्य ग्रन्थों के प्रकाशन के इतिहास पर प्रकाश डालते हुये खनियाँधाना (म.प्र.) के विद्वान पं अनुभव शास्त्री ने बताया कि जयधवला एवं महाधवला ग्रंथ प्राचीन प्राकृत भाषा के ग्रंथ हैं जिनका हिन्दी भाषा में प्रकाशन अठ्ठारहवीं सदी में हुआ।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान (संस्कृति विभाग, उ.प्र.) के अन्तर्गत ‘जैन इतिहास’ पर 03 जुलाई से पाँच दिवसीय व्याख्यानमाला आयोजित की गई है। पहले दिन श्रमण संस्कृति और ऋषभदेव और दूसरे दिन जैन साधुओं पर व्यख्यान हुआ।
व्याख्यानमाला के तीसरे दिन आज धवलग्रन्थ एवं अन्य ग्रन्थों के प्रकाशन के इतिहास पर प्रकाश डालते हुये खनियाँधाना (म.प्र.) के विद्वान पं अनुभव शास्त्री ने बताया कि जयधवला एवं महाधवला ग्रंथ प्राचीन प्राकृत भाषा के ग्रंथ हैं जिनका हिन्दी भाषा में प्रकाशन अठ्ठारहवीं सदी में हुआ।
इस बाबत संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. अभय कुमार जैन ने बताया भगवान महावीर के 300 वर्ष बाद शौरसेनी प्राकृत भाषा में षट्खण्डागम की रचना हुई। यह ग्रन्थ छः भागों में है। बताया गया कि पहले पाँच भाग से धवलग्रन्थ और अन्तिम छठे भाग से जयधवल ग्रन्थ की रचना हुई। वर्तमान में इन ग्रन्थों का प्रकाशन मूलभाषा के साथ देवनागरी भाषा में हो चुका है।
वहीं संस्थान के निदेशक डॉ. राकेश सिंह ने कहा कि प्रतिदिन 120 प्रतिभागी व्याखनमाला में ऑनलाइन जुड़ कर लाभ ले रहे हैं। बताया गया कि 06 जुलाई को ऐतिहासिक जैन सम्राटों का इतिहास और 07 जुलाई को व्याखनमाला का आचार्य कुन्दकुन्द और विद्वत परम्परा पर व्याख्यान के साथ होगा।