निजीकरण की आंधी और काॅमन एलिजिबिलिटी टेस्ट
अब अगर आपको सरकारी नौकरी करनी है तो ये टेस्ट पास करना ही होगा। इसके बिना आप किसी सरकारी सेक्टर में तो जा ही नहीं पाएंगे।
कोरोना संकट के बीच कभी बैंकों के निजीकरण की खबरें आती हैं तो कभी एयरपोर्ट बिकते सुनाई देते हैं। रेलवे तो जैसे लगता है अब पीपीपी पर ही चलेगा। 90 स्टेशन निजी हाथों में दिए जाने की खबर है।
कोरोना संकट में इलाज के लिए हाथ खड़े कर चुके और लूट मचाते प्राइवेट अस्पताल हम देख ही रहे हैं। इसी बीच खबर है कि सरकार ने सरकारी नौकरी के लिए एक टेस्ट यानी काॅमन एलिजिबिलिटी टेस्ट की घोषणा कर दी है।
इसका प्रचार यूं हो रहा है कि हर सरकारी नौकरी के लिए अब एक ही टेस्ट होगा लेकिन दूसरा पक्ष ये भी है कि अब अगर आपको सरकारी नौकरी करनी है तो ये टेस्ट पास करना ही होगा। इसके बिना आप किसी सरकारी सेक्टर में तो जा ही नहीं पाएंगे।
यानी ये टेस्ट सरकारी नौकरी के लिए आपकी योग्यता मात्र है। इससे पहले सीटीईटी यानी काॅमन टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट और टीईटी यानी टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट देख चुके हैं।
सीटीईटी का आलम ये है कि यह टेस्ट भी केवल शिक्षक भर्ती के लिए स्क्रीनिंग मात्र बन कर रह गया है। सीटीईटी को मान्यता देने वाला हर राज्य शिक्षक भर्ती के लिए अलग से परीक्षा लेता ही है। उत्तर प्रदेश में टीईटी के बाद भी सरकार ने लिखित परीक्षा को आखिरकार लागू कर ही दिया है।
काॅमन एलिजिबिलिटी टेस्ट की ये बात हम मान सकते हैं कि इससे आपको रेलवे, एसएससी, बैंक आदि के लिए अलग से स्क्रीनिंग एग्जाम नहीं देने होंगे। लेकिन, रेलवे में भर्ती कहां हैं, एसएससी के अंतिम परिणाम सालों से लंबित हैं, सरकारी बैंक केवल 12 बचे हैं उनको भी घटाकर आप 5 करना चाहते हैं।
तो सवाल यहां रोजगार का है, न कि टेस्ट का। भर्तियां अभी भी टेस्ट से ही हो रही थीं। ऐसे में सिर्फ नया टेस्ट रख देना कोई हल नहीं जान पड़ता है। रही बात पारदर्शिता की तो काॅमन टेस्ट के नाम पर टीईटी और सीटीईटी में धांधली की खबरों से कौन वास्ता नहीं रखता है। इसी के उपचार के रूप में तो राज्यों को अलग से टेस्ट कराने पर मजबूर होना पड़ा है।
दूसरा शिक्षक बनने जा रहे अभ्यर्थी, क्लर्क बनने जा रहे अभ्यर्थी और अफसर बनने जा रहे अभ्यर्थी का एक ही टेस्ट से आकलन कैसे संभव है। ऐसे में जरूरत टेस्ट बनाने की नहीं, भर्ती प्रक्रियाओं को सुगम बनाने की है।
जब काॅमन एलिजिबिलिटी टेस्ट पास करके अभ्यर्थी फिर से एसएससी की लेटलतीफी से मुखातिब होंगे ही तो ऐसे में इस टेस्ट का मतलब खो देंगे। अभ्यर्थी टेस्ट की संख्या से परेशान नहीं है। वह परेशान है तो किसी भी टेस्ट का परिणाम न आने से।
अभ्यर्थी परेशान है तो निजीकरण की खबरों से। सरकार को चाहिए कि पहले तो निजीकरण को लेकर अभ्यर्थियों के मन में बैठे डर को निकाले। इसके बाद फंसे हुए परिणामों को क्लियर करने का रास्ता दिखाए।
काॅमन एलिजिबिलिटी टेस्ट की सार्थकता तभी है जब अभ्यर्थी रोजगार पा सके। वरना हुजूर, हर बच्चा लायक है और कुछ न कुछ करने की योग्यता रखता ही है। इसलिए योग्यता मत मापिए, रोजगार दीजिए सरकार।