अयोध्या में फिर निकला जमीन का जिन्न, एक ही सौदे में दो कीमत के बाद ट्रस्ट पर उठ रहे सवाल
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कानूनगो ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर इस संपत्ति पर भूतपूर्व मुतवल्ली के परिवारवालों का नाम दर्ज होता है तो उस खानदान में और लोग भी हैं। उनका नाम भी दर्ज हाेना चाहिए था। इस रिपोर्ट के बाद तत्कालीन तहसीलदार ने 29 जून 2009 को विरासत के आधार पर भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्रों के खतौनी में दर्ज हाेने वाले आदेश को स्थगित कर दिया।
लखनऊ। यूपी के अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई जमीन के मामले में राेज नए खुलासे हो रहे हैं। सपा नेता द्वारा उठाया गया मामला रोज जटील रूप लेता जा रहा है। इसको समझने के लिए दशकों पहले की जानकारी तहसीलदार द्वारा निकाली गई, उसके अनुसार पहले जमीन के मालिक को लेकर दांवपेच फंस रहे है।
इसके बाद जमीन की कीमत को लेकर मामला उलझता जा रहा है। एक मीडिया रिपोर्ट की माने तो ट्रस्ट ने 18 मार्च 2021 को दो करोड़ के राजीनामे की जमीन 18.5 करोड़ में नहीं बल्कि 26.5 करोड़ रु. में खरीदी थी। मंदिर परिसर के लिए 12,080 वर्गमीटर जमीन 18.50 करोड़ रु. में खरीदी गई, जबकि बगल में 10,370 व.मी. 8 करोड़ रु.में खरीदी गई।
सितंबर 2019 में हुए जिस राजीनामे का ट्रस्ट ने हवाला दिया है, उसमें कुल 2.3340 हेक्टेयर जमीन का जिक्र है। इनका गाटा (खसरा) नंबर 242/1, 242/2, 243, 244, 246 है। ट्रस्ट ने नंबर- 243, 244, 246 की जमीन को 18.5 करोड़ रु. में लिया। इसके लिए 17 करोड़ आरटीजीएस से दिए। जबकि नंबर- 242/1, 242/2 की जमीन का आठ करोड़ में बैनामा लिया है।
जमीन में वक्फ का भी विवाद
जमीन के पहले मुतवल्ली हाजी फकीर मोहम्मद थे। उनके बाद से यह व्यवस्था थी कि जो भी मुतवल्ली चुना जाता था, वह तहसील जाता था। नए मुतवल्ली की हैसियत से पहले वाले के स्थान पर अपना नाम दर्ज करा लेता था। इसी तरह एक के बाद दूसरे मुतवल्ली का नाम जमीन की खतौनी में दर्ज होता रहा।
इसी क्रम में महमूद आलम की मृत्यु के बाद नए मुतवल्ली अपना नाम दर्ज कराने गए। तब उन्हें पता चला कि भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज, जावेद, नूर और फिरोज बहैसियत विरासत के आधार पर अपना नाम पहले दर्ज करा चुके हैं।
इसके बाद तत्कालीन मुतवल्ली मोहम्मद आलम ने तहसीलदार के यहां एक प्रार्थना पत्र दिया। इसमें उन्होंने प्राॅपर्टी को वक्फ का बताया। विरासत के आधार और उक्त लोगों के खतौनी के कागजात को गलत बताया। उनके नाम खतौनी से निरस्त करने की मांग की। तत्कालीन तहसीलदार ने खानदान के लोगों का सजरा (वंशावली) बनवाया।
लेखपाल तथा कानूनगो के साथ मौके का निरीक्षण किया। कानूनगो ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर इस संपत्ति पर भूतपूर्व मुतवल्ली के परिवारवालों का नाम दर्ज होता है तो उस खानदान में और लोग भी हैं। उनका नाम भी दर्ज हाेना चाहिए था। इस रिपोर्ट के बाद तत्कालीन तहसीलदार ने 29 जून 2009 को विरासत के आधार पर भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्रों के खतौनी में दर्ज हाेने वाले आदेश को स्थगित कर दिया।
