आहूति देते समय 'स्वाहा' बोले बिना नहीं मिलता पूजा का फल, जानें ये हैं वजह

टीम भारत दीप |

'स्वाहा' बोलना धार्मिक रूप से अनिवार्य होता है।
'स्वाहा' बोलना धार्मिक रूप से अनिवार्य होता है।

धार्मिक मान्यता है कि कोई भी पूजा-पाठ बिना हवन के संपन्न नहीं होता है। दरअसल जब भी हम अपने घर में या कहीं भी हवन होते हुए देखते है तो हवन कुंड में हवन सामग्री डालने के बाद 'स्वाहा' शब्द बोलना अनिवार्य बताया जाता है।

लखनऊ। पुराने समय में सभी ऋषि-धर्मात्मा यज्ञ, हवन जैसे धार्मिक अनुष्ठान के द्वारा मानवता के कल्याण के उपाय किया करते थे। वहीं परम्परा आज भी कायम है। आज भी हम अपने घर में जब भी कोई शुभ कार्य होता है, तो यज्ञ- हवन जरूर कराते हैं। धार्मिक मान्यता है कि कोई भी पूजा-पाठ बिना हवन के संपन्न नहीं होता है।

दरअसल जब भी हम अपने घर में या कहीं भी हवन होते हुए देखते है तो हवन कुंड में हवन सामग्री डालने के बाद 'स्वाहा' शब्द बोलना अनिवार्य बताया जाता है। यदि आप सोचते हैं  कि पंडित जी यूं ही 'स्वाहा' बोलने को कहते हैं। तो आपकी ये धारणा गलत है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी भी यज्ञ में यदि 'स्वाहा' बोले बगैर यज्ञ सामग्री डाली जाती है तो वह यज्ञ सामग्री देवताओं को प्राप्त नहीं होती है।

जिस कारण हमारा यज्ञ अधूरा ही रह जाता है। जिसका फल हमें नहीं मिलता। बताते चलें कि हमारे धार्मिक ग्रंथों में 'स्वाहा' को लेकर तमाम तरह की किवदंतियां प्रचलित है। धार्मिक मान्याओं के आधार पर ऐसी ही एक कथा बहुत प्रचलित है। कथानुसार कहा जाता है कि 'स्वाहा' राजा दक्ष की पुत्री थीं। उनका विवाह अग्निदेव के साथ संपन्न हुआ था।

इसी कारण अग्नि में जब भी कोई चीज समर्पित करते हैं, तो बिना स्वाहा का नाम लिए जब वह चीज समर्पित की जाती है, तो अग्निदेव उसे स्वीकार नहीं करते हैं। इसी प्रकार ही एक और कथा भी प्रचलित है। कथानुसार प्रकृति की एक कला के रूप में स्वाहा का जन्म हुआ था।

स्वाहा को भगवान कृष्ण से यह आशीर्वाद प्राप्त था कि देवताओं द्वारा ग्रहण करने वाली कोई भी सामग्री बिना स्वाहा को समर्पित किए देवताओं तक नहीं पहुंच पाएगी। यही कारण है कि जब भी हम अग्नि में कोई खाद्य वस्तु या पूजन की सामग्री समर्पित करते हैं, तो 'स्वाहा' का उच्चारण करना अनिवार्य बताया गया है। इसी तरह ऐसी ही एक और कथा का वर्णन मिलता है।

इसमें यह बताया गया कि एक बार देवताओं के पास अकाल पड़ गया और उनके पास खाने-पीने की चीजों की कमी पड़ने लग गई। इस विकट परिस्थिति से बचने को देवता व्याकुल हो उठे। वे  भगवान ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और अपनी सारी व्यथा सुनाई। जिसे सुनकर ब्रह्मा जी ने यह उपाय निकाला कि धरती पर ब्राह्मणों द्वारा खाद्य-सामग्री देवताओं तक पहुंचाई जाए।

इसके लिए अग्निदेव का चुनाव किया गया। चूंकि अग्नि को पवित्र माना गया है। इसमे जाने के बाद कोई भी चीज पवित्र हो जाती है। हालांकि अग्निदेव की क्षमता उस समय भस्म करने की नहीं हुआ करती थी। इसीलिए स्वाहा की उत्पत्ति हुई और स्वाहा को आदेश दिया गया कि वह अग्निदेव के साथ रहें।

इसके बाद जब भी कोई चीज अग्निदेव को समर्पित किया जाए तो स्वाहा उसे भस्म कर देवताओं तक उस चीज को पहुंचा सके। बताया जाता है कि इसी कारण जब भी अग्नि में कोई चीज हवन करते हैं, तो 'स्वाहा' बोलकर इस विधि को संपूर्ण किया जाता है जिससे खाद्य पदार्थ या हवन की सामग्री देवताओं को सकुशल पहुंच सके।

यही कारण हैं कि जब भी हवन में सामग्री डाल आहूति दी जाती है तो 'स्वाहा' बोलना धार्मिक रूप से अनिवार्य होता है।


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