नवरात्रः अष्टमी और नवमी आज ही, दोनों दिन की पूजा और व्रत पारण का समय है ये
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कहीं कन्या पूजन तो कहीं मां की पूजा अर्चना से श्रद्धा-भक्ति की अनुपम छटा चहुंओर बिखरी है। अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा का विधान है।
धर्म डेस्क। बीते एक सप्ताह के चल रहा नवरात्र उत्सव अब पूर्णता की ओर है। हर दिन मां के अलग-अलग स्वरूप की भक्ति के साथ श्रद्धालुओं में अपार श्रद्धा दिखी। आज 24 अक्टूबर को नवरात्र के पावन उत्सव की अष्टमी व नवमी दोनों तिथि हैं।
इसे लेकर मंदिर श्रद्धालुओं की अपार श्रद्धा से परिपूर्ण नजर आ रहे हैं। कहीं कन्या पूजन तो कहीं मां की पूजा अर्चना से श्रद्धा-भक्ति की अनुपम छटा चहुंओर बिखरी है। अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा का विधान है। वहीं नवमी में मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है।
दरअसल मां दुर्गा का आठवां रूप है महागौरी। कहते हैं कि मां महागौरी की पूजा से मनचाहे विवाह का वरदान भी मिल सकता है। वहीं मां भक्तों के आर्थिक संकट भी दूर करती हैं और मनोवांछित फल भी प्रदान करती है। यह भी जान लें कि दुर्गाष्टमी पर महागौरी की पूजा पूरे विधि-विधान से करना जरूरी होता है।
पुरोहित ज्वाला मिश्र बताते हैं कि मां महागौरी की पूजा करने के लिए आप पीले वस्त्र धारण करें। पूजा आरंभ करने से पहले मां के समक्ष घी का दीपक जलाएं और फिर पूजा आरंभ करें। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें। मां महागौरी की पूजा में श्वेत या फिर पीले फूलों को अर्पित करें। मां को इत्र भी अर्पित करें क्योंकि इससे मां प्रसन्न होती है। मां की पूजा के बाद इनके मंत्रों का जाप अवश्य करें जिससे कि मां का अनुग्रह प्राप्त हो सके।
अगर मां की पूजा मध्य रात्रि में की जाय तो इसके परिणाम ज्यादा शुभ होंगे। वहीं यह भी कहा जाता है कि मां महागौरी की पूजा गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करके भी की जाती है और ऐसा करना शुभ माना जाता है। माता गौरी गृहस्थ आश्रम की देवी हैं और गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है।
मां को नारियल का भोग लगाएं। इसे सिर पर से फिरा कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से आपकी कोई एक खास मनोकामना भी पूर्ण हो सकती है। मां महागौरी की पूजा विशेष फल प्राप्ति के लिए विशेष तरीके से की जाती है।
अगर आपके विवाह में बाधा आ रही है तो लकड़ी के पटरे पर स्वच्छ पीला वस्त्र बिछाकर देवी महागौरी की प्रतिमा को स्थापित करें। स्वयं भी पीले वस्त्र धारण करके पूरे पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें। देवी महागौरी के सामने गाय के घी का दिया जलाएं और उनका ध्यान करें।
देवी मां को सफेद या पीले फूल दोनों हाथों से अर्पण करें तथा मंत्र का जाप करें। प्रसाद के रूप में देवी महागौरी को नारियल अर्पण करें। ऐसा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी और कन्याओं को सुयोग्य वर मिलता है। मां महागौरी की पूजा का महत्व बताते हुए पुरोहित ज्वाला मिश्र बताते हैं कि नवरात्र के आठवें दिन मां से शीघ्र विवाह का वरदान मिल सकता है।
साथ ही वैवाहिक जीवन भी सुखमय हो सकता है। माना जाता है कि माता सीता ने श्रीराम की प्राप्ति के लिए इन्हीं की पूजा की थी। विवाह संबंधी तमाम बाधाओं के निवारण में इनकी पूजा अचूक होती है। ज्योतिष में इनका संबंध शुक्र नामक ग्रह से माना जाता है।
अष्टमी के दिन यदि घरों में भजन कीर्तन किए जाए तो मां अम्बे काफी प्रसन्न होती है, क्योंकि मां के इस रूप को संगीत व गायन काफी पसंद होते हैं। इसलिए नवरात्र के आठवें दिन भजन कीर्तन अवश्य करना चाहिए, साथ ही छोटी- छोटी कन्याओं को एकत्रित करके उन्हें नौ देवी मान कर उनकी पूजा की जानी चाहिए।
मां महागौरी का मंत्र-
‘या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।’
मां सिद्धिदात्री की भक्ति से होती है सभी सिद्धियों की प्राप्ति
मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामथ्र्य उसमें आ जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। 1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि।
मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो मां की कृपा का पात्र बनता ही है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करना चाहिए।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अष्टमी व्रत, नवमी व्रत तथा पारण
इस बार नवरात्र व्रत, आदि अंत की तिथियों का व्रत, अष्टमी व्रत, नवमी व्रत और पारण को लेकर राजधानी लखनऊ स्थित हनुमान सेतु मंदिर के आचार्य शिवमूरत तिवारी बताते हैं कि 24 अक्टूबर को ही अष्टमी , नवमी तथा नवरात्र के अंतिम तिथि का व्रत (तीनों का व्रत) होगा।
अष्टमी के व्रत का पारण 25 अक्टूबर रविवार को प्रातः काल सूर्योदय के बाद से 11.32 बजे से पहले कर लें। वहीं नवमी, नवरात्र पर्यन्त तथा नवरात्र की अंतिम तिथि का व्रत करने वाले 25 अक्टूबर रविवार को सुबह 11.32 के बाद पारण करेंगे।
उन्होंने बताया कि अष्टमी की रात्रि में तंत्र मंत्र यंत्र की सिद्धि ,बलिकर्म करने वाले साधक निशा व्याप्तअष्टमी 23 अक्टूबर शुक्रवार की रात्रि में करेंगे।
अष्टमी में हवन करने वाले 23 अक्टूबर को दिन 12.13 बजे से २४ अक्टूबर को दिन 11.32 बजे तक कर सकेंगे, जबकि नवमी को हवन करने वाले 24 अक्टूबर को दिन 11.32 से 25 अक्टूबर रविवार को दिन 11.18 तक कर सकेंगे।
उन्होंने बताया कि हवन के बाद मंत्रात्मक विसर्जन हो जाएगा जबकि विसर्जित कलश मूर्ति इत्यादि का जल प्रवाह 26 अक्टूबर को प्रातः करना उचित रहेगा।