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kavi sammelan
राष्ट्र का मान है हिन्दी, करो अनुराग हिन्दी से, राष्ट्र की जान है हिन्दी: मस्ताना
‘आज किसानों पर भी देखो कितनी विपदा भारी है जबकि देश के भोजन की भी इन पर जिम्मेदारी है‘
‘माल मुफ्त को खाय खाय के लाल परे रमजानी, सोने की हवे गयी चिरैया गामन की परधानी‘
आचार्य रामचंद्र शुक्ल को समर्पित रही गोष्ठी, संजय दुबे ने पढ़ा कसैला सबाद हूं, फिर भी आबाद हूं
6 माह बाद फिर हुआ कवियों का संगम, कहा- गीत मैं गाने चला हूं, तुम भी स्वर में स्वर मिला दो
हम हिंदू हैं, हिंद देश है, हिंदी मेरी भाषा है, विश्वपटल पर हिंदी गूंजे ये मेरी अभिलाषा है