गरीब की बेटी ने जूते मांगकर शुरू की प्रेक्टिस, मां ने कर्ज लेकर दिया हौसला तो बनाया नेशनल रिकाॅर्ड
मुनिता ने बताया कि गांव की एक लड़की के साथ साल 2016 में पहली बार दौड़ने गई थी। जब यह बात पिता को पता चली तो उन्होंने पहले मना किया, लेकिन बड़ी बहन पूजा और मां राशमनी ने हौसला बढ़ाया और मुझे खेलने की इजाजत दी। तब बहन ने कहा था कि केवल एक यही रास्ता है, जिससे तुम गांव से बाहर निकलकर कुछ कर सकती हो।
वाराणसी । वाराणसी की रहने वाली एक मजदूर की बेटी ने मुनिता प्रजापति ने 36वीं राष्ट्रीय जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप गुवाहाटी में 10 फरवरी को 10 किमी वॉक रेस में एक नया नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करके अपने माता-पिता का मान बढाया है।
मां ने फैलाए रिश्तेदारों के सामने हाथ
मुनिता को यहां तक पहुंचाने में उसके परिवार ने काफी संघर्ष किया। उसे एथलीट बनाने के लिए उसके पिता ने मजदूरी तो मां ने रिश्तेदारों के सामने हाथ फैलाने से भी नहीं संकोच किया। घर की हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि उसे नए जूते दिला सके।
उसकी गरीबी को देखते हुए गांव के बड़े भाइयों ने जूते दिए। आज भी उसके घर की हालत ठीक नहीं है। फिर भी मुनिता के हौंसले बुलंद है वह देश का नाम रोशन दुनिया भर में करना चाहती है। एक हिन्दी दैनिक अखबार को फोन पर हुई बातचीत में मुनिता ने बताया कि यदि सरकार मुझे एक जॉब दिला दे तो परिवार की देखभाल के साथ और मेहनत आगे कर पाऊं।
बहन ने दिखया आसमान में उड़ने का रास्ता
मुनिता ने बताया कि गांव की एक लड़की के साथ साल 2016 में पहली बार दौड़ने गई थी। जब यह बात पिता को पता चली तो उन्होंने पहले मना किया, लेकिन बड़ी बहन पूजा और मां राशमनी ने हौसला बढ़ाया और मुझे खेलने की इजाजत दी।
तब बहन ने कहा था कि केवल एक यही रास्ता है, जिससे तुम गांव से बाहर निकलकर कुछ कर सकती हो। मैं भी ये जानती थी कि अपने परिवार की मुश्किलों को खत्म करने के लिए मुझे कुछ करना होगा। गांव के बड़े भैया ने मुझे जूते दिए। मेरा परिवार एक ही कमरे में रहता है। बड़ी बहन पूजा की शादी हो चुकी हैं।
2017 में साई हॉस्टल के लिए हुआ चयन
मुनिता बताया कि 2017 में भोपाल स्थित साई हॉस्टल का ट्रायल था। मां ने अपने बहनों से कर्ज लेकर मुझे भेजा था। मेरे ऊपर बेहतर करने व हर हाल में सफल होने का दबाव था। मैंने जीवन का आखिरी ट्रायल मानकर अपना सबकुछ झोंक दिया, मेरी मेहनत सफल हुई मेरा चयन हो गया। इससे मेरे रहने.खाने और किट की चिंता दूर हो गई।
फिर भी दूसरी जरूरतों के लिए मां और पिता पैसे देते रहे। बड़ी बहन चंदा की शादी तय हो गयी है। मां फिर से रिश्तेदारों से कर्ज लेने को कह रही हैं। सरकार मेरी मदद मुझे जॉब दिलाकर कर सकती है। ताकि मेरे मां.बाप को हाथ न फैलाना पड़े।
मां राशमनी ने बताया कि परिवार में तीन बेटियां व एक बेटा है। मुनिता अपने बहन-भाइयों में तीसरे नंबर की है। उसने जब खेलना शुरू किया तो गांव में कई लोगों ने तंज भी कसा। काफी विरोध भी झेलना पड़ा। पैसों का भी काफी अभाव था। लेकिन मेरी बहनों ने सहारा दिया।
लेकिन आज सभी तपस्या सफल हो चुकी है। बेटी के नाम से गांव की पहचान बन गयी। मुनिता ने इंटर तक पढ़ाई किया है। कुछ कर्ज अभी भी है। बेटी चंदा की शादी के लिए मेरे पति बिरजू दिन रात मेहनत कर रहे हैं।
पिता भी दिव्यांग, रोज नहीं मिलता काम
दस साल पहले मुनिता के पिता के पैर की अंगुली कट गई2011 में मुनिता के पिता बिरजू मुंबई में बिजली का काम कर रहे थे। करंट लगने की वजह से दाहिने पैर की दो अंगुली कट गई और हाथ भी खराब हो गया।
दिव्यांग होने के बाद भी वो मजदूरी करने रोज शहर को जाते हैं। काम भी रोज नहीं मिलता। जमीन के नाम पर छोटा सा टुकड़ा है। जिससे इतना अनाज नहीं होता कि परिवार चल सके। छोटा बेटा किशन पढ़ाई करता है।