यूं छलका डाक्टर का दर्दः नेता एक फोन पर भर्ती, औरों के लिए किल्लत, एफओआरडीए ने केन्द्र को लिखा पत्र
नाम न बताने की शर्त पर आपबीती सुनाई। दुख और आक्रोश से भरे इस डॉक्टर के मुताबिक वह दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पताल में काम करता है। 11 अप्रैल को मां कोरोना संक्रमित हो गईं। उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा था। बताया गया कि अपने ही अस्पताल में उन्हें भर्ती कराने के लिए करीब वह चार घंटे तक भटकता रहा। पागलों की तरह बेड तलाश करता रहा। मगर बेड नहीं मिला। बताया गया कि मां की हालत खराब हो रही थी।
नई दिल्ली। कोरोना महामारी के कारण संक्रमण की भयावहता के बीच अस्पतालों में बेड की किल्लत भी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में अपनी बीमार मां को अपने ही अस्पताल में बेड न दिला पाने का दर्द जब एक डाक्टर बेटे के जुबान से निकला तो इसके साथ ही संक्रमण के दौरान चल रहे वीआईपी कल्चर की भी पोल खुल गई।
दरअसल ऐसे तामाम नेता, सांसद-विधायक, रसूखदार व उनके परिजन संक्रमण के अस्पतालों में भर्ती है जिन्हे घरों में आइसोलेट होना चाहिए था। लेकिन गंभीर न होते हुए भी वो अपने रसूक के बल पर अस्पतालों में बेड पर कब्जा जमाए हुए हैं। वहीं ऐसे में गंभीर मरीज इलाज के आभाव में लगातार काल के गाल में समा रहे है।
वहीं लगातार संक्रमण भी बढ़ रहा है और इलाज के आभाव में आम आदमी दम तोड़ रहा है। हालांकि लगातार व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भी इंतजाम जारी है लेकिन अभी तक के हालातों को देखते हुए वो नाकाफी नजर आ रहे हैं।
इस बीच स्वास्थ्य व्यवस्था पर वीआईपी कल्चर की चोट से आहत एफओआरडीए ने केन्द्र सरकार को खत लिखकर गुहार भी लगाई है। दरअसल महामारी के बीच भी सांसदों-विधायकों के अस्पतालों में वीआई ट्रीटमेंट को लेकर फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया खासा नाराज है।
एफओआरडीए ने स्वास्थ्य मंत्रालय को खत लिखकर जनप्रतिनिधियों की दखलंदाजी खत्म करने की मांग उठाई है।
बताया जा रहा है कि अस्पतालों में जनप्रतिनिधियों के इस वीआई कल्चर के कारण जरूरतमंदों और डॉक्टरों तक को इलाज और बेड नहीं मुहैया हो पा रहे हैं। एक बड़े मीडिया संस्थान की रिपोट्स के मुताबिक दिल्ली के एक बड़े सरकारी अस्पताल का एक डॉक्टर खुद इस वीआईपी कल्चर का शिकार हो गया।
बताया गया कि कोरोना संक्रमित मां को भर्ती कराने के लिए अपने ही अस्पताल में वह काफी भटका, लेकिन बेड नहीं मिला। उसने नाम न बताने की शर्त पर आपबीती सुनाई। दुख और आक्रोश से भरे इस डॉक्टर के मुताबिक वह दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पताल में काम करता है। 11 अप्रैल को मां कोरोना संक्रमित हो गईं।
उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा था। बताया गया कि अपने ही अस्पताल में उन्हें भर्ती कराने के लिए करीब वह चार घंटे तक भटकता रहा। पागलों की तरह बेड तलाश करता रहा। मगर बेड नहीं मिला। बताया गया कि मां की हालत खराब हो रही थी। एक साथी ने फोन पर बताया कि निजी अस्पताल में भर्ती करवा दो।
तब उसने उन्हें प्राइवेट अस्पताल में भर्ती किया। बताया गया कि मां के लिए मैं उस अस्पताल में बेड तक नहीं अरेंज कर पाया, जहां वह खुद काम करता हूं। बताया गया कि इसी अस्पताल में सांसद से लेकर विधायक तक के लिए तुरंत बेड अरेंज कर दिया जाता है।
यह भी कहा गया कि इनकी एक सिफारिश पर इनके रिश्तेदारों और करीबियों को भी बेड मिल जाता है। इनमें कई ऐसे भी थे, जिन्हें घर में ही आइसोलेट हो जाना चाहिए था, मगर वो अस्पताल में आकर भर्ती हुए। बताया गया कि बेड आरक्षित करने का कोई लिखित नियम नहीं है। मगर हर अस्पताल इस नियम को पूरी तरह फॉलो करता है।
बताया गया कि आज देशभर में हालात ये हैं कि आप किसी पावरफुल आदमी को जानते हैं तो आपकी जान बचने के चांस अधिक हैं। ऐसा ही सच्ची दास्तां और भी है। दरअसल राम मनोहर लोहिया के डॉक्टर मनीष जांगड़ा ने अपना एक वीडियो ही ट्विटर में पोस्ट किया। जिसके मुताबिक काफी जूझने के बाद उन्हें उनके ही अस्पताल में भर्ती किया गया।
यह कहानी कई डॉक्टर्स की है। लेकिन डॉक्टर्स अपना नाम बताने से बचते हैं, क्योंकि इससे उनकी नौकरी पर संकट खड़ा हो जाता है। उधर एमपी की घटना का जिक्र करते हुए एफओआरडीए ने लिखा खत है।
अस्पताल में नेताओं के गैरजरूरी दखल पर एफओआरडीए ने केंद्र को भेजे खत में कहा है कि सालों से देख रहे हैं कि नेता हेल्थ सर्विस में लगातार दखलंदाजी करते हैं, जिससे सेवाओं पर असर पड़ता है।
कहा गया कि किसी भी तरह की असामयिक मृत्यु को या खामी को ऐसे नेताओं के दौरों के बाद लापरवाही बता दिया जाता है और डॉक्टरों व स्टाफ को लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। कहा गया कि हम अपने कर्तव्य का पालन करते हैं और बिना भेदभाव लोगों की जिंदगी बचाने की कोशिश करते हैं।
लेकिन बीमारी की गंभीरता और मेडिकल सुविधाओं के अभाव या अपर्याप्त वर्कफोर्स के चलते हम हर मरीज को नहीं बचा सकते हैं। हम मौजूदा संसाधन में पूरी कोशिश करते हैं कि लोगों को इलाज दे सकें, मगर इंफ्रास्ट्रक्चर और काम के बोझ में दबे हुए हेल्थ केयर वर्कर्स के हाल में कोई सुधार नहीं हुआ है और ये लड़खड़ा रहे हैं।
कहा गया कि मध्य प्रदेश में एक ऐसी ही घटना घटी है। यहां एक जनप्रतिनिधि ने सीनियर डॉक्टर से बदसलूकी की और उसे इस्तीफा देना पड़ा। कहा गया कि हम रिक्वेस्ट करते हैं कि इन जनप्रतिनिधियों की दखलंदाजी को रोका जाए, जिसकी वजह से डॉक्टर हताश होते हैं और जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है।
एफओआरडीए ने ये उठाई मांग
जनप्रतिनिधियों और सरकारी अफसरों को निर्देश दें कि अपने इलाज के लिए उन्हीं संस्थानों में जाएंए जो खासतौर पर उन्हीं के लिए अलॉट किए गए हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करें और पर्याप्त वर्कफोर्स की व्यवस्था करें। हेल्थ केयर सुविधाओं में जनप्रतिनिधियों का गैरजरूरी दखल रोका जाए।
करीबियों और रिश्तेदारों के इलाज के लिए जनप्रतिनिधियों और अफसरों द्वारा सिफारिशों पर रोक लगाई जाए। जरा सी बीमारी पर भी नेता या अफसरों के घर और दफ्तरों पर डॉक्टरों को जाने के लिए मजबूर न होना पड़े। इसे रोका जाए। हेल्थ केयर वर्कर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की इलाज की जरूरतों के लिए भी एक विशेष जगह निर्धारित की जानी चाहिए।