इसके बाद भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्रों- महफूज आदि ने 2011 में हरीश पाठक और उनकी पत्नी कुसुम तथा मोहम्मद इरफान (सुल्तान अंसारी का पिता) के साथ राजीनामा लिख दिया। यह तीन साल के लिए था। कीमत एक कराेड़ रुपए बताई गई। कुल जमीन 2.3340 हेक्टेयर दर्ज थी। इसमें खसरा नंबर- 242/1, 242/2, 243,244,246 की जमीन शामिल थी।
मंदिर परिसर के बगल की जमीन सड़क किनारे, 8 करोड़ में ही बिकी
बगल की 8 करोड़ वाली जमीन 18.5 करोड़ में ली गई जमीन से पहले और सड़क के ठीक किनारे पर आती है। इसी से सटी नजूल की जमीन भी है। दाखिल खारिज कुसुम और हरीश पाठक के पक्ष में 22 मई 2021 को किया गया है। अब बैनामा श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पक्ष में करने के पहले सुल्तान अंसारी और रविमोहन तिवारी का नाम खतौनी में दर्ज होगा।
उसके बाद ट्रस्ट का नाम मालिक के तौर पर दर्ज होगा। सौदे में बाहुबलियों के शामिल होने की खबर है। सुल्तान अंसारी समेत जिन नौ लोगों ने राजीनामा किया, उसमें इच्छाराम सिंह शामिल है। इच्छाराम के बेटे जितेंद्र बबलू बसपा विधायक रहे हैं। बाहुबली हैं। एग्रीमेंट 18 मार्च को रद्द करा दिया गया।
18.50 करोड़ रु. में तो 26,000 वर्ग मीटर जमीन आ जाती : संजय
आप नेता संजय सिंह ने इस कहा है कि आठ करोड़ रुपए में 10,370 वर्ग मीटर जमीन की कीमत को सही मान लें तो 18.50 करोड़ में करीब 26,000 वर्ग मीटर जमीन ली जा सकती थी, जबकि सिर्फ 12,080 वर्ग मीटर जमीन ही खरीदी गई।
उन्होंने सवाल उठाया कि श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट, भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिंदू परिषद जिस राजीनामे का बार-बार जिक्र कर रहे हैं, वह 18 मार्च को रद्द हो गया था। उसमें रविमोहन तिवारी का नाम नहीं था, तो बैनामे में उसका नाम क्यों शामिल कराया गया? रविमोहन तिवारी अयोध्या के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय के रिश्तेदार हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि उपाध्याय ने सात जून को भतीजे दीपनारायण उपाध्याय के नाम पर महेंद्र नाथ मिश्रा से 1.90 करोड़ रुपए की जमीन खरीदी। इसके आय के स्रोतों की जांच होनी चाहिए। सुल्तान अंसारी और रविमोहन तिवारी के खातों की जांच होनी चाहिए कि उनके खाते में जो 17 करोड़ रुपए गए तो वह कहां से गए।
ऐसे बदलती रही वक्फ बोर्ड की व्यवस्था
- 1955: हाजी फकीर मोहम्मद के इंतकाल के बाद खानदान के लोगों ने मो. रमजान को मुतवल्ली चुना। इनके नाम यह संपत्ति राजस्व अभिलेखों में उनके इंतकाल 1955 तक रही।
- 1982 : मो. फायक के नाम यह संपत्ति दर्ज हुई, जो इसके मुतवल्ली थे।
- 1986-1994 : मो. फायक के बाद मो. आलम मुतवल्ली चुने गए और उनके नाम यह संपत्ति दर्ज थी।
- 1996-2015: मो. आलम के इंतकाल के बाद मो. असलम मुतवल्ली बने। कमेटी में मकबूल अहमद, अलाउद्दीन, मो. युनुस, मो. अयूब, शकील अहमद, मो. याकूब समेत सात लोग थे।
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