नाक की लड़ाई हुई कैराना: यूपी में कड़े मुकाबले के बाद भाजपा को पहुंचाती रही है फायदा

टीम भारत दीप |

कैराना जैसी सीट पर भाजपा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती।
कैराना जैसी सीट पर भाजपा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती।

यूपी चुनाव में भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। रंगदारी नहीं देने पर व्यापारियों की हत्या के बाद शुरू हुए पलायन का मुद्दा भाजपा के स्वर्गीय सांसद हुकुम सिंह ने मई 2016 में उठाया था। उन्होंने कैराना से पलायन करने वाले करीब 394 व्यापारियों की सूची जारी की थी।

शामली। यूपी विधान सभा चुनाव राजनीतिक दल अपने सभी दांव चल रहे है। इसी क्रम में कल गृहमंत्री अमित शाह ने कैराना में घर-घर जाकर  भाजपा को वोट देने की अपील कर रहे हैं। चुनाव आयोग के नियमों की वजह से पहली बार राजनीतिक दल बड़ी रैली, रोड शो न करते हुए घर -घर जा कर वोट मांग रहे है। 
 
यूपी चुनाव में भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। रंगदारी नहीं देने पर व्यापारियों की हत्या के बाद शुरू हुए पलायन का मुद्दा भाजपा के स्वर्गीय सांसद हुकुम सिंह ने मई 2016 में उठाया था। उन्होंने कैराना से पलायन करने वाले करीब 394 व्यापारियों की सूची जारी की थी। यह मुद्दा पूरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर गूंजा था।

सांसद हुकुम सिंह द्वारा जारी की गई व्यापारियों की सूची सत्यापन के लिए भाजपा की संसदीय समिति कैराना पहुंची थी। पलायन की पुष्टि होने पर भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा बनाया था। माना जाता है कि पलायन के मुद्दे से ही यूपी में भाजपा सत्ता में आई थी।

भाजपा ने इसे अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया था। 2018 में कैराना के उपचुनाव में सीएम योगी आदित्यनाथ ने शामली में हुई रैली में पलायन के मुद्दे को उठाते हुए कैराना और कांधला के बीच पीएसी कैंप और फायरिंग रेंज बनाने की घोषणा की थी। बाद में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने पर कुख्यात मुकीम काला और साथी साबिर जंधेड़ी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

कैराना में 1996 में भाजपा की एंट्री

बात अगर कैराना सीट के इतिहास की बात करे तो सभी राजनीतिक सभी दलों को  शुरू से फायदा पहुंचाती रहती है। कैराना शुरू से कानून व्यवस्था को लेकर चर्चा में रहा है। यूपी में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का कैराना केंद्र है। इस सीट पर भाजपा की एंट्री 1996 में हुई। इससे पहले यहां भाजपा नहीं थी।

हुकुम सिंह जब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए तो यह सीट भाजपा को लगातार मिलने लगी। हुकुम सिंह चार बार भाजपा के टिकट पर कैराना सीट जीते। तीन बार वह कांग्रेस, जेडी आदि दलों से जीते।

हुकुम सिंह का विकल्प न भाजपा के पास रहा और न ही विपक्ष के पास। कैराना की सियासत दो-तीन लोगों के इर्द-गिर्द ही रही है। 1977 से 2017 के बीच हुकुम सिंह, मुनव्वर हसन, राजेश्वर बंसल, बशीर अहमद और अब नाहिद हसन विधायक रहे।

कांटे की सीट

आपकों बता दें कि कैराना की सीट हमेशा से ही कांटे की रही। मुस्लिम आबादी यहां काफी है। इसलिए, यहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हावी रहता है। हार जीत का अंतर भी कम रहता है। वोट प्रतिशत में यही स्थिति है। कैराना जैसी सीट पर भाजपा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती। वह यहां की सर्वाधिक जीत हासिल करने वाली पार्टी है। 1996 से 2012 तक उसका ही कब्जा रहा।

भाजपा में आने के बाद हुकुम सिंह ने पलायन को मुद्दा बनाया। उस वक्त यहां के कारोबारियों ने आरोप लगाया कि उनसे रंगदारी मांगी जाती है। कुछ लोगों ने अपने मकानों पर 'मकान बिकाऊ' भी लिख दिए। हुकुम सिंह ने संसद में इस मुद्दे को उठाकर भाजपा को वेस्ट यूपी में फायदा पहुंचा दिया।

वही कॉलोनी, वही पलायन

गृहमंत्री अमित शाह का दौरा उसी टीचर्स कॉलोनी से शुरू हुआ, जहां के लोगों ने किसी वक्त हुकुम सिंह से खराब कानून-व्यवस्था की शिकायत की थी। तभी वहां पलायन का मुद्दा गर्माया था।

पलायन को मुद्दा बनाने वाले बाबू हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को भाजपा ने फिर टिकट दिया है। सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी नाहिद हसन के जेल जाने के बाद उनकी बहन इकरा हसन ने भी पर्चा भरा है। 2017 की तरह ही कैराना भाजपा और सपा के बीच संग्राम के आसार हैं।

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