OPS और NPS में बेहतर क्या!, सरकारी कर्मचारी यह रिपोर्ट पढ़कर जानें

टीम भारत दीप |

राज्य कर्मचारियों के लिए एनपीएस, पेंशन और बचत दोनों ही लिहाज से, जीपीएफ के मुकाबले नुकसान का सौदा है।
राज्य कर्मचारियों के लिए एनपीएस, पेंशन और बचत दोनों ही लिहाज से, जीपीएफ के मुकाबले नुकसान का सौदा है।

केंद्र सरकार ने ओपीएस को यह कहते हुए बंद किया था कि इससे सरकार के खजाने पर बहुत बोझ पड़ता है। जाहिर है, सरकार ने अपना जोखिम कर्मचारियों पर डाल दिया। एनपीएस आने के बाद सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) को बंद कर दिया गया है, जिसमें पहले 12 फीसदी कर्मचारी का और 12 फीसदी नियोक्ता का निवेश होता था।

नई दिल्ली। एक जनवरी 2004 से केंद्र सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम लागू किया है। इस योजना के लागू होने के बाद से ही कर्मचारियोंं ने इसे खुले मन से स्वीकार नहीं किया है। कर्मचारी पुरानी पेंशन के लिए लगातार संघर्श कर रहे है।

एनपीएस के विरोध में लाखों कर्मचारियों ने अभी तक एनपीएस नहीं अपनाया, जिससे भविष्य में आर्थिक संकट पैदा हो सकता है। एनपीएस और ओपीएस  में क्या अंतर है आखिर क्यों कर्मचारी एनपीएस को नहीं अपनाना चाह रहे है। पढ़िए दोनों के फायदे और नुकसान बताती हुई विशेष रिपोर्ट..

ओपीएस पर कर्मचारियों को ज्यादा भरोसा

एनपीएस और ओपीएस को लेकर चल रही उहापोह पर निवेश सलाहकार बलवंत जैन का कहना है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था या ओपीएस सरकारी कर्मचारियों को ज्यादा भरोसा और सुरक्षा देती है।

इसमें सरकार की ओर से तय लाभ दिया जाता है। 1 जनवरी 2004 से एनपीएस लागू होने के पहले जब सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त होता था, तो उसके अंतिम वेतन की 50 फीसदी राशि निश्चित तौर पर पेंशन के रूप में मिलती थी।

इस पर कर्मचारी के सेवाकाल का कोई असर नहीं पड़ता था। इसके अलावा ओपीएस में हर साल महंगाई भत्ते के रूप में बढ़ोतरी के साथ नया वेतन आयोग लागू होने पर भी बड़ा इजाफा होता है। ओपीएस धारक की मौत होने पर उसकी पत्नी या अन्य आश्रित को पेंशन मिलती है।

एनपीएस में एन्युटी व ब्याज पर निर्भर करेगी पेंशन

एनपीएस का रिटर्न पूरी तरह बाजार के अधीन होता है, जहां जोखिम की पूरी संभावना है। ऐसे में सरकारी कर्मचारियों को इस पर ज्यादा भरोसा नहीं हो पाता। अगर एनपीएस लंबे समय तक चलाया जाए, तभी पेंशन के रूप में ठीक-ठाक राशि मिलती है, क्योंकि इस पर कर्मचारी के सेवाकाल का भी सीधा असर पड़ता है।

एनपीएस लेने वाले कर्मचारी सेवानिवृत्त होने पर कुल रकम का 60 फीसदी एकमुश्त निकाल सकते हैं, जबकि 40 फीसदी से बीमा कंपनी का एन्युटी प्लान खरीदना होगा। इसी राशि पर मिलने वाला ब्याज हर महीने पेंशन के रूप में दिया जाता है। स्पष्ट है कि, एन्युटी की राशि और उसका ब्याज जितना ज्यादा होगा, पेंशन भी उतनी अधिक मिलेगी।

जीपीएफ के मुकाबले कम फायदेमंद है एनपीएस

केंद्र सरकार ने ओपीएस को यह कहते हुए बंद किया था कि इससे सरकार के खजाने पर बहुत बोझ पड़ता है। जाहिर है, सरकार ने अपना जोखिम कर्मचारियों पर डाल दिया। एनपीएस आने के बाद सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) को बंद कर दिया गया है, जिसमें पहले 12 फीसदी कर्मचारी का और 12 फीसदी नियोक्ता का निवेश होता था।

एनपीएस में राज्य सरकार के कर्मचारी के मूल वेतन व डीए का 10 फीसदी कटता है और इतनी ही राशि नियोक्ता भी देता है। यानी जीपीएफ से 2 फीसदी कम। केंद्र के मामले में नियोक्ता का अंशदान 14 फीसदी है, लेकिन राज्य कर्मचारियों के लिए एनपीएस, पेंशन और बचत दोनों ही लिहाज से, जीपीएफ के मुकाबले नुकसान का सौदा है।

एनपीएस चुनना ही समझदारी

जिन सरकारी कर्मचारियों ने एनपीएस का चुनाव नहीं किया और जीपीएफ खाता भी नहीं खोला गया, उनका न तो खुद के वेतन से अंशदान हुआ है और न ही सरकार ने पैसे डाले। उदाहरण के लिए, यूपी की एक सरकारी शिक्षिका ने 2015 में नौकरी शुरू की और एनपीएस नहीं चुना।

उनका जीपीएफ खाता भी नहीं खोला गया। अगर उनका एनपीएस होता तो मूल वेतन और डीए मिलाकर हर महीने औसतन 5,000 का अंशदान होता। इतनी ही राशि सरकार भी मिलाती तो छह साल यानी 72 महीने में कुल 7.20 लाख की रकम एनपीएस खाते में जमा हो जाती। भविष्य में चक्रवृद्धि ब्याज के तहत इस पर मोटा रिटर्न भी मिलता। लिहाजा ओपीएस का विकल्प नहीं होने पर एनपीएस अपनाने में ही समझदारी है।

निजी क्षेत्र और निवेश के लिए एनपीएस बेहतर
 
इस विषय में आईआईएफएल सियोरिटीज  के अनुज गुप्ता का कहना है कि एनपीएम की तुलना अगर पुरानी पेंशन से न करें और सिर्फ निवेश विकल्प के रूप में देखें, तो यह काफी आकर्षक लगती है।

निजी क्षेत्र के लिए जहां सेवानिवृत्ति के बाद कोई सुरक्षा नहीं मिलती, वहां एनपीएस संजीवनी की तरह है। एनपीएस लागू होने के बाद से अब तक सालाना औसतन 10 फीसदी रिटर्न मिला है। इस लिहाज से 25 साल से ज्यादा के सेवाकाल में छोटे निवेश से भी बड़ी रकम तैयार हो सकती है। एन्युटी की राशि ज्यादा होने पर आपको पेंशन भी बेहतर मिलेगी। 

यह थे पुरानी पेंशन के 3 बड़े फायदे

1- ओपीएस वह पेंशन योजना थी जिसमें पेंशन अंतिम ड्रॉन सैलरी के आधार पर बनती थी।
2- ओपीएस में महंगाई दर बढ़ने के साथ DA (महंगाई भत्‍ता) भी बढ़ जाता था।
3- जब सरकार नया वेतन आयोग लागू करती है तो भी इससे पेंशन में बढ़ोतरी होती है।

यह है एनपीएस के फायदे

केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 से नई पेंशन योजना (NPS) लागू की है, वहीं कई राज्‍यों में पहली अप्रैल 2004 से NPS लागू हुआ। खास बात यह है कि NPS में नए कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय पुराने कर्मचारियों की तरह पेंशन और पारिवारिक पेंशन के बेनिफिट नहीं मिलेंगे। इस योजना में नए कर्मचारियों से वेतन और महंगाई भत्ते का 10% अंशदान लिया जाता है. जबकि सरकार 14% का योगदान करती है।

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