दतिया में अनोखा भंडाराः गांव भर के कुत्तों को निमंत्रण देकर खिलाया जाता है पकवान
कुत्तों को निमंत्रण पत्र दिया जाता है। इसके बाद देशी घी में बने पकवान को पत्तल में पड़ोसा जाता है। पत्तल पर पूड़ी -खीर और बूंदी भरपेट खिलाई गई। यह आयोजन दतिया जिले से सात किमी दूर केवलारी गांव में होता है। यहां भागवत कथा के समापन के बाद गांव भर के कुत्तों को आमंत्रण पत्र भेजा जाता है।
दतिया- मध्यप्रदेश। अभी तक आपने भंडारे के बारे में खूब खबरें सुनीं होगी, लेकिन दतिया में हर साल एक अनोखा भंडारा होता है। यहां पहले गांव के कुत्तों को निमंत्रण पत्र दिया जाता है।
इसके बाद देशी घी में बने पकवान को पत्तल में पड़ोसा जाता है। पत्तल पर पूड़ी -खीर और बूंदी भरपेट खिलाई गई। यह आयोजन दतिया जिले से सात किमी दूर केवलारी गांव में होता है। यहां भागवत कथा के समापन के बाद गांव भर के कुत्तों को आमंत्रण पत्र भेजा जाता है।
लगाई जाती है पत्तल
भंडारे में कुत्तों को भोजन कराने के लिए जैसे आदमियों के लिए पंगत लगाई जाती है ठीक वैसे ही कुच्चों के लिए पत्तल लगाई जाती है, फिर उन्हें लाइन से बैठाया जाता है। इसके बाद पूडी -खीर और बूंदी खाने के लिए दी जाती है।
इसलिए करातेे है कुत्तों को भोजन
दतिया के केवलारी गांव में कुछ साल पहले एक भव्य भंडारा हुआ था, वहां पर शामिल होने के लिए गांव के रामजी गए थे। उन्होंने देखा कि भंडारे में खाने के बाद जूठे पत्तलों को जब एक जगह फेंका जा रहा था तो पत्तल पर छुटे खाने के लिए कुत्ते एकत्र हुए थे, जिन्हें लोग दुत्कार रहे थे।
यह देखकर रामजी को बहुत बुरा लगा। इसके बाद उन्होंने कुत्तों के लिए भोजन कराने की ठान ली। इसके बाद रामजी ने गांव वालों को भी इस बारे में बताया गावों की सहमति के बाद उन्होंने सबसे पहले उन घरों में दस्तक दी, जहां पर कुत्ते पाले गए थे।
उन्होंने कुत्तों के मालिकों को शाम को भंडारे में लेकर आने के लिए निमंत्रण दिया और सुबह से ही कुत्तों के लिए पकवान बनवाने में जुट गए। इसके बाद शाम को कुत्तों के लिए पंगत लगवाई फिर सबकों भरपेट भोजन कराया गया। इसके बाद गांव के उन कुत्तों को खोजकर भी भोजन कराया जो भंडारें में आ सके ।
पांच साल से हो रहा भंडारा
केवलारी गांव में पिछले पांच सालों से यह अनोखा भंडारा हो रहा है। सोमवार को केवलारी गांव में कई गांवों के कुत्तों को आमंत्रित किया गया था। भंडारें में सभी कुत्तों ने छककर भोजन किया। इस भंडारे में गांव के अन्य महिला -पुरुषों ने भी हाथ अपनाया।