यूपी की सत्ता: योगी उपयोगी या अखिलेश यादव हुए नापसंद , जानिए सपा के पिछड़ने की अहम वजह

टीम भारत दीप |
अपडेट हुआ है:

ऐसा नहीं है कि शिवपाल सिंह यादव के प्रसपा में सभी नकारा ही थे
ऐसा नहीं है कि शिवपाल सिंह यादव के प्रसपा में सभी नकारा ही थे

पूरे चुनावी प्रचार में योगी को अनुपयोगी बताते हुए उन्हें मठ में रहने की सलाह देने वाले अखिलेश यादव सपा के लिए अनुपयोगी साबित हो रहे है। अगर इस हार के पीछे किसी को खलनायक बनाया जाए तो वह अखिलेश यादव स्वयं खुद है,

लखनऊ। यूपी में योगी फिर उपयोगी सिद्ध होते नजर आ रहे है। विपक्ष की तमाम किलेबंदी के बाद भी बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ दोपहर बारह बजे तक 272 का आंकड़ा छू लिया है। पूरे चुनावी प्रचार में योगी को अनुपयोगी बताते हुए उन्हें मठ में रहने की सलाह देने वाले अखिलेश यादव सपा के लिए अनुपयोगी साबित हो रहे है।

अगर इस हार के पीछे किसी को खलनायक बनाया जाए तो वह अखिलेश यादव स्वयं खुद है, क्योंकि उन्होंने ही इस चुनाव में सीट बंटवारे से लेकर गठबंधन करना और भाजपा के उन नेताओं को सपा में शामिल करने का ​फैसला लिया जिनका टिकट पार्टी हाईकमान काटने वाली थी।

स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोगों को सपा की सदस्यता दिलाई जिनका कोई जनाधार नहीं है, बल्कि स्वामी प्रसाद मौर्य की वजह से कई सीटे जिन्हें  सपा की जीत सकते थी वहां  भी हार का सामना करना पड़ा। आपकों बता दें 2012 के चुनाव में अखिलेश यादव ने जो कामयाबी पाई थी वह अपनी मेहनत के बल पर नहीं बल्कि मायावती के शासन से असंतुष्ट होकर जनता ने सपा को चुना था,लेकिन अखिलेश यादव ने भी मायावती की परिपाटी पर आंख मूंदकर शासन किया इसलिए उन्हें हार का सामन करना पड़ा। 

शिवपाल यादव की पार्टी के साथ नाइंसाफ

चाचा शिवपाल सिंह यादव ने भाजपा को हराने के लिए अपनी पार्टी का सपा में विलय कर लिया। बदले में उन्हें क्या मिला केवल एक सीट। ऐसे में शिवपाल यादव के साथ पिछले पांच साल से जो मैदान में उतरकर संघर्ष कर रहे थे, वह सभी सपा को हराने में जुट गए।

इसके पीछे सबसे बड़ा कारण जो बना वह कि सपा में पार्टी का विलय करके शिवपाल सिंह यादव पूरे चुनावी प्रचार के दौरान खुद को मजबूर और विवश बताते रहे है। ऐसा नहीं है कि शिवपाल सिंह यादव के प्रसपा में सभी नकारा ही थे, कुछ ऐसे थे जो टिकट के प्रबल दांवेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला, ऐसे में वे सभी या तो बसपा या निर्दलीय मैदान में उतरकर सपा को हराने का काम किया। 

टिकट बंटवारे में अदूरदर्शिता
 
अखिलेश यादव ने इस बार चुनाव में टिकट बंटवारे में केवल अपने मन की सुनीं, कई ऐसे नेता थे, जो पिछले पांच साल से सपा के लिए मैदान में उतरकर पार्टी के लिए संघर्ष कर रहे थे, ऐसे लोगों का सपा ने टिकट काट दिया।

उनकी जगह पैसे वालों और दबंग टाइप के लोगों को टिकट दिया, इसलिए सपा को इस बार इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा पूर्वांचल की 33 सीटों पर सपा ने अपना प्रत्याशी तय करने में काफी समय लगा दिया। इसके साथ ही कई अच्छे उम्मीदवारों का आखिरी समय पर टिकट का दिया जैसे जौनपुर सदर का। ऐसे में टिकट कटने के बाद इन लोगों ने सपा के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया।

वन मैन शो का गेम

इस चुनाव को सपा केवल अखिलेश यादव के इकलौते चेहरे के सामने लड़ने मैदान में उतरी थी, जबकि बीजेपी अपने छोटे—बड़े हर नेता को प्रचार की जिम्मेदारी संभाली एक तरफ पीएम मोदी ने लगातार रैलियां की तो दूसरी तरफ दूसरी पंक्ति के नेता जैसे सीएम योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य, डॉ दिनेश शर्मा ने मैदान संभाला तो पहली पंक्ति के नेताओं में से राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, गृहमंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा ने मैदान में उतरकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया,

वहीं अखिलेश यादव प्रचार से लेकर टिकट बंटवारे का सारा काम अकेले दम पर किया। बेशक अखिलेश यादव ने खूब रैलियां की, लेकिन उनकी अधिकांश रैलियां केवल कॉपी पेस्ट होकर रह गई, हर जगह सिर्फ योगी को अनुपयोगी और भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाया जो कि पिछले पांच साल में कही भी इसे साबित नहीं कर पाए थे, ऐसे में जो पिछले पांच साल तक उपयोगी था वह कैसे अनुपयोगी हो गया।

 


संबंधित खबरें