लखनऊः नहीं रहे कौमी एकता के अलंबरदार कवि वाहिद अली ‘वाहिद’, इलाज के अभाव में टूटी सांसें

टीम भारत दीप |

उन्हें अस्पताल ले जाया गया। लेकिन यहां न तो उन्हें स्ट्रेचर मिला और न ही बेड और आखिरकार ‘वाहिद’ की सांसें टूट गई।
उन्हें अस्पताल ले जाया गया। लेकिन यहां न तो उन्हें स्ट्रेचर मिला और न ही बेड और आखिरकार ‘वाहिद’ की सांसें टूट गई।

अपनी रचनाओं के जरिए गंगा-जमुनी तहजीब की अलख जगाए रखने वाले वरिष्ठ कवि ‘वाहिद अली वाहिद’ ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। कोरोना काल में सिस्टम की बदहाली व चरमाई स्वास्थ्य व्यवस्था ने उनकी जिन्दगी निगल ली। कोरोना कहर के बीच एक के बाद एक तमाम विभूतियां इलाज के आभाव में दम तोड़ रही है। अब तक हजारों जिन्दिगयां लचर प्रशासन व बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं के कारण काल के गाल में समा चुकी है।

लखनऊ। अपनी रचनाओं के जरिए गंगा-जमुनी तहजीब की अलख जगाए रखने वाले वरिष्ठ कवि ‘वाहिद अली वाहिद’ ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। कोरोना काल में सिस्टम की बदहाली व चरमाई स्वास्थ्य व्यवस्था ने उनकी जिन्दगी निगल ली। कोरोना कहर के बीच एक के बाद एक तमाम विभूतियां इलाज के आभाव में दम तोड़ रही है।

अब तक हजारों जिन्दिगयां लचर प्रशासन व बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं के कारण काल के गाल में समा चुकी है। बावजूद इसके जमीन पर हालात बेहतर होते नहीं दिख रहे हैं। बस जमीनी हकीकत से अलहदा बड़े-बडे़ प्रशासनिक दावे जरूर आए दिन किए जा रहे हैं। इन सबके बीच हर रोज बेशर्मी के साथ मौतों का आंकड़ा पेश कर दिया जाता है।

साथ ही बड़े-बड़े दावे करना भी प्रशासनिक ढांचा नहीं भूलता। बताया जाता है कि वरिष्ठ कवि ‘वाहिद’ बीते तीन दिन से बीमार थे। उन्हें तेज बुखार था। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। लेकिन यहां न तो उन्हें स्ट्रेचर मिला और न ही बेड और आखिरकार ‘वाहिद’ की सांसें टूट गई।जानकारी के मुताबिक कवि वाहिद अली वाहिद का मंगलवार को निधन हो गया।

वह 59 साल के थे। बताया गया कि तीन दिन से उन्हें बुखार था। इलाज के लिए उन्हें लोहिया अस्पताल ले जाया गया लेकिन न तो उन्हें स्ट्रेचर मिला, न ही भर्ती किया गया। उनकी बड़ी बेटी शामिया के मुताबिक उनके पिता की तबीयत पिछले तीन दिन से खराब थी। बताया गया कि उन्हें हृदय रोग पहले से था। मंगलवार सुबह उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई।

इसके बाद आनन-फानन में उन्हें इलाज के लिए लोहिया अस्पताल ले जाया गया। लेकिन अस्पताल में उन्हें भर्ती ही नहीं किया गया और घर लौटा दिया। इसी दरम्यान उनकी सांसें टूट गईं। कवि वाहिद अली वाहिद की रचनाओं में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा का जो पुट नजर आता था, वहीं उनकी अलग पहचान बनाता था।

अपनी रचनाओं के जरिए गंगा जमुनी तहजीब की अलख जगाए रखने वाले कवि वाहिद की रचनाओं में राष्ट्रपे्रम में बखूबी देखने को मिलता था। कौमी एकता के अलंबरदार कवि वाहिद को उनकी ही एक रचना के साथ विनम्र श्रद्धांजलि..
‘युद्ध कहाँ तक टाला जाए,
तू भी राणा का वंशज है, फेंक जहां तक भाला जाए।’

 


संबंधित खबरें