योनि का एक भाग काटने से महिला वफादार हो जाएगी, आप इस तर्क का यकीन करेंगे!
अपडेट हुआ है:
कई बार खतना की वजह से महिलाएं बांझपन की शिकार हो जाती हैं, कई बार ज्यादा दर्द की वजह से बच्चियां कोमा में चली जाती हैं, कई बार तो मौत तक होने की बात सामने आती है।
परंपरा डेस्क। देश में महिलाओं के खतना पर कानूनी रूप से कोई प्रतिबंध नहीं है। देश के कुछ भागों में इसे धर्म की आड़ में किया जाता है।
देश में यह प्रथा मुख्य रूप से बोहरा समुदाय और केरल के एक सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय में मौजदा समुदाय में प्रचलित है। देश में बोहरा समुदाय के करीब 10 लाख लोग रहते हैं।
इस समुदाय की कितनी महिलाओं और बच्चियों का खतना हुआ है, इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। 2018 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार इस समुदाय की 7 साल और उससे अधिक आयु की करीब 75 फीसदी बच्चियों का खतना हो चुका है।
ऐसे होता है खतना
इस कुप्रथा में महिलाओं या बच्चियों के योनि के अग्रभाग यानि क्लिटोरिस को ब्लेड के माध्यम से काट दिया जाता है।कुछ जगहों पर इस अंग के अंदरूनी त्वचा को भी गभीर रूप से छति पहुंचाई जाती है।
इस प्रथा के पीछे यह कुतर्क दिया जाता है कि खतना के बाद महिलाएं अपने पति के प्रति ज्यादा वफादार होती हैं और खतना के बाद वह सेक्स का आनंद लेने के लिए बाहरी पुरूषों के संपर्क में नहीं आतीं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विश्वभर में खतना चार तरह से होता है। पहला क्लिटोरिस के अग्रभाग को काट देना, दूसरा क्लिटोरिस को सिल देना, तीसरा क्लिटोरिस को छेदना या बांधना, चौथा पूरी तरह से इस अंग को काटकर निकाल देना।
खतना से यह नुकसान
महिलाओं के खतना से कई गंभीर दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। अधिकाशं खतना धार्मिक व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, चिकित्सकीय तरीके को नहीं अपनाया जाता है।
न ही सेफ्टी के लिए कोई उपाय किया जाता है। कई बार खतना के दौरान अधिक खून बहने से बच्चियों की मौत हो जाती है। कई बार खतना की वजह से महिलाएं बांझपन की शिकार हो जाती हैं। इसके अलावा कई बार ज्यादा दर्द होने की वजह से बच्चियां कोमा में चली जाती हैं, तो कई बार मौत तक होने की बात सामने आती है।
मानवता के लिए शर्मनाक
इससे दर्दनाक क्या होगा, जब किसी के शरीर का एक हिस्सा सिर्फ इसलिए काट कर अलग कर दिया जाता है, क्योंकि एक प्रथा ऐसा करने के लिए कहती है। हम उस दर्द का अहसास भी नहीं कर सकते।
वो भी किसी महिला के ऐसे अंग को जो उसकी नारी होने के पहचान है, कोई कैसे उसकी इस पहचान को उससे अलग कर सकता है। यह अमानवीय प्रथा ने केवल उस समाज के लिए जिसमें यह अपनायी जाती है बल्कि पूरी मानव जाति के लिए शर्म की बात है।