कोरोना के सभी मरीजों में नहीं बनती एंटीबॉडी, बीआरडी के शोध को मिली अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता
यह शोध माइक्रोबायोलॉजी विभाग में दोबारा संक्रमित हुए तीन लैब टेक्नीशियन के ऊपर किया गया था। इनमें से दो में एंटीबॉडी नहीं बनी थी। इस शोध के रिसर्च पेपर को लंदन के जर्नल ऑफ एडवांस इन मेडिसिन एंड मेडिकल रिसर्च ने स्वीकार कर लिया है। इसके बाद बीआरडी के शोध पर अंतरराष्ट्रीय वैधता की मुहर लग गई है। इसे लेकर शोधकर्ता में काफी उत्साह भी है।
गोरखपुर। कोरोना पॉजिटिव पाए गए सभी मरीजों में ठीक होने के बाद एंटीबॉडी नहीं बनती। इस बात का खुलासा बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में शोध के दौरान हुआ है। यह शोध माइक्रोबायोलॉजी विभाग में दोबारा संक्रमित हुए तीन लैब टेक्नीशियन के ऊपर किया गया था।
इनमें से दो में एंटीबॉडी नहीं बनी थी। इस शोध के रिसर्च पेपर को लंदन के जर्नल ऑफ एडवांस इन मेडिसिन एंड मेडिकल रिसर्च ने स्वीकार कर लिया है। इसके बाद बीआरडी के शोध पर अंतरराष्ट्रीय वैधता की मुहर लग गई है। इसे लेकर शोधकर्ता में काफी उत्साह भी है।
बताया जा रहा है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में कोरोना संक्रमण के नमूनों की जांच होती है। जहां काम करने वाले तीन टेक्नीशियन एक माह में दोबारा संक्रमित हो गए थे। ऐसा होने पर विभाग के मुखिया को एंटीबॉडी को लेकर संदेह हुआ।
फिर क्या था विभाग ने अपने इन टेक्नीशियनों का सैंपल लिया और एंटीबॉडी टेस्ट किया, जिनमें एंटीबॉडी बनी ही नहीं थी। इस शोध से यह निष्कर्ष निकला कि कोरोना संक्रमित ऐसे लोग दोबारा संक्रमित हो सकते हैं, जिनके अंदर एंटीबॉडी नहीं बन रही।
इसी कारण से लैब में 200 अन्य मरीजों पर अपना शोध प्रारंभ किया गया जिसके बाद में चैकाने वाले नतीजे सामने आए। लगभग 3 महीने के अंदर 200 अन्य मरीजों पर किए गए शोध से पता चला कि 10 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी बन ही नहीं रही। 4 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी बिल्कुल नहीं बनी, जबकि 6 फीसदी में यह पर्याप्त मात्रा में नहीं पाई गई।
चिकित्सकों के मुताबिक इन लोगों के दोबारा संक्रमित होने का खतरा है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ अमरेश सिंह के मुताबिक जर्नल आफ एडवांस इन मेडिसिन एंड मेडिकल रिसर्च ने उनके रिसर्च पेपर को स्वीकार करके उनके शोध को प्रमाणिकता प्रदान किया है। जिससे यहां के शोध को अंतरराष्ट्रीय महत्व मिला है।