यूपीः कोरोना की आफत में मुनाफाखोरी का खेल, सब्जियों की कीमत में लगी आग, अंकुश लगाने में प्रशासन फेल

इस बीच करीब-करीब हर चीज के दाम बढ़ गये हैं। वहीं सब्जियों के दाम तो आसमान छू रहे हैं। बावजूद इसके इस आफत में चल रहे मुनाफाखोरी के खेल पर अंकुश लगाने में प्रशासन पूरी तरह फेल होता नजर आ रहा है।
लखनऊ। कोरोना की आफत में मुनाफाखोरी का खेल जमकर खेला जा रहा है। इस बीच करीब-करीब हर चीज के दाम बढ़ गये हैं। वहीं सब्जियों के दाम तो आसमान छू रहे हैं। बावजूद इसके इस आफत में चल रहे मुनाफाखोरी के खेल पर अंकुश लगाने में प्रशासन पूरी तरह फेल होता नजर आ रहा है। दरअसल किसानों से सस्ती सब्जियां खरीद पांच गुने तक महंगें दामों पर बेची जा रही है।
इस खेल में बड़े थोक व्यापारी से लेकर छोेेेेेेटे थोक व्यापारी तक शामिल हैं। नतीजा आम आदमी की चरमराई आर्थिक स्थिति में यह खेल सीधे उसके निवाले पर चोट कर रहा है। दरअसल कोरोना के बढ़ते कहर के बीच यूपी में कोरोना की रोकथाम के क्रम में नाइट कर्फ्यू तथा शनिवार-रविवार को वीकेंड लॉकडाउन लागू किया गया है। ऐसे में अचानक यहां सब्जियों के दाम आसमान छूने लगे हैं।
मगर खास बात यह है कि किसानों से मिट्टी के भाव में सब्जी खरीदकर कई गुना अधिक कीमत पर बेचा जा रहा है। बताया जा रहा है कि सब्जियों में सबसे बड़ी मुनाफाखोरी थोक मंडियों में हो रही है। राजधानी समेत इसमें सूबे की करीब-करीब सभी मंडियां शामिल हैं। बताया गया कि सभी थोक मंडियों में दो स्तर पर सब्जी का व्यापार किया जा रहा है। इन्ही स्तर पर बड़ा ‘खेल’ हो रहा है।
नतीजा सब्जियों के दामों आसमान छू रहे हैं। इस खेल को ऐसे समझें जा सकता है। पहला स्तर बडे़ व्यापारियों का है। इन्हें थोक मूल्य बड़ा आढ़ती कहते है। यह वे लोग हैं जो प्रतिदिन कई ट्रक सब्जियां बाहर से मंगवाते हैं। यह अपना माल क्विंटल या टन में मंडी के ही दूसरे स्तर के व्यापारियों को बेचते हैं। उधर दूसरे व्स्तर के आढ़ती ( थोक मूल्य छोटा आढ़त) से ही सड़कों और ठेलों पर सब्जी बेचने वाले फुटकर दुकानदार सब्जी खरीदते हैं।
पहले आढ़ती से दूसरे आढ़ती तक माल पहुंचते-पहुंचते कीमत लगभग दो गुना तक हो जाती है और फुटकर दुकानदार तक पहुंचते ही कीमत तीन गुना तक बढ़ जाती है। वहीं किसान की बात करें तो इस समय उसे टमाटर की कीमत चार रुपए किलो तक ही मिल रही है।
दूसरी ओर बाजार में पांच गुना अधिक 20 से 25 रुपए में बेचा जा रहा है। इसी तरह किसान को भिंडी की कीमत सात से आठ रुपए किलो तक ही मिल रही है, वहीं बाजार 50 से 60 रुपए में बिक रही है। इसी तरह का हाल करीब-करीब हर तरह की सब्जियों का है।
ऐसे होता है मुनाफाखोरी का खेल (कीमत किलो में)
उत्पाद | थोक मूल्य बड़ा आढ़ती | थोक मूल्य छोटा आढ़ती | फुटकर मूल्य |
नींबू | 50-70 | 100-130 | 180-200 |
संतरा | 70-80 | 120-140 | 150-170 |
आलू | 11-12 | 14-16 | 20-25 |
टमाटर | 5-7 | 8-10 | 20-25 |
प्याज | 8-12 | 18-20 | 20-25 |
भिंडी | 10-15 | 30-35 | 50-60 |
अदरक | 20-25 | 35-40 | 50-60 |
वींस | 10-15 | 32-35 | 50-60 |
घुइयां | 8-10 | 30-35 | 50-60 |
पालक | 8-10 | 16-20 | 25-30 |
करेला | 10-15 | 15-20 | 40-50 |
लौकी-कद्दू | 5-6 | 10-15 | 20-25 |
तरोई | 20-25 | 32-35 | 40-50 |
हरी मिर्च | 10-15 | 20-24 | 60-70 |
खीरा | 5-8 | 10-15 | 25-30 |
ऐसा नहीं कि मुनाफाखोरी के इस खेल की जानकारी जिम्मेदारों को नहीं है। मगर नकेल कसने के लिए कोई हाथ नहीं बढ़ाता। हां इतना जरूर है कि जब मामला ज्यादा उछलने लगता है तो छिटपुट कार्रवाई कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली जाती है। बताया जाता है कि कीमतों के इस खेल की जानकारी मंडी अधिकारियों से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों को भी है।
बावजूद इसके सब्जी के मुनाफाखोरों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। उधर मंड़ी के अधिकारी के मुताबिक उनसे कार्रवाई करने का अधिकारी ही छीन लिया गया है और प्रशासनिक अधिकारियों के पास इसके लिए फुरसत ही नहीं है।