नवरात्र 7वां दिनः सभी भयों का नाश करने वाली मां कालरात्रि ने ऐसे लिया था अवतार

टीम भारत दीप |
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मां कालरात्रि ने असुरों का वध करने के लिए यह रूप  लिया था।
मां कालरात्रि ने असुरों का वध करने के लिए यह रूप लिया था।

इस दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। इसी क्रम में आज भक्तों ने बड़े ही श्रद्धाभाव से मां की पूजा-अर्चना की और मां से आशीर्वाद मांगा।

धर्म डेस्क। आज नवरात्र का सातवां दिन है। इस दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। इसी क्रम में आज भक्तों ने बड़े ही श्रद्धाभाव से मां की पूजा-अर्चना की और मां से आशीर्वाद मांगा। 

ज्योतिषाचार्य पंडित विष्णुकांत शस्त्री ने बताया कि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि में मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। नवरात्र में सप्तमी की तिथि को विशेष माना गया है। उन्होंने बताया कि मां कालरात्रि ने असुरों का वध करने के लिए यह रूप  लिया था। 

मान्यता है कि सप्तमी की तिथि पर विधिविधान से पूजा करने से मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। पूजा का महत्व बताते हुए पंडित विष्णुकांत शास्त्री ने बताया कि मां कालरात्रि की पूजा से अज्ञात भय, शत्रु भय और मानसिक तनाव नष्ट होता है। 

मां कालरात्रि की पूजा सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है। मां कालरात्रि को बेहद शक्तिशाली देवी माना जाता है। इन्हें शुभकंरी माता के नाम से भी पुकारा जाता है। मां कालरात्रि की पूजा रात्रि में भी की जाती है। 

मां के स्वरूप के बारे में उन्होंने बताया कि मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में बहुत ही भंयकर है, लेकिन मां कालरात्रि का हृदय बहुत ही कोमल और विशाल है। मां कालरात्रि की नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं। मां कालरात्रि की सवारी गर्धव यानी गधा है। 

मां कालरात्रि का दायां हाथ हमेशा उपर की ओर उठा रहता है। इसका अर्थ मां सभी को आशीर्वाद दे रही हैं। मां कालरात्रि के निचले दाहिने हाथ की मुद्रा भक्तों के भय को दूर करने वाली है। उनके बाएं हाथ में लोहे का कांटेदार अस्त्र है और निचले बाएं हाथ में कटार है। 

उन्होंने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में अपना आंतक मचाना शुरू कर दिया तो देवतागण परेशान हो गए और भगवान शंकर के पास पहुंचे। तब भगवान शंकर ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। 

भगवान शंकर का आदेश प्राप्त करने के बाद पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया। लेकिन, जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकले रक्त की बूंदों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए।

तब मां दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया। मां कालरात्रि ने इसके बाद रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुख में भर लिया। 

मां की पूजन-विधि के बारे में बताते हुए ज्योतिषाचार्य पंडित विष्णुकांत षास्त्री ने बताया कि मां कालरात्रि की पूजा आरंभ करने से पहले कुमकुम, लाल पुष्प, रोली लगाएं। माला के रूप में मां को नींबुओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जलाएं। 

मां को लालफूल अर्पित करें। साथ ही गुड़ का भोग लगाएं। इसके बाद मां के मन्त्रों का जाप या सप्तशती का पाठ करें। इस दिन मां की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। इससे मां प्रसन्न होती है और भक्तों को मनोवांछित फल देती हैं।

मां कालरात्रि का मंत्र-

1- या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।


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