इमरान को झटका: खैबर पख्तूनख्वा के स्थानीय निकाय चुनावों में झेलनी पड़ी हार
इमरान खान को पीएम का पद सेना की मदद से ही मिला था और माना जाता है कि दोनों के बीच करार हुआ था कि वे किन मसलों पर दखल दे सकेंगे, लेकिन अब यह रिश्ताविश्वास की कमी के चलते टूटता दिख रहा है। सेना और आईएसआई का इमरान खान पर अब पहले की तरह विश्वास नहीं रहा है।
इस्लामाबाद। पड़ोसी देश पाकिस्तान में हुए निकाय चुनावों इमरान खान की पार्टी को गहरा झटका लगा। खैबर पख्तूनख्वा में हार का सामना करना पड़ा, इन सब के पीछे सेना का हाथ बताया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इमरान खान की सरकार और सेना के बीच संबंध पहले जैसे नहीं हैं इससे उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही है।
इसी क्रम में गत दिवस हुए चुनाव में इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की खैबर पख्तूनख्वा के स्थानीय चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।आपकों बात दें कि इमरान खान को पीएम का पद सेना की मदद से ही मिला था और माना जाता है कि दोनों के बीच करार हुआ था कि वे किन मसलों पर दखल दे सकेंगे, लेकिन अब यह रिश्ताविश्वास की कमी के चलते टूटता दिख रहा है। सेना और आईएसआई का इमरान खान पर अब पहले की तरह विश्वास नहीं रहा है।
इमरान को हार का डर
सिंगापुर पोस्ट की रिपोर्ट पर विश्वास करें तो खैबर पख्तूनख्वा में हार के पीछे सेना से बिगड़ते संबंध भी एक वजह हैं। इमरान खान को पहले से ही इस हार का डर सता रहा था, लेकिन उससे कहीं ज्यादा झटका लगा है। इस साल की शुरुआत से ही इमरान खान और सेना के बीच संबंध बिगड़ने लगे थे।
सेना ने इमरान खान को सबक सिखाने के लिए उनकी पार्टी पीटीआई के उम्मीदवारों के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया था। इमरान खान और सेना के बीच तनाव का यह दूसरा राउंड था। इससे पहले नए आईएसआई चीफ की नियुक्ति को लेकर भी इमरान और सेना के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी।
इसलिए बिगड़े थे रिश्ते
आपकों बता दें कि सेना प्रमुख आईएसआई के चीफ को बदलना चाहते थे। सेना ने लेफ्टिनेंट फैज हमीद की जगह पर लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम का नाम घोषित कर दिया था। इसे इमरान खान के लिए झटका बताया जा रहा था क्योंकि फैज हमीद इमरान खान के करीबी माने जाते थे।
सेना की ओर से लिए गए इस एकतरफा फैसले से इमरान खान को झटका लगा और बदले में वह लंबे समय तक इस सिफारिश को दबाए बैठे रहे। उनकी ओर से नियुक्ति को मंजूरी न दिए जाने तक तमाम कयास लगते रहे। इमरान खान के पास दो विकल्प थे, उस सिफारिश को स्वीकार करना या फिर खारिज करना। इमरान खान सेना से लड़ने की स्थिति में नहीं थे।
इमरान खान की ओर से फैसले में देरी को सेना ने अपने अपमान के तौर पर देखा, लेकिन शांत रही। इसके जवाब में सेना ने खैबर पख्तूनख्वा के चुनाव में अपनी भूमिका अदा की। इमरान खान की पार्टी की इस चुनाव में हार के तमाम कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे अहम यही है कि सेना ने 2018 की तरह इस बार अपनी ओर से कोई प्रयास नहीं किए और इमरान खान की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
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