इस बार कई शुभ संयोग बना रहा ‘करवा चौथ’ का पर्व, ऐसे करें पूजा, सोलह श्रृंगार का महत्व भी जानें..
सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का पर्व खास मायने रखता है। ‘करवा चौथ’ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते को अधिक मजबूत करने वाला पर्व भी है। चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है और इनकी पूजा से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है।
लखनऊ। सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का पर्व खास मायने रखता है। ‘करवा चौथ’ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते को अधिक मजबूत करने वाला पर्व भी है। चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है और इनकी पूजा से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है। साथ ही पति की आयु भी लंबी होती है।
हिंदू धर्म में अधिकतर परिवारों में सुहागिनें करवा चौथ का व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पति की उम्र बढ़ती है। इस साल 4 नंबवर को करवा चौथ का महापर्व है। इसकों लेकर बजारों में भी पर्व की पूर्व संध्या पर रौनक की अनूठी छठा बिखरी है।
करवा चौथ व्रत कुवांरी लड़कियां भी करती हैं, जिनकी शादी की उम्र हो चुकी है या शादी होने वाली है। मान्यता है कि यह व्रत सुख, समृद्धि प्रदान करने के साथ, पति को दीर्घायु का वरदान प्रदान करने वाला होता है। व्रत को लेकर महिलाएं घरों में साफ-सफाई के साथ पूजन सामग्री, फल, नये वस्त्र रंग बिरंगी चटक सुर्ख रंग की डिजाइनदार साड़ियां व सलवार सूट, पूजा की थाली, चलनी आदि के इंतजाम के साथ सजने-सवरने की तैयारियां में भी जुटीं हुई हैं।
मंगलवार को काफी महिलाओं और युवतियों ने यहां के बजारों में खूबसूरत मेहंदी लगवाईं। ब्यूटी पार्लर में भी सजने-संवरने के लिये महिलाओं में काफी उत्साह नजर आया।
हिंदू धर्म की मान्याओं के अनुसार, इस दिन पूरे 16 श्रृंगार करने से घर में सुख और सुख-समृद्धि आती है और अखंड सौभाग्य का वरदान भी मिलता है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में सोलह श्रृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग बताया गया है। आइए व्रत से पहले जानते हैं कि 16 श्रृंगार में कौन-कौन से श्रृंगार आते हैं और इनका महत्व क्या है-
बिंदीः- संस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है। भवों के बीच रंग या कुमकुम से लगाई जाने वाली बिंदी भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना जरूरी समझती हैं। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
सिंदूरः- उत्तर भारत में लगभग सभी प्रांतों में सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है और विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नी के मांग में सिंदूर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।
काजलः- काजल आंखों का श्रृंगार है। इससे आंखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन और उसके परिवार को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है।
मेहंदीः- मेहंदी के बिना सुहागन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। शादी के वक्त दुल्हन और शादी में शामिल होने वाली परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने पैरों और हाथों में मेहंदी रचाती हैं। ऐसा माना जाता है कि नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी गाढ़ी रचती है, उसका पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है।
लाल जोड़ाः- उत्तर भारत में आमतौर से शादी के वक्त दुल्हन को शादी का लाल जोड़ा पहनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में फेरों के वक्त दुल्हन को पीले और लाल रंग की साड़ी पहनाई जाती है। इसी तरह महाराष्ट्र में हरा रंग शुभ माना जाता है और वहां शादी के वक्त दुल्हन हरे रंग की साड़ी मराठी शैली में बांधती हैं। करवा चैथ पर भी सुहागिनों को लाल जोड़ा या शादी का जोड़ा पहनने का रिवाज है।
गजराः- दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार फीका सा लगता है। दक्षिण भारत में तो सुहागिन स्त्रियां प्रतिदिन अपने बालों में हरसिंगार के फूलों का गजरा लगाती है। करवा चौथ पर किए जाने वाले 16 श्रृंगार में से एक गजरा भी है।
