कोर्ट के डर से गुपचुप समझौते के मूड में आईबीए, वी बैंकर्स अपनी मांग पर कायम
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हमारी शुरू से मांग रही है कि बैंककर्मियों को वेतन आयोग के दायरे में लाया जाए और हमारे वेतन से जुड़े मुद्दों को नेशनल ट्रिब्यूनल को सौंपा जाए।
बैंकिंग डेस्क। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों में कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में जाने के बाद आईबीए बैंकों के साथ गुपचुप समझौते के मूड में है।
जल्द ही इसकी घोषणा भी हो सकती है लेकिन इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का रूख करने वाली एसोसिएशन वी बैंकर्स अपने रूख पर कायम है। उनका कहना है कि वेतन और पेंशन के मुद्दे पर समानता से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
बता दें कि बीती 22 जुलाई को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंककर्मियों के वेतन में वृद्धि और अन्य मुद्दों को लेकर सभी प्रमुख बैंक भारतीय बैंक एसोसिएशन यानी आईबीए के बीच एमओयू साइन किया गया। इसमें वेतन में 15 प्रतिशत बढ़ोत्तरी की बात की गई थी।
हालांकि बैंककर्मी शुरू से ही इस बढ़ोत्तरी को न के बराबर बता रहे हैं। इस मुद्दे पर वी बैंकर्स के संस्थापकों में से एक और रिटायर्ड बैंककर्मी कमलेश चतुर्वेदी ने बताया कि हमारी शुरू से मांग रही है कि बैंककर्मियों को वेतन आयोग के दायरे में लाया जाए और हमारे वेतन से जुड़े मुद्दों को नेशनल ट्रिब्यूनल को सौंपा जाए।
उनका कहना है कि 15 प्रतिशत वृद्धि की बात भी तब सामने आई जब 11 जून को लेबर कमिश्नर की रिपोर्ट में केंद्र सरकार को निर्णय लेने के लिए लिखा गया। सरकार निर्णय लेती इससे आनन-फाइन में एमओयू साइन हो गया।
वर्तमान में हालत ये है कि बैंककर्मी कार्य तो सरकारी कर्मचारी के रूप में कर रहे हैं। भारत सरकार के गजट में बैंक के अफसर को समूह क और ख के अधिकारी के रूप में माना गया है लेकिन वेतन के मामले में बैंकर्स गे्रड सी से भी नीचे हैं।
बता दें वी बैंकर्स एसोसिएशन ने बैंककर्मियों को वेतन आयोग के दायरे में लाने के लिए और बैंक से जुड़े मुद्दों को ट्रिब्यूनल को सौंपने सहित अपनी मांगों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस पर कोर्ट ने 15 अक्टूबर तक सरकार से अब तक लिए गए निर्णयों पर जवाब मांगा है।
इसी बीच खबर है कि 12 अक्टूबर को आईबीए और बैंक के अधिकारी मिलकर कोई गुपचुप समझौता कर सकते हैं लेकिन वी बैंकर्स का कहना है कि हमारी मांग शुरू से समान वेतन और पेंशन की रही है। हम इससे पीछे नहीं हटेंगे। कोर्ट के जरिए हमारी लड़ाई जारी है।
पेंशन के और भी बुरे हालात
बता दें कि बैंककर्मियों की पेंशन को लेकर हालात और भी खराब हैं। हाल ही में भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने वित्तमंत्री को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने जिक्र किया था कि कुछ बैंककर्मी तो ऐसे हैं जिन्हें केवल 135 रूपये पेंशन मिल रही है।
इतना ही नहीं बैंककर्मियों की पेंशन पर 10 हजार की लिमिट भी है यानी जीएम रैंक का अफसर भी इससे ज्यादा पेंशन का हकदार नहीं है।
आईबीए की सौदेबाजी से नुकसान
बताया गया है कि इंडियन बैंक एसोसिएशन जो कि खुद एक पंजीकृत और अधिकृत संस्था नहीं है, उसके सहारे देश के 10 लाख बैंककर्मियों का भविष्य है। मद्रास हाईकोर्ट में आईबीए इसका हलफनामा भी दे चुका है कि वह अधिकृत नहीं है। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो यह सरकार और बैंकों के बीच एक बिचैलिए की तरह कार्य करता है जिसकी जवाबदेही कुछ नहीं है।
सरकार भी आईबीए की सिफारिश पर ही निर्णय लेती है। इसमें सबसे बड़ा लीकेज यह है कि बैंककर्मियों के वेतन को लेकर कोई माॅडल ही नहीं है। जो भी तथाकथित आपसी बातचीत के आधार पर तय होता है, वही वेतन मान लिया जाता है।
2014 में शुरू हुए सुधारवादी प्रयास
कमलेश चतुर्वेदी बताते हैं कि वी बैंकर्स के रूप में पहला विचार बैंक यूनियनों में चली आ रही खामियों को दूर करने को लेकर था। इसलिए इसकी शुरूआत सुधारवादी प्रयासों के रूप में की गई।
2018 में जब ये जरूरत महसूस हुई कि अन्य यूनियन अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं हैं तो इसे एक ट्रेड यूनियन के रूप में पंजीकृत कराया गया। वी बैंकर्स की सबसे प्रमुख मांग यूनियन में आंतरिक प्रजातंत्र को लेकर है, साथ ही वे यूनियन की बैंककर्मियों के प्रति जवाबदेही बात भी करती है।
वी बैंकर्स की सबसे प्रमुख मांग यह है कि जरूरी मुद्दों पर सभी की राय ली जाए। वर्तमान में यह वेतन और पेंशन में समानता के अपने मुद्दे पर पूरे फोकस के साथ कार्य कर रही है।