इन चार बैंकों में विनिवेश की सरकार की नीयत, नीति आयोग ने कहा अभी ऐसी कोई नीति नहीं
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वित्त विभाग के बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ इंडिया का नाम 'बिकाऊ है' वाली लिस्ट में रखा है। भारत दीप पहले ही बैंक आॅफ महाराष्ट्र और बैंक आॅफ इंडिया के इस श्रेणी में होने की बात कहता रहा है।
बैंकिंग डेस्क। प्राइवेटाइजेशन प्रेमी केंद्र सरकार के बजट में हुई घोषणाओं को अमल लाने की कवायद हो रही है। इसी कड़ी में एक बार फिर प्राइवेट होने की कतार में खड़े बैंकों की नई सूची सामने आई है। इनमें से दो बैंक पहले भी चर्चाओं में थे, अब दो का नाम और जुड़ गया है। गनीमत है कि जिन दो बडे़ बैंकों की चर्चा पहले थी वे इस लिस्ट में नहीं हैं।
मीडिया में सरकारी सूत्रों से खबरें लीक होने के बाद एक बार फिर बैंक कर्मचारियों में हलचल है। इसी बीच एक आरटीआई के जरिए पूछे गए सवालों में नीति आयोग ने ऐसे किसी भी निर्णय के होने से इनकार किया है। मतलब साफ है कि मुद्दा अभी कागज पर नहीं उतरा है लेकिन हवा चल चुकी है।
अंग्रेजी अखबार रायटर से वार्ता में वित्त विभाग के बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ इंडिया का नाम 'बिकाऊ है' वाली लिस्ट में रखा है। भारत दीप पहले ही बैंक आॅफ महाराष्ट्र और बैंक आॅफ इंडिया के इस श्रेणी में होने की बात कहता रहा है। अब आईओबी और सेंट्रल बैंक आॅफ इंडिया नाम भी जुड़ गए हैं।
इस सूची के बारे में जो तर्क दिए जा रहे हैं वे वही हैं जिन्हें हम अपनी खबरों में बता चुके हैं। यानी स्माॅल फस्र्ट का टारगेट लेकर विनिवेश की योजना बन रही है। मीडिया के हलकों में सीधे-सीधे इस प्राइवेटाइजेशन कहा जा रहा है लेकिन यह विनिवेश है या प्राइवेटाइजेशन इस बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है।
इस बार की चर्चा में नया यह है कि इन चार बैंकों में विनिवेश की कवायद अप्रैल से शुरू हो जाएगी जिसमें 5-6 महीने का वक्त लग सकता है। सबसे बड़ा सवाल अकाउंट होल्डर्स के पैसे का भी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि जो भी पैसा इन 4 बैंकों में जमा है, उस पर कोई खतरा नहीं है।
सबसे बड़ा सवाल
सरकार के प्राइवेट-प्राइवेट खेल में सबसे बड़ा सवाल उन बैंककर्मियों की नौकरी का है जो सरकारी नौकरी का सपना लेकर बैंकिंग क्षेत्र में आए हैं। बताया यह भी जाता है कि सत्ता में आने वाले राजनीतिक दल सरकारी बैंकों को निजी बैंक बनाने से अब तक इसलिए बचते रहे क्योंकि इससे लाखों कर्मचारियों की नौकरियों पर भी खतरा रहता है।
मौजूदा सरकार दावा तो कर रही है कि निजीकरण की दशा में कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी लेकिन सरकार के हाथ से निकलने के बाद इस तर्क को बहुत भरोसमंद नहीं कहा जा सकता है। जानकारी के मुताबिक फिलहाल बैंक ऑफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं। सेंट्रल बैंक में 33 हजार, इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं।
विरोध थामने का ये तरीका
सरकार को यह डर भी है कि बैंकों को बेचने की स्थिति में बैंक यूनियन विरोध पर उतर सकती हैं। इसलिए वह बारी-बारी से इन्हें बेचने का प्रयास करेगी। बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कम कर्मचारी हैं। इसलिए इसे प्राइवेट बनाने में कोई खास दिक्कत नहीं आने वाली है। बताते चलें कि देश में बैंक ऑफ इंडिया छठे नंबर का बैंक है। जबकि सातवें नंबर पर सेंट्रल बैंक है।
इनके बाद इंडियन ओवरसीज और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का नंबर आता है। बैंक ऑफ इंडिया का मार्केट कैपिटलाइजेशन 19 हजार 268 करोड़ रुपये हैं। वहीं इंडियन ओवरसीज बैंक का मार्केट कैप 18 हजार करोड़, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 10 हजार 443 करोड़ और सेंट्रल बैंक का 8 हजार 190 करोड़ रुपये है।
नीति आयोग बोला अभी कोई योजना नहीं
बैंकों के प्राइवेट होने की खबरों के बाद एक आरटीआई के जवाब में सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने ऐसी किसी योजना से इनकार किया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि बैंकों के प्राइवेटाइजेशन पर कैबिनेट निर्णय लेगी।
हालांकि नीति आयोग का कहना है पब्लिक सेक्टर बैंक से जुड़े मामले वित्त विभाग देखता है और कैबिनेट ने अभी ऐसी किसी योजना का मंजूरी नहीं दी है। उसका यह भी कहना है कि सरकारी उपक्रमों में उसकी सिफारिशों के अंतर्गत पब्लिक सेक्टर बैंक नहीं आते हैं।