मांग टीका-ः सिंदूर के साथ पहना जाने वाला मांग टीका जहां एक ओर सुंदरता बढ़ाता है, वहीं वह सौभाग्य का भी प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले सके।
नथः- ऐसी मान्यता है कि सुहागिन स्त्री के नथ पहनने से पति के स्वास्थ्य और धन-धान्य में वृद्धि होती है। इसलिए करवा चौथ के अवसर पर नथ पहनना न भूलें।
कर्णफूल या कान की बालियांः- सोलह श्रृंगार में एक आभूषण कान का भी है। करवा चौथ पर अपना कान सूना ना रखें। उसमें सोने की बालियां जरूर पहनें।
हार या मंगलसूत्रः- दसवां श्रृंगार है मंगलसूत्र या हार। सुहागिनों के लिए मंगलसूत्र और हार को वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है। सौभाग्य का भी प्रतीक माना जाता है।
आलताः नई दुल्हनों के पैरों में आलता देखा होगा आपने। इसका खास महत्व है। 16 श्रृंगार में एक ये श्रृंगार भी जरूरी है करवा चौथ के दिन।
चूड़ियांः- सुहागिनों के लिए सिंदूर की तरह ही चूड़ियों का भी महत्व है।
अंगूठीः- अंगूठी को 16 श्रृंगार का अभिन्न हिस्सा माना गया है।
कमरबंदः- कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने घर की स्वामिनी है।
पायलः- माना जाता है कि सुहागिनों का पैर खाली नहीं होना चाहिए। उन्हें पैरों में पायल जरूर पहनना चाहिए।
बिछियाः- पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है और दूसरी उंगलियों में पहने जाने वाले रिंग को बिछिया।
इस बार कई शुभ संयोग बना रहा ‘करवा चौथ’ का पर्व
सुहागिनों का महापर्व करवा चौथ इस साल कई शुभ संयोग के साथ मनाया जाएगा। सभी योगों में श्रेष्ठ शिवयोग सुहागिन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। साथ ही बुधवार का दिन होने से इस पर्व का महत्व ज्यादा बढ़ गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र नौटियाल बताते हैं कि बुध सौंदर्य कारक ग्रह है। इस दिन सूर्य ग्रह भी विद्यमान होंगे। इससे बुधादित्य योग का निर्माण भी हो रहा है। शिवयोग के साथ ही सर्वार्थ सिद्धि, सप्तकीर्ति, महादीर्घायु और सुख्य योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन चंद्रमा भी वृष राशि से निकलकर मिथुन राशि में संचार करेगा।
ऐसे दुर्लभ संयोग वर्षों के बाद देखने को मिल रहे हैं। वहीं ज्योतिषाचार्य अवध नारायण द्विवेदी के अनुसार करवा चौथ पर इस बार सर्वार्थ सिद्धि का योग है। चतुर्थी तिथि 3 नवंबर मंगलवार को रात 1.05 बजे शुरू हो जाएगी, जो 4 नवंबर बुधवार को रात 2.10 बजे तक रहेगी। मृगशिरा नक्षत्र के स्वामी चन्द्रमा हैं। राशि के स्वामी शुक्र और बुध हैं। इसलिये बुधवार को दिनभर सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।
पूजन का शुभ मुहूर्त
स्थिर लग्न में पूजन का मुहूर्त शाम 6.15 से रात 8.10 बजे तक है। चंद्रोदय शाम 7.57 बजे होगा। उसके बाद से पूजन-अर्चन अर्घ्य दिया जाएगा।
पूजन सामग्री
मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, पानी का लोटा, गंगाजल, चंदन, कुमकुम, रोली, दीपक, रूई, धूपबत्ती, अक्षत, फूल, कच्चा दूध, दही, देसी घी, शहद, मिठाई, चीनी का बूरा, चीनी, हल्दी, चावल, मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और दक्षिणा के पैसे।
पूजन विधि
सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करें और फिर दिन भर निर्जला व्रत रखें। दीवार पर गेरू से फलक बनाएं और भीगे हुए चावलों को पीसकर घोल तैयार कर लें। इस घोल से फलक पर करवा का चित्र बनाएं। वैसे बाजार में आजकर रेडीमेड फोटो भी मिल जाती हैं। इन्हें वर कहा जाता है।
चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। मीठे में हल्वा या खीर बनाएं और पकवान भी तैयार करें। अब पीली मिट्टी और गोबर की मदद से माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं। अब इस प्रतिमा को लकड़ी के आसान पर बिठाकर मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी और बिछुआ अर्पित करें। जल से भर हुआ लोट रखें।
करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं। अब गौरी-गणेश और चित्रित करवा की पूजा करें।
चंद्र दर्शन के बाद खोलें व्रत
करवा चौथ का व्रत रात के समय चंद्र देव की पूजा और अर्घ्य ही संपन्न होता है। छलनी पर दीया रखकर चंद्रमा को देखें और फिर पति के चेहरे को देखकर व्रत खोलें जानें की मान्यता है।