नेताजी की 125वीं जयंती पर विशेषः जब नेताजी से बापू ने भी मान ली थी हार
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बात वर्ष 1939 की है। उस समय नेताजी कांग्रेस में ही थे। इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव होना था। जिसके लिए नेताजी ने भी अपना नाम घोषित कर दिया।यह बात गांधी जी को ठीक नहीं लगी। गांधी जी ने उम्मीदवार के तौर पर सीतारामैया का नाम पेश किया और उन्हें ही चुनाव में सपोर्ट किया।
लखनऊ। सारा देश आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती मना रहा है। पूरे देश में जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आज भले ही नेताजी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके बताए गए आदर्श आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनके विचार देशवासियों को स्वाभिमान से जीने की प्रेरणा देते हैं। नेताजी के मजबूत तेवर व अंदाज के सभी कायल थे।
देश की आजादी में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। नेताजी के तमाम किस्से लोगों के बीच कहे-सुने जाते हैं। बताया जाता है कि एक बार तो नेताजी से महात्मा गांधी ने भी हार मान ली थी। यह भी कहा जाता है कि नेताजी सुभाष चंद्र के तेवरों से अंगे्रज अधिकारी अक्सर भयभीत रहते थे। क्योंकि उनकी अपनी अलग तरह की ही रणनीति व अंदाज था।
जिस कारण ब्रिटिश राज्य हिलकर रह गया था। नेताजी के बारे में एक किस्सा अक्सर खूब चर्चा में रहता है। दरअसल बात उस दौर की है। जब राजनीति अपने चरम पर थी, इस कारण सुभाष चन्द्र बोस को अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लडने का फैसला करना पड़ता था। नेताजी का चुनाव लडना अपने आप में ऐतिहासिक घटना थी। दरअसल साल 1937 में वाम राजनीति अपने चरम पर थी।
उस समय सरकार कांग्रेस की थी। इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी जमीन पर काम भी जम कर रही थी। यह वह दौर था जब अक्सर कहा जाता था कि अंगे्रजों को भारत छोडने पर इसी समय मजबूर किया जा सकता है। बात वर्ष 1939 की है। उस समय नेताजी कांग्रेस में ही थे। इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव होना था। जिसके लिए नेताजी ने भी अपना नाम घोषित कर दिया।
यह बात गांधी जी को ठीक नहीं लगी। गांधी जी ने उम्मीदवार के तौर पर सीतारामैया का नाम पेश किया और उन्हें ही चुनाव में सपोर्ट किया। लेकिन वह चुनाव हार गये। वहीं सुभाष चन्द्र बोस चुनाव जीत गये। जिस पर महात्मा गांधी ने कहा था कि यह हार मेरी है।