निर्जला एकादशीः भोजन के शौकीन भीम को व्यास जी ने बताया उपाय
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सनातन पूजा पद्धति में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। बताते हैं इस दिन व्रत रखने वाले को सूर्योदय से अगले दिन सूर्याेदय तक अन्न और जल का त्याग करना पडता है
सनातन पूजा पद्धति में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। बताते हैं इस दिन व्रत रखने वाले को सूर्योदय से अगले दिन सूर्याेदय तक अन्न और जल का त्याग करना पडता है। कुछ व्रती इसे सूर्योदय से उसी दिन सूर्यास्त तक भी रखते हैं। हिंदू धर्म में यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा से संबंधित है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए ही भक्त इस व्रत को धारण करते हैं। बताया जाता है कि निर्जला एकादशी के व्रत से साल भर के सभी एकादशी व्रत का पुण्य मिलता है। इसलिए व्यास जी ने कुंती पु़त्र भीम को यह व्रत रखने की सलाह दी थी। निर्जला एकादशी के बारे में ऐसी कई कथाएं प्रचलित हैं-
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार महर्षि वेद व्यास पांडवों के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं और मुझसे भी व्रत रखने को कहते हैं परन्तु मैं बिना खाए रह नहीं सकता। इसलिए मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी उसकी भूख शान्त नहीं होती है। महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा। तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो। भीम ने निर्जला एकादशी व्रत किया इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।
एकादशी तिथि के महत्व को बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है-''मैं वृक्षों में पीपल एवं तिथियों में एकादशी हूँ''। एकादशी की महिमा के विषय में शास्त्र कहते हैं कि विवेक के समान कोई बंधु नहीं और एकादशी के समान कोई व्रत नहीं। पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्म इन्द्रियाँ और एक मन इन ग्यारहों को जो साध ले,वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है।
मान्यता यह भी है कि श्री श्वेतवाराह कल्प के आरंभ में देवर्षि नारद की विष्णु भक्ति देखकर ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। नारद जी ने आग्रह किया कि हे परमपिता! मुझे कोई ऐसा मार्ग बताएँ जिससे मैं श्री विष्णु के चरणकमलों में स्थान पा सकूं। पुत्र नारद का नारायण प्रेम देखकर ब्रह्मा जी श्री विष्णु की प्रिय निर्जला एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। नारद जी ने प्रसन्नचित्त होकर एक हज़ार वर्ष तक निर्जल रहकर यह कठोर व्रत किया। हज़ार वर्ष तक निर्जल व्रत करने पर उन्हें चारों तरफ नारायण ही नारायण दिखाई देने लगे। परमेश्वर की इस माया से वे भ्रम में पड़ गए कि कहीं यही तो विष्णु लोक नहीं। तभी उनको भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुए,उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति का वरदान देते हुए अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया और तभी से निर्जल व्रत की शुरुआत हुई।
एक साल में 24 एकादशी पड़ती है। अगर मलमास रहे ( जिसे अधिकमास भी कहते हैं ) तो 26 एकादशी पड़ती है। हर एक एकादशी का विशेष महत्व है और सभी एकादशियों का व्रत फल भिन्न-भिन्न होता है। इन एकादशियों में सबसे अधिक निर्जला एकादशी की मान्यता है। इस एकादशी का अति विशेष महत्व इसलिए है, क्योंकि ज्येष्ठ महीने में सूर्य देव का प्रकोप बढ़ जाता है। खासकर नवतपा के दिनों में भीषण गर्मी पड़ती है। इससे शरीर में जल की कमी होने लगती है। इस समय में भूखे-प्यासे दिन भर भगवान का स्मरण करना कठिन साधन है। इसे साधक (साधन में स्थिर) ही कर पाने में सक्षम हो पाते हैं।