एसबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा के लिए खुशखबरी, पहली बार सरकार दे सकती है बड़ा ईनाम
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मुंबई की दलाल स्ट्रीट में तो ये खबर आग की तरह फैल गई और बुधवार को देखते ही देखते पब्लिक सेक्टर बैंकों के शेयर में खुशी से उछल पड़े।
व्यापार डेस्क। भारत में बैंकिंग के इतिहास में पहली बार ऐसा होने जा रहा है। खबर अंदरखाने की है लेकिन तमाम मुद्दों को लेकर सरकार से नाराज रहने वाले बैंककर्मियों को खुश कर सकती है। हालांकि ये खुशखबरी केवल दो बैंकों के लिए है, लेकिन घर के बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि खुशियां आने दो एक बार आएंगी तो सबके हिस्से में होंगी।
तो भैया बात ये है कि भारत सरकार इस समय बहुत खुश है। दनादन रूपये बांटने के बाद उसका दिल बैंकवालों पर भी आ गया है। सोचा कितना काम करते हैं तो इनको भी ईनाम दिया जाए। लेकिन ये ईनाम है केवल उनके लिए जो अपने काम में टाॅपर हैं। बाकी पर डंडा सतर है और कभी भी बरस सकता है।
मुंबई की दलाल स्ट्रीट में तो ये खबर आग की तरह फैल गई और बुधवार को देखते ही देखते पब्लिक सेक्टर बैंकों के शेयर में खुशी से उछल पड़े। निफ्टी ने 4 प्रतिशत की छलांग लगाई और नेशनल स्टाॅक एक्सचेंज में पब्लिक सेक्टर बैंकों को 1 से 5 प्रतिशत का फायदा हुआ।
तो भाईयो और बहनों खबर ये है कि भारत सरकार देश के इतिहास में पहली बार दो बैंकों को रत्न कंपनी का दर्जा दे सकती है। ये ईनाम पाने वाले बैंक होंगे भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा। अब ये कौन से रत्न होंगे इस पर फैसला अभी होना बाकी है।
इस ईनाम का कारण दोनों बैंकों की व्यापारिक बढ़त है। एसबीआई के शेयर में 5 प्रतिशत की बढ़त देखी गई है, वहीं बैंक ऑफ बड़ौदा की 4.6 प्रतिशत है। पंजाब नेशनल बैंक 3.2 प्रतिशत और बाकी के बैंक 1 से डेढ़ प्रतिशत के बीच में हैं।
आपको बता दें कि एसबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा ही दो ऐसे पब्लिक सेक्टर बैंक हैं जिनमें सरकार की हिस्सेदारी सबसे कम है। फिर भी ये दोनों अच्छे बच्चों की तरह परिवार का नाम रोशन कर रहे हैं।
रत्न कंपनी का मतलब है ये
जैसे राजा विक्रमादित्य के दरबार में नव रत्न होते थे। जैसे जिल्लेइलाही बादशाह अकबर के दरबार में होते थे, यानी हुजूर के लाड़ले जिनकों आम जनता से कुछ ज्यादा आजादी होती थी। वैसे ही आजादी के बाद भारत सरकार ने औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार के हिस्सेदारी वाली कंपनियों को रत्न का दर्जा दिया। ये दर्जा उनको होने वाले फायदे के आधार पर दिया गया।
1997 में पहली बार पब्लिक सेक्टर की नौ कंपनियों को नवरत्न का दर्जा मिला। इन्हें अन्य कंपनियों की तुलना में अपनी रकम खर्च करने की आजादी दी गई। यानी ये कंपनियां बिना सरकार के हस्तक्षेप के पैसा अपने किसी प्रोजेक्ट में लगा सकती हैं।
इसके बाद 2010 में महारत्न का दर्जा आया। इन्हें और ज्यादा आर्थिक स्वतंत्रता दी गई। इसके अलावा मिनीरत्न-1 और मिनीरत्न-2 का टाइटल भी सरकार कंपनियों को देती है, हालांकि इनको महारत्न और नवरत्न की तुलना में कम आजादी होती है। आजादी के समय पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की संख्या केवल पांच थी। मार्च 2019 में यह 348 हो गई।