गोरखपुर में अनूठी परंपरा, मां दुर्गा को नवजात से लेकर सौ साल के बुजुर्ग का चढ़ता है रक्त
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यहां मां दुर्गा के भक्त मां को अपना रक्त अर्पित कर खुश करते है। यहां 12 दिन के बच्चे से लेकर सौ साल तक का वृद्ध अपना रक्त मां को चढ़ाता है।
गोरखपुर। हमारा देश विविधताओं से भरा है। यहां कोस —कोस पर पानी बदले चार कोस पर वानी। और क्षेत्र की अपनी एक अलग परंपरा होती है, इस परंपरा से उसकी पहचान होती है। ऐसी ही एक विचित्र परंपरा गोरखपुर की है। यहां मां दुर्गा के भक्त मां को अपना रक्त अर्पित कर खुश करते है।
यहां 12 दिन के बच्चे से लेकर सौ साल तक का वृद्ध अपना रक्त मां को चढ़ाता है।गोरखुपर के बांसगांव तहसील कस्बा में स्थित है मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में 300 सालों से भक्त मां को अपना रक्त अर्पित कर रहे है।
इसमें 12 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक का रक्त चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि जिन नवजातों के ललाट (लिलार) से रक्त निकाला जाता है, वे इसी मां की कृपा से प्राप्त हुए होते हैं।बांसगांव तहसील में स्थित मंदिर में क्षत्रियों के श्रीनेत वंश के लोगों द्वारा नवरात्र में नवमी के दिन मां दुर्गा के चरणों में रक्त चढ़ाने की अनोखी परंपरा है।
देश-विदेश में रहने वाले लोग यहां नवमी के दिन मां दुर्गा को अपना रक्त अर्पित करते हैं। नवजात के जन्म लेने के 12 दिन बाद से ही उनका रक्त मां के चरणों में अर्पित किया जाता है।उपनयन संस्कार के पूर्व तक एक जगह ललाट (लिलार) और (जनेऊ धारण करना-14 वर्ष की उम्र) हो जाने के बाद युवकों-अधेड़ों और बुजुर्गों के शरीर से नौ जगहों से रक्त निकाला जाता है। उसे बेलपत्र में लेकर मां के चरणों में अर्पित किया जाता है।
बेलपत्र पर रक्त को लेकर मां के चरणों में अर्पित कर दिया जाता है। इसके बाद धूप, अगरबत्ती और हवनकुंड से निकलने वाली राख को कटी हुई जगह पर लगा लिया जाता है। मंदिर में पहले जानवरों की बलि दी जाती थी पर अब मंदिर परिसर में पशु बलि को रोककर रक्त चढ़ाया जाता है।
मंदिर के पुजारी श्रवण पांडेय ने बताया कि लोगों का मानना है कि ये मां का आशीर्वाद ही है कि आज तक इतने सालों में न तो किसी को टिटनेस ही हुआ न ही घाव भरने के बाद कहीं कटे का निशान ही पड़ा। यहां के लोग मानते हैं कि मां को रक्त चढ़ाने से मां खुश होती है। श्रद्धालु का परिवार निरोग और खुशहाल होता है।