यूपी पंचायत चुनाव : ‘जिताऊ व टिकाऊ’ उम्मीदवार पर दांव लगाने की तैयारी
चुनावी समर को देखते हुए गांव में किसी न किसी बहाने से पार्टी नेताओं ने दस्तक देना शुरू कर दिया है। हालांकि यह काम पिछले कई महीनों से चल रहा है। इस बीच जो खबर मिल रही है उसके अनुसार सियासी दल जिताऊ व टिकाऊ कैंडीडेट की तलाश में जुटे हुए हैं ।
लखनऊ। फिलवक्त भले ही उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की घोषणा नहीं की गई हो। लेकिन मार्च से मई के बीच इन चुनाव के होने की पूरी संभावना जताई जा रही है। ऐसे में यहां पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इसी के मद्देनजर सियासी दलों ने भी गावों तक अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।
भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के अलावा इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी समर में ताल ठोंकने को बेचैन नजर आ रही है। चुनावी समर को देखते हुए गांव में किसी न किसी बहाने से पार्टी नेताओं ने दस्तक देना शुरू कर दिया है। हालांकि यह काम पिछले कई महीनों से चल रहा है।
इस बीच जो खबर मिल रही है उसके अनुसार सियासी दल जिताऊ व टिकाऊ कैंडीडेट की तलाश में जुटे हुए हैं । वोटर बनाने के लिए भी सियासी दल पूरी तौर पर सक्रिय रहे। फर्रूखाबाद जिले की 594 ग्राम पंचायतों, 30 जिला पंचायत वार्डो और 700 क्षेत्र पंचायत सदस्य पद के लिए चुनाव होना है।
सबसे अधिक यदि देखा जाए तो गहमा गहमी प्रधान और जिला पंचायत सदस्य पद के लिए है। दोनों ही पदों के पीछे कहीं न कहीं आर्थिक लाभ छिपा है। यही वजह है कि इन दोनों पदों के लिए सियासी दलों ने भी प्रतिष्ठा अभी से लगाना शुरू कर दिया है।
सत्तारुढ दल की ओर से तो इस बार ऐन केन प्रकारेण जिला पंचायत के अध्यक्ष पद की कुर्सी पर कब्जा करने की रणनीतिहै। इसके लिए ही पूरी जमीन तैयार की जा रही है। जिले के जो 30 जिला पंचायत के वार्ड हैं इन सभी में ऐसे चेहरों को देखा जा रहा है जो कि जिताऊ के साथ ही टिकाऊ हों और मौका पड़ने पाला न बदले।
इसको लेकर समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनी तौर पर परख कर ही प्रत्याशियों को उतारे जाने की तैयारी चल रही है। इसमें पुराने चेहरों के साथ-साथ नए चेहरों को भी देखा जा रहा है। वहीं आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजय सिंह के यहां आने के बाद पार्टी के कार्यकर्ता पंचायत चुनाव को लेकर कुछ ज्यादा ही फिक्रमंद हो गए है।
पार्टी की ओर से पहले ही एलान किया गया है कि चुनाव में कार्यकर्ता किस्मत आजमाएंगे और जीतेंगे भी। कांग्रेस पहले से ही न्याय पंचायत स्तर पर बैठकें कर रही है। बूथों पर सक्रियता बढ़ाने के पीछे कहीं न कहीं पंचायत चुनाव भी एक कारण है।
वहीं वोटर बनवाने को लेकर जिस तरीके से खासतौर पर सत्तारुढ़ दल ने सक्रियता दिखाई उससे साफ है इस चुनाव को पार्टी ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। सहकारिता की भांति इस चुनाव में विरोधियों का पत्ता साफ कर यह दिखाने की कोशिश होगी कि भाजपा के मुकाबले कोई नहीं है। इन नतीजों के जरिए पार्टी यूपी में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी फायदा लेने की सोचेगी।