इंसेफेलाइटिस को रोकेगा यह एप, वेबिनार में डॉक्टरों ने बताए फायदे

टीम भारत दीप |
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सांकेतिक तस्वीर
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गोरखपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीकांत तिवारी ने कहा है कि इंसेफेलाइटिस यानी दिमागी बुखार ज्यादातर एक से 15 साल तक के बच्चों में होता है। यह बरसात के मौसम में खासतौर से होता है और प्रदेश में इसका प्रकोप जुलाई से नवम्बर के महीनों में ज्यादा होता है।

गोरखपुर। यूपी में गोरखपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीकांत तिवारी ने कहा है कि इंसेफेलाइटिस की रोकथाम में इसके नोटिफिकेशन का विशेष महत्व है। बीमारी की शीघ्र पहचान, समय से इलाज और नोटिफिकेशन से इस बीमारी को नियंत्रित करने में काफी मदद मिली है।

इस कार्य में निजी चिकित्सकों का अहम योगदान है, जिन निजी चिकित्सकों के मोबाइल में एईएस एप डाउनलोड है, वह इसका समुचित इस्तेमाल आगे भी करते रहें। यह जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि स्वयंसेवी संस्था पाथ और ममता के सहयोग से जिले के निजी चिकित्सकों को इस संबंध में वेबिनार के जरिए प्रशिक्षित किया गया है।

प्रशिक्षण में एसीएमओ व वेक्टर बार्न डिजीज प्रोग्राम के नोडल अधिकारी डॉ. एके चैधरी ने भी प्रतिभाग किया। जिले में 175 निजी चिकित्सकों के मोबाइल में एईएस एप डाउनलोड कराया जा चुका है।

एसीएमओ डॉ. एके चैधरी ने बताया कि स्वयंसेवी संस्था ममता के तकनीकी सहयोग से जिले में 382 निजी चिकित्सकों की लाइन लिस्टिंग की गई थी। इनमें से 175 चिकित्सकों के मोबाइल में एप लोड करवाया गया। इनमें से 35 चिकित्सक एप पर इंसेफेलाइटिस मरीजों की रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

इस एप के जरिए गोरखपुर और इसके आसपास के जिलों के करीब सौ से ज्यादा मरीज नोटिफाई किए जा चुके हैं। इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के गोरखपुर इकाई के अध्यक्ष डॉ. एपी शाही समेत यहां के फिजीशियन संवर्ग और बाल रोग संवर्ग के चिकित्सकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है ताकि वह इस एप की महत्ता से बाकी चिकित्सकों को भी अवगत कराएं और बीमारी का शत-प्रतिशत नोटिफिकेशन किया जा सके।

वेबिनार प्रशिक्षण में वेक्टर बार्न डिजीज प्रोग्राम के निदेशक डॉ. पालीवाल, ममता संस्था से विनायकन ईके, डॉ. हर्षा तोमर, पाथ संस्था से डॉ. शिवम सिंदे और डॉ. राहुल कांबले ने प्रशिक्षुओं को बीमारी और एप के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

दिमागी बुखार के संभावित लक्षण

-तेज बुखार एवं सिरदर्द    
- सांस की गति व धड़कन का तेज चलना
- उल्टी होना
- शरीर का ढीलापन
- झटके आना
- बेहोशी की स्थिति या मानसिक अवस्था में बदलाव

बच्चे को तेज बुखार आए तो रखें ध्यान

- यदि बच्चे को तेज बुखार आ रहा है तो उसे पैरासिटामॉल के अलावा बिना चिकित्सक की सलाह के कोई दवा न दें।
- यदि तेज बुखार बना रहे तो सादे पानी से शरीर को पोछते रहें जब तक बुखार कम न हो। बच्चे को बाएं या दाएं करवट में ही लिटाएं।
- यदि किसी बच्चे को तेज बुखार के साथ झटके आ रहे हों तो तुरंत गांव की आशा से संपर्क करना चाहिए ताकि वह तुरंत 108 या 102 एंबुलेंस को बुलाए और नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधिकारी को पूर्व सूचना दे सके।

दिमागी बुखार यानी इंसेफेलाइटिस को जानिए

यह ज्यादातर एक से 15 साल तक के बच्चों में होता है। यह बरसात के मौसम में खासतौर से होता है और प्रदेश में इसका प्रकोप जुलाई से नवम्बर के महीनों में ज्यादा होता है।

यह धान के खेत में पैदा होने वाले मच्छर के काटने, जल पक्षी व सुअर के माध्यम से फैलने वाले विषाणुओं, संक्रमित एवं प्रदूषित पानी और गंदगी से तथा चूहों और घुन के काटने से होता है।

इसका प्रसार छछूंदर के माध्यम से भी होता है। इस बीमारी के मरीज को समय से अस्पताल न पहुंचाया जाए तो वह दिव्यांग हो सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है।


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