इस बकरीद आम लोगों के बजट पर कोराना इफेक्ट, इनकी भी फीकी हुई ईद
बकरीद पर बकरे महंगे मिल रहें तो क़ुर्बानी कराने वालों की तादाद पर भी इसका गहरा असर देखने को मिल रहा है।
जौनपुर। ईद—उल—अज़हा (बकरीद) का पर्व 1 अगस्त को मनाया जाएगा। आमतौर पर तीन दिनों तक चलने वाले इस मुस्लिम त्योहार पर भी दूसरे त्योहारों की तरह कोरोना इफ़ेक्ट साफ़तौर पर देखने को मिल रहा है। बकरीद पर बकरे महंगे मिल रहें तो क़ुर्बानी कराने वालों की तादाद पर भी इसका गहरा असर देखने को मिल रहा है। भारत दीप डॉट कॉम ने कई लोगों से बातचीत के आधार पर कर इस ख़बर को तैयार किया गया है।
जौनपुर के रहने वाले मोहम्मद अनीस और हैदर रज़ा, वहीं बादशाह, हस्सू और सादिक़ इस बार सामूहिक क़ुर्बानी करने वाले हैं। मतलब अलग—अलग नहीं एक बकरे में कई लोगों ने रुपये शेयर किए हैं। जब इन लोगों से इसकी वजह पूछी गई तो सभी का कहना था कि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से बजट पर काफी असर पड़ा है। ऐसे में अलग—अलग क़ुर्बानी करना बजट बिगाड़ सकता है। उन लोगों ने कहा कि एक क़ुर्बानी में एक से ज़्यादा लोग शामिल हो सकते हैं। इस वजह से ऐसा करना पड़ा।
एहसान अली बकरे की क़ुर्बानी करने का काम करते हैं। उनका कहना है कि इसका असर उन लोगों की कमाई पर भी हुआ है। एहसान बताते हैं कि हर साल उनके पास एक हफ्ता पहले से ही कॉल आने शुरू हो जाती थी कि क़ुर्बानी के लिए आना है। इस बार जब कॉल नहीं आई तो वो लोगों के पास गए तो कई लोगों ने बजट का हवाला देकर क़ुर्बानी न करने की बात कही तो कइयों ने ये कहा कि साझे में क़ुर्बानी कर रहे हैं।
एहसान का कहना है कि हर वर्ष वो दो दिन के अंदर ही 20 से 25 हज़ार रुपये कमा लेते थे। जबकि इस बार 3—4 हज़ार रुपये ही कमा पाएंगे। जबकि पिछले साल एक बकरे की क़ुर्बानी करने का रेट 500 रुपये से 800 के बीच था। जबकि इस बार ये रेट 1000 से 1500 के बीच है।
कोरोना की वजह से इस बार बकरे की मंडी नहीं सज पा रही है। इस वजह से भी बकरों के रेट में उछाल देखने को मिल रहा है। लोगों को या तो व्यापारियों के घर तक बकरों को खरीदने जा पड़ रहा है या फिर किसी—किसी इलाके में बकरों को टहलाने के वक्त लोगों की डील हो जा रही है।
व्यापारी अज़ीज कुरैशी ने बताया कि उन लोगों को हर वर्ष के मुकाबले बकरा 2000 से 3000 रुपये महंगा मिल रहा है। बचत निकालकर बकरा बेचने पर आम लोगों की जेब पर इसका असर पड़ रहा है।
वाराणसी के रहने वाले अब्दुल हक़ का कहना है कि बकरे की कुर्बानी करना सुन्न्त है। इस वजह से हम लोग इस बार शेयर कर रहे हैं। ताकि धार्मिक परंपरा भी बाकी रहे और बजट पर भी असर न पड़